भारत भले ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इसीलिए यहां सियासत की जड़ें बहुत गहरी एवं मजबूत हैं। इस समय राजनीतिक आकाश पर सबसे ज्यादा चर्चा सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा की है और साथ ही कांग्रेस भी बराबर चर्चा में है। यह बात अलग है कि राजनीति को गर्माने के लिए हमारे यहां मुद्दे उछलते रहते हैं और इनका सबसे ज्यादा महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि ये किसी भी दल को सत्ता की चाबी सौंप सकते हैं। हम इन मुद्दों की विविधताओं पर तो नहीं जाना चाहते लेकिन इनके स्वरूप की चर्चा जरूरत करना चाहेंगे जिससे भारतीय लोकतंत्र में वोटर का दिलोदिमाग बदलता है और वह किसी की भी तकदीर संवार और बिगाड़ सकता है। हम मौजूदा हालात में कांग्रेस और भाजपा के बीच कुछ ऐसे मुद्दों की बात करना चाहते हैं जो जनता के बीच में अहमियत रखते हैं और कल तक जो मुद्दा भाजपा का था, उसे कांग्रेस ने एडॉप्ट कर लिया। इसी तरह जो मुद्दा कल तक कांग्रेस अपना मानती थी, उसे भाजपा ने हाइजैक कर लिया जिससे उसकी पोजीशन सुदृढ़ हो रही है। कहने का मतलब यह है कि अपनी नई रणनीति तो हर कोई तय कर ही रहा है साथ ही इस रणनीति को धार देने के लिए एक-दूसरे के मुद्दों को अपने साथ जोड़ने की होड़ लगी हुई है।
कल तक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक हाईफाई नेता के रूप में जाने जाते थे परंतु अब उनकी छवि एक जमीनी नेता की बन रही है तो यह सब भाजपा की देन है। राहुल गुजरात में मंदिर में जाएं या मंच पर चढ़ें या कहीं भी, एक टीका लगाने का रिवाज सा चल पड़ा है। गुजरात के दौरे पर राहुल गांधी का मंदिर में जाना, ताली बजा-बजाकर भजन-कीर्तन करना और लोगों के बीच में देर तक बैठे रहना यह वो हिन्दुत्व है जिसे कांग्रेस अब अपने साथ जोड़ रही है। इसका श्रेय भाजपा को जाता है या आरएसएस को इसे लेकर एक नई बहस जरूर छिड़ गई है लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी अब बराबर माथे पर टीका लगाकर जनसभाओं में जाते हैं, पब्लिक के बीच में जाते हैं और हिन्दुत्व को एडॉप्ट कर रहे हैं तो कांग्रेस के लिए यह शुभ संकेत है परंतु यह तो तय है कि कल तक ये सब हथियार भाजपा के पास थे, जो उसे आरएसएस ने धरोहर के रूप में सौंप रखे थे। अब बात अगर बुर्के की जाए तो बड़ी बात यह है कि तीन तलाक को लेकर भाजपा जिस तरह आगे बढ़ रही है तो यह एक वो मुद्दा है जिसे भगवा के नाम से मशहूर इस पार्टी ने हाईजैक कर लिया है। तीन तलाक पर फैसला आने से पहले ही उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में सब कुछ भाजपा के पक्ष में जाने लगा। हिन्दुत्व की जो लहर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाने से शुरू हुई वह अपना असर देशभर में दिखा रही है। रह-रहकर ऐसे मुद्दे जो मुसलमानों से जुड़े हैं उन्हें भी उछाला गया लेकिन भाजपा चतुराई से मुसलमानों को अपनी ओर खींचने का काम कर रही है। जिस मुस्लिम मुद्दे को कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता की बात कहकर अपने पक्ष में जोड़ रखा था और भाजपा पर साम्प्रदायिकता का लेवल लगाकर उसे अलग-थलग करने की कोशिश की गई तो भाजपा ने कांग्रेस पर अब एक तीर से दो निशाने किए हैं। अनेक मुस्लिम संगठन अब भाजपा के साथ इसलिए हैं कि उन्हें बराबर अहसास कराया जा रहा है कि भाजपा मुसलमानों के हितों का भी ध्यान रख रही है।
कहने का मतलब यह है कि एक-दूसरे के मुद्दे कांग्रेस और भाजपा ने लपक लिए हैं। यह हमारी राजनीति का एक बड़ा गुण है। इसी तरह कई और मुद्दे भी हैं जैसे- चालीस से बड़ी उम्र की महिलाओं को हज जाने की इजाजत और भारत में अनेक मुस्लिम स्थानों पर महिलाओं को जाने की इजाजत, इसी तरह अनेक हिन्दू मंदिरों में भी महिलाओं को अब प्रवेश की अनुमति मिल रही है तो कहीं न कहीं इसके पीछे राजनीतिक लाभ की कोशिशें भी चल रही हैं। भले ही सब कुछ अदालत के आदेशों से हो रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक अगर ये मामले पहुंचे हैं तो राजनीतिक पाटियों से संबंध रखने वाले लोगों की ही देन है, जो मुद्दे उछालने में यकीन रखते हैं। अब तो इन मुद्दों से राजनीतिक लाभ को सामने रखकर भविष्य का नफा-नुकसान तय किया जा रहा है। हम इस कड़ी में एक और अहम मुद्दा राम मंदिर के रूप में जोड़ रहे हैं और क्योंकि मामला पहले से ही कोर्ट में है तो टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए लेकिन सब जानते हैं कि श्रीराम के नाम पर भाजपा ने यूपी में अपनी जड़ें जमाई और केंद्र में कांग्रेस को इसी राम मंदिर के मुद्दे पर चुनौती दी थी। अब मंदिर निर्माण को लेकर आगे की रणनीति भाजपा कैसे अख्तियार करेगी यह समय बताएगा लेकिन इसी मंदिर निर्माण को लेकर अयोध्या की धरती पर बाबरी मस्जिद जब गिराई गई थी तो साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेेक्षता के बीच हुई जंग में कांग्रेस ने काफी लाभ उठाया था।
अब भाजपा के अंदर से मंदिर निर्माण को लेकर कानूनी दांव-पेचों के बीच पूरी रणनीति बन रही है तो उधर कांग्रेस ने पूरी चतुराई के साथ टीके को एडॉप्ट कर लिया। मतलब हिन्दुत्व को फिलहाल गुजरात में आजमाया जा रहा है। एक बात तो तय हो गई कि अगर राहुल अब टीका लगा रहे हैं तो यह एक अच्छी पहल भले ही हो लेकिन एजेंडा तो हिन्दुत्व का ही था तथा इसका असर और परिणाम चुनावों में कैसा रहेगा यह जवाब सबसे पहले हमें गुजरात में मिलेगा। फिलहाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव 2017 के दिसंबर में तय हैं, लिहाजा इन मुद्दों का कितना असर कांग्रेस-भाजपा पर होगा जवाब वक्त देगा लेकिन इन गर्मागर्म मुद्दों को लपकने का काम जिस तरह से किया गया वह देश की राजनीति में कहीं न कहीं अपना प्रभाव मतदाता के ऊपर जरूर छोड़ेगा, यह तय है।