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अमेरिका और रूस में टकराव

अमेरिका में जो बाइडेन सरकार के सत्ता सम्भालने के बाद उसका रूस से टकराव बढ़ रहा है। यद्यपि सोवियत संघ के दौर में दोनों देशों में टकराव का एक इतिहास रहा है।

अमेरिका में जो बाइडेन सरकार के सत्ता सम्भालने के बाद उसका रूस से टकराव बढ़ रहा है। यद्यपि सोवियत संघ के दौर में दोनों देशों में टकराव का एक इतिहास रहा है। सोवियत संघ के खंडित होने के बाद एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका ही एक मात्र वैश्विक शक्ति बन कर उभरा लेकिन कई मुद्दों पर टकराव बना रहा। विश्व राजनीति के इतिहास में ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं जब दो देशों के राष्ट्र प्रमुखों के व्यक्तिगत संबंध काफी घनिष्ठ हों लेकिन दोनों देशों के संबंधों में तनाव काफी तीखा और उच्चतम स्तर पर हो। 
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ड्रंप और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन के व्यक्तिगत संबंध काफी करीबी रहे लेकिन इसके बावजूद अमेरिका और रूस में तनाव पराकाष्ठा के स्तर पर रहे। चार वर्ष पहले सीरिया संकट ने दोनों के बीच तनाव में अप्रत्याशित बढ़ौतरी कर दी थी लेकिन हैम्बर्ग में हुई बैठक में सीरिया पर युद्ध विराम पर सहमति बनी थी लेकिन अमेरिकी कांग्रेस ने रूस पर प्रतिबंध वाला विधेयक पारित कर दिया। इससे रूस इतना नाराज हुआ कि राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिकी दूतावास में काम करने वाले 755 अधिकारियों और कर्मचारियों को बाहर निकालने का फरमान जारी कर दिया। बराक ओबामा के समय में भी अमेरिका-रूस संबंध बुरे दौर में थे। तब ओबामा ने कठोर फैसला लेते हुए 35 रूसी राजनयिकों को ​निष्कासित कर दिया था। ट्रंप के शासनकाल में अमेरिकी कांग्रेस ने रूस पर प्रतिबंध वाले विधेयक को एक मत प्रस्ताव से मंजूरी दी थी। इसके दो मूल कारण थे, पहला रूस द्वारा क्रीमिया को यूक्रेन से अलग करना तथा दूसरा 2016 के अमेरिकी चुनाव में मास्को द्वारा किया गया तथाकथित हस्तक्षेप।
जो बाइडेन के राष्ट्रपत बनने के बाद भी अमेरिका के रूस विरोधी रवैये में कोई नरमी नहीं आई। बाइडेन प्रशासन ने इसी माह दस रूसी राजनयिकों के निष्कासन तथा रूस के करीब तीन दर्जन लोगों और कम्पनियों के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा की। अमेरिका ने पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनावों में हस्तक्षेप करने तथा संघीय एजैंसियों में सेंधमारी करने के लिए रूस को जनवाबदेह ठहराने की दिशा में कार्रवाई की है। अमेरिका द्वारा चुनाव में हस्तक्षेप और हैकिंग को लेकर ​जवाबी कार्रवाई करते हुए रूस के खिलाफ पहली बार प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई। कहा जाता है कि रूसी सेंधमारों ने व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर में सेंधमारी की थी ताकि वे कम से कम 9 एजैंसियों के नेटवर्क को हैक कर सके। यह सब अमेरिकी सरकार की गुप्त जानकारी जुटाने के लिए किया गया। अमेरिकी अधिकारियों ने आरोप लगाया था कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ड्रंप की मदद के लिए एक अभियान को मंजूरी दी थी ताकि ट्रंप पुनः राष्ट्रपति बन सकें लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि रूस या किसी अन्य ने मतों में या परिणामों में हेरफेर की। टकराव के बिन्दु कई अन्य भी हैं। जैसे अफगानिस्तान में बढ़ रहा रूसी हस्तक्षेप, चीन से रूस की दोस्ती और यूक्रेन का मुद्दा। 
रूस के शक्तिशाली नेता ब्लादिमिर पुतिन ने राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में पश्चिम को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि रूसी सुरक्षा हितों को नुक्सान होने पर उनका देश तुरन्त और सख्त जवाब देगा। पुतिन की यह चेतावनी यूक्रेन के पास बड़े पैमाने पर रूसी सैन्य जमावड़े के बीच आई है, जहां रूस समर्थित अलगाववादियों और यूक्रेनी बलों के बीच हाल ही के दिनों में टकराव बढ़ गया है। दूसरी ओर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस से अपने सैनिकों को वापिस बुलाने का आग्रह किया है। पुतिन ने ऐसी मांग करने वालों को ‘लक्ष्मण रेखा’ पार नहीं करने की चेतावनी दे दी है।  पुतिन ने अमेरिका का नाम लिए बिना उसकी सरकार की निंदा की जो अपनी बातें दूसरों पर थोपने के लिए गैर कानूनी व राजनीतिक रूप से प्रेरित आर्थिक प्रतिबंध लागू करती है। रूस द्वारा यूक्रेन के इर्द-गिर्द सैन्य जमावड़ा बढ़ाने के बाद अमेरिका ने भी काला सागर में अपने दो जंगी जहाज भेजने की तैयारी कर ली है।
अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के खिलाफ जिस तरह से रूस और चीन ने एकजुटता दिखाई है उससे दुनिया में एक बार फिर महाशक्तियों के ध्रुवीकरण की आशंका प्रबल हो गई है। चीन-रूस दोनों ने कहा है कि अमेरिका उनके आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है। इससे एक बार फिर दुनिया एक नए शीत युद्ध की ओर बढ़ रही है। चीन-रूस के गठबंधन ने टकराव को और भी बढ़ा दिया है। इससे चीन और अमेरिका के बीच दक्षिण चीन सागर, हिन्द प्रशांत सागर, हांगकांग और ताइवान पर टकराव बढ़ेगा। रूस और अमेरिका का टकराव भारत के लिए सही नहीं है। रूस भारत का मित्र रहा है लेकिन यह टकराव रूस को चीन के अत्यंत करीब ला सकता है। भारत को नए समीकरणों के चलते अपने हितों की रक्षा करने के लिए बहुत ही गम्भीरता से अति सक्रिय रहना होगा, क्योंकि रूस से ज्यादा खतरनाक चीनी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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