कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में अपना नेता प. बंगाल के सांसद श्री अधीर रंजन चौधरी को चुनकर साफ कर दिया है कि वह जमीनी राजनीति को संसदीय राजनीति में समुचित महत्व देने की पक्षधर है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के रुख में यह महत्वपूर्ण परिवर्तन तब कहा जायेगा जबकि इसके सांसदों की बहुत सीमित संख्या ही 2019 के लोकसभा चुनावों में जीत कर आयी है। श्री चौधरी को बहरामपुर का जमीन से जुड़ा नेता बताया जाता है। इसके मुर्शीदाबाद जिले में उनकी लोकप्रियता का लोहा राज्य की मार्क्सवादी पार्टी से लेकर तृणमूल कांग्रेस तक मानती हैं।
पटना से बहरामपुर पहुंचते हुए गंगा नदी का विशाल घाट जहां उत्तर भारत व पूर्वी भारत का समागम मनमोहक स्वरूप में आकर करता है वहीं वह पलाशी का मैदान भी इससे थोड़ी ही दूर है जहां 1756 में अग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को छल से पराजित करके भारत में अपने शासन की नींव डाली थी। अधीर चौधरी इसी मिट्टी से राजनीति करना सीखे हैं और उन्होंने अपनी पार्टी का ध्वज 1999 से लगातार ऊंचा रखने में सफलता हासिल की है। अपने विचारों को बेबाक तरीके से प्रकट करने वाले चौधरी का लोकसभा में नेता पद पर चुनाव करके कांग्रेस पार्टी ने वह दांव खेला है जिससे वह जमीनी समस्याओं को संसद में जनता की भाषा में पेश कर सके। यह बदलती हुई राजनीति का ही संकेत माना जायेगा।
पहले यह समझा जा रहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी लोकसभा में यह जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हो जायेंगे क्योंकि वह अध्यक्ष पद छोड़ना चाहते हैं परन्तु उन्होंने यह भार लेना भी उचित नहीं समझा। बेशक श्री चौधरी को विधिवत विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं मिलेगा परन्तु 52 सासंदों का नेता होने की वजह से वह बरायेनाम विपक्ष के नेता ही माने जायेंगे और सतारूढ़ भाजपा पार्टी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेगी जैसा कि उसने पिछली लोकसभा में श्री मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ किया था। श्री खड़गे भी 2014 से 19 तक सदन में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता थे और उसके केवल 44 सदस्य ही थे।
श्री चौधरी के साथ तो 52 सदस्य हैं। हालांकि कांग्रेस के जो सदस्य जीतकर इस बार सदन में आये हैं उनमें केरल से श्री शशि थरूर से लेकर पंजाब से भी कुछ वरिष्ठ नेता हैं मगर श्री चौधरी की राजनीति के तेवर विशुद्ध सड़क की राजनीति के रहे हैं और उसी के बूते पर उनकी अपने इलाके में लोकप्रियता कायम है। रहने को तो वह 2012 से 2014 तक मनमोहन सरकार में रेल राज्यमन्त्री भी रहे मगर उनकी छवि कभी भी लीक पर चलने वाले नेता की नहीं रही। मन्त्री रहकर भी उनका राजनैतिक लड़ाकूपन उन पर प्रभावी रहा और उस दौरान उन्होंने बहरामपुर समेत आसपास के विभिन्न रेलवे स्टशनों की दशा सुधारने का बीड़ा जैसा उठा लिया। उन्हें राजनीति के गुर सिखाने मंे पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने भी प्रमुख भूमिका निभाई।
श्री मुखर्जी के प. बंगाल राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष रहते हुए ही उन्हें राज्य की राजनीति में अपना स्थान बनाने में सफलता मिली। हकीकत यह है कि राज्य में मालदा जिले के बाद बहरामपुर में ही वर्तमान चुनावों में कांग्रेस का गढ़ बच सका वरना अन्य सभी स्थानों पर तृणमूल अथवा भाजपा ने इसे हथियाने में सफलता हासिल कर ली। पहले यह विचार किया जा रहा था कि यदि राहुल गांधी सदन में कांग्रेस नेता का पद स्वीकार नहीं करते हैं तो उनके स्थान पर श्री शशि थरूर जैसा विद्वान व्यक्ति बैठाया जा सकता है परन्तु वर्तमान लोकसभा का रसायनशास्त्र देखते हुए चौधरी का चुनाव किया जाना बताता है कि फिलहाल विद्वता की नहीं बल्कि जमीनी हकीकत के आइने में चेहरा देखने की जरूरत है क्योंकि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी ताकत यही है। इसी ताकत के बल पर वह चुनावों में शानदार विजय प्राप्त करने में सफल हो सके हैं।
श्री चौधरी का चयन कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी ने किया है। श्रीमती गांधी की राजनीति पर पकड़ ढीली समझना भूल होगी क्योंकि उनमें अपनी पार्टी के नेताओं की उपयोगिता की समझ कूट-कूट कर भरी हुई है। यह बात और है कि इन चुनावों में पासा पूरी तरह उलटा पड़ा है और मोदी के व्यक्तित्व के आगे बड़े-बड़े सूरमा ढेर हो गये हैं किन्तु राजनीति तो राजनीति ही होती है जिसके पांव कहीं नहीं ठहरते। अभी निकट भविष्य में तीन राज्यों महाराष्ट्र, झारखंड व हरियाणा के चुनाव इसी साल के अन्दर होने हैं और इन तीनों राज्यों में ही भाजपा का मुख्य मुकाबला कांग्रेस पार्टी से ही होना है।
अधीर रंजन चौधरी के लोकसभा में इस पार्टी के नेता होने से कांग्रेस को जनता का दर्द उसकी जुबान में ही सदन में बयान करने में बहुत सुविधा होगी। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मनमोहन सरकार में बीड़ी उद्योग को नये विज्ञापन मानकों के तहत संकटों से जूझना पड़ा था तो श्री चौधरी ने जमकर अपनी आवाज बुलंद की थी क्योंकि मुर्शीदाबाद में ही सबसे ज्यादा बीड़ी मजदूर काम करते हैं। इसका नमूना भी श्री चौधरी ने आज उस समय पेश कर दिया जब लोकसभा अध्यक्ष पद पर चुने गये श्री ओम बिरला को बधाई देते हुए कहा कि विभिन्न दलों के सांसद तो अपनी-अपनी तरह से अपनी बात रखेंगे, मगर अध्यक्ष को ‘निष्पक्ष’ रहने की जरूरत है।