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12वीं की परीक्षा की उलझन

कोरोना के कारण केवल सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था ही चित्त नहीं हुई है बल्कि शैक्षणिक व्यवस्था भी इसने चौपट करके रख दी है।

कोरोना के कारण केवल सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था ही चित्त नहीं हुई है बल्कि शैक्षणिक व्यवस्था भी इसने चौपट करके रख दी है। महामारी के चलते पिछला पूरा एक वर्ष स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्राें का न केवल बेकार गया है बल्कि देश की होनहार नई पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य के सपनों को भी इसने निगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अपनी मेधा और प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ने के इस पीढ़ी के सपनों को भारी आघात लगा है। मगर वक्त की नजाकत को देखते हुए हमें इसके बीच से ही कोई ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे नौजवान नस्लों में लगातार जोश बना रहे और उनका अपनी योग्यता पर विश्वास डिगने न पाये। जहां तक दसवीं स्कूल तक के बच्चों का सवाल है तो सरकारी शैक्षिक संस्थानों ने पहले ही इनकी परीक्षाएं रद्द करने का ऐलानकरते हुए साफ कर दिया है कि स्कूली स्तर पर छात्रों की योग्यता का आंकलन करते हुए उन्हें अगली कक्षाओं में प्रोन्नत कर दिया जायेगा परन्तु 12वीं की परीक्षा प्रत्येक किशोर या किशोरी के जीवन का वह महत्वपूर्ण मोड़ होता है जिसमें उसकी भविष्य की आकांक्षाएं छिपी रहती हैं। अरमानों को पूरा करने के लिए प्रत्येक छात्र कठिन प्रतियोगिता में भाग लेकर उच्च शिक्षा के पायदान पर कदम रखता है और अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में भी सक्षम होता है। पूरे देश से लाखों की संख्या में 12वीं पास छात्र इंजीनियरिं से लेकर मेडिकल व प्रबन्धन आदि की विशेषज्ञ परीक्षाओं में बैठकर अपने भविष्य को सुन्दर बनाने का सपना पालते हैं।
यह अवस्था किशोर से युवा या जवान होने का नाजुक दौर भी कहलाती है। अतः सरकार का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह एेसा कोई रास्ता निकाले जो पूरी तरह वस्तुगत स्थितियों का संज्ञान लेते हुए बनाया गया है। हकीकत यह है कि कोरोना के खौफ की वजह से ‘लाॅकडाउन’ के दौर पर दौर चलने की वजह से विद्यालय पिछले एक साल से खुले ही नहीं हैं और छात्रों को ‘आन लाइन’ पढ़ाई पर ही निर्भर रहना पड़ा है। छात्रों के भविष्य को देखते हुए रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में विगत 23 मई को राज्यों के शिक्षा सचिवों व केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद के पदाधिकारियों के साथ बैठक हुई जिसमें परिषद द्वारा 12वीं की परीक्षा कराने के प्रस्ताव पर विचार किया गया। इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा यह रहा कि परीक्षा व्यक्तिगत स्तर पर कराई जाये और उससे पहले शिक्षकों व छात्रों को वैक्सीन लगाने का काम पूरा किया जाये जिससे किसी की जान को भी खतरा न हो सके।
दूसरा मुद्दा यह रहा कि परीक्षाएं पारंपरिक तरीके से कराई जायें अथवा कोई नया छोटा रास्ता निकाला जाये। तीसरा प्रमुख मुद्दा यह रहा कि कुछ चुने हुए प्रमुख विषयों में परीक्षा ली जाये और शेष विषयों के अंक परीक्षा में आये प्राप्तांक के आधार पर जोड़ दिये जायें। यदि पारंपरिक ढंग से परीक्षाएं की जाती हैं तो इसमें कम से कम परिणाम घोषित करने तक चार महीने का समय लगेगा क्योंकि इसके लिए व्यापक तैयारी करनी होगी। यह विकल्प कोरोना काल में व्यावहारिक इसलिए नहीं है कि इसकी तैयारी करने के लिए शिक्षकों समेत जिन अन्य कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी उन्हें सबसे पहले वैक्सीन लगानी होगी और विविध परीक्षा केन्द्रों तक विद्यार्थियों के जाने के मार्ग को कोरोना मुक्त रखना होगा, जो कि वर्तमान समय में मुमकिन नहीं दिखता है। दूसरा प्रस्ताव परीक्षाओं का छोटा रास्ता अपनाने का है जिस पर माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधिकारी जोर डाल रहे हैं। यह रास्ता है कि कुल 174 विषयों में से केवल 19 विषयों में ही परीक्षा ली जाये जो विज्ञान, वाणिज्य व कला (मानवीय विषय जैसे इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, हिन्दी, अंग्रेजी आदि) संकायों से चुने जायेंगे। हर संकाय के छात्र की केवल चार विषयों में ही परीक्षा ली जायेगी और उसके पांचवें या छठे विषय के अंक इन्हीं के आधार पर तय कर दिये जायेंगे (12वीं एक छात्र अधिकतम छह विषय लेता है)। प्रत्येक विषय का प्रश्नपत्र तीन घंटे के स्थान पर डेढ़ घंटे का होगा और यह विवेचनात्मक होने के स्थान पर वस्तुपरक (आब्जेक्टिव) होगा। किसी भी संकाय के तीन विषयों के साथ एक भाषा हिन्दी या अंग्रेजी का प्रश्नपत्र होगा।
परीक्षा के इस स्वरूप को लागू करने में केवल डेढ़ महीने का समय चाहिए। इसके साथ ही विद्यार्थी उसी स्कूल में परीक्षा देंगे जिनमें वे पढ़ाई कर रहे हैं। बेशक यह पीरक्षा स्वरूप अधिक व्यावहारिक लग रहा है मगर इसके लिए भी पहले सभी शिक्षकों व सम्बन्धित कर्मचारियों के साथ छात्रों को वैक्सीन लगाना जरूरी शर्त होनी चाहिए। मगर परीक्षाओं को रद्द करना या टाले जाना अनुचित होगा क्योंकि इसका बहुआयामी प्रभाव पूरी शिक्षा प्रणाली पर पड़ेगा। महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों का स्तर बनाये रखने के लिए 12वीं में छात्रों की योग्यता मापना जरूरी शर्त होती है। विद्यार्थियों की परीक्षाएं ऑनलाइन नहीं हो सकती हैं क्योंकि उसमे वैयक्तिक प्रतिभा का आंकलन नहीं किया जा सकता है। हमारे घरों से लेकर विद्यालयों तक में प्रराम्भ से ही यह सिखाया जाता है कि मेहनत का फल मीठा होता है या मेहनत जरूर रंग लाती है। किशोर वय से जवानी की दहलीज पर कदम रखते हर युवा के लिए यह सबक बहुत जरूरी होता है। हालांकि अभी राज्य सरकारों ने कोई अन्तिम फैसला नहीं किया है क्योंकि श्री राजनाथ सिंह ने उन्हें 25 मई तक अपने जवाब देने का समय दिया है। वैसे यह भी महत्वपूर्ण है कि इतने गंभीर विषय पर मतैक्य कायम रखने की जिम्मेदारी श्री राजनाथ सिंह को ही दी गई। बहुत कम लोगों को मालूम है कि श्री सिंह अपने शैक्षिक काल में एक किसान के बेटे होते हुए बहुत प्रतिभावान छात्र थे और उन्होंने एम.एससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी और वह प्रोफैसर भी रहे थे। विद्यार्थियों की मनः स्थिति को वह बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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