अगर देश में लोकतंत्र सबसे बड़ा मंदिर है और इसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं तो संभवत: इसका श्रेय हमारी उस संसद को दिया जाना चाहिए जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपनी बात रखने का बराबर का मौका मिलता है। लोकतंत्र की लड़ाई लोगों के बीच जाकर लड़ी जाती है और यहीं से नेता लोग देश की जनता द्वारा चुने जाने पर संसद पहुंचते हैं। इस दृष्टिकोण से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सब बराबर हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि एक व्यक्ति सरकार का पीएम है और दूसरा विपक्ष का नेता।
राहुल गांधी ने दो दिन पहले मानसून सत्र के पहले दिन अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के मौके पर जिस तरह से खुद को प्रस्तुत किया और विशेष रूप से एक विपक्षी नेता के रूप में सत्ता पक्ष पर हमले किए वह न सिर्फ लाजवाब है बल्कि उनकी छवि को बदलने के लिए इस अंदाज को देशवासी एक जरूरत बता रहे हैं। सरकार पर हमले करना विपक्ष की रणनीति हो सकती है और राहुल ने भी इसे अंजाम दिया। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने जब जवाब देने की बारी आई तो पूरा पलटवार करते हुए यही सिद्ध किया कि वह किसी वजह से ही देश और दुनिया में लोकप्रियता का इतना ऊंचा मुकाम हासिल किए हुए हैं। अपने संबोधन का समापन करते हुए राहुल ने बड़े ही विनम्र अंदाज से प्रधानमंत्री मोदी की सीट की ओर कदम बढ़ाए और सीधा उन्हें उनकी सीट पर बैठे-बैठे गले से लगा लिया।
पीएम कुछ क्षण अवाक् रह गए और फिर उंगलियों से इशारा भी किया। राहुल मुस्कुराए और चल दिए। इसके अगले ही क्षण मोदी ने उन्हें दोबारा बुलाया तथा उनसे हाथ मिलाकर उनकी पीठ भी सहलाई। लोकसभा में अक्सर ऐसा होता नहीं परंतु इस दुर्लभ नजारे को देखकर मीडिया जगत में खासतौर पर सोशल मीडिया पर हलचल जरूर मच गई तथा यही कहा जाने लगा है कि राहुल गांधी अब एक नए राहुल के रूप में उभर रहे हैं। सन् 2019 के चुनाव से पहले कांग्रेस और राहुल गांधी के अलावा विपक्ष को जो चाहिए था वह एक मजबूत आधार के रूप में उन्हें मिल गया है, ऐसी अभिव्यक्ति अब राजनीतिक विश्लेषक करने लगे हैं।
जब से मोदी ने (2014 में) देश की बागडोर संभाली है तब से लेकर आज तक मोदी ने कांग्रेस, गांधी परिवार और विशेष रूप से सोनिया और राहुल गांधी को निशाने पर ले रखा था। सड़क से लेकर संसद तक मोदी के आक्रमण में राहुल निशाने पर रहते हैं। राहुल भी अपनी रैलियों में उन पर पलटवार करना नहीं भूलते लेकिन यह सच है कि लोकतंत्र में हर किसी को अपनी-अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इस कड़ी में राहुल गांधी ने सही जगह, सही मंच पर संसद में बेरोजगारी जैसे कुछ मुद्दे उठाए। इतना ही नहीं राफेल डील को लेकर भी उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार पर चुन-चुन कर वार किए। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने खुद को हिन्दुस्तानी कहकर यह बेबाक ढंग से कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी देश में किसी भी आम नागरिक के मरने पर मुंह नहीं खोलते। देश पीएम से हर अच्छे-बुरे वक्त में अपेक्षा रखता है। उन्होंने दहाड़कर कहा कि आप भले मुझे पप्पू कह सकते हैं लेकिन मेरे दिल में हिन्दुस्तान बसता है और हर आम हिन्दुस्तानी के दिल में डॉक्टर अंबेडकर बसते हैं और आप उनकी उपेक्षा नहीं कर सकते। इसके साथ ही उन्होंने आरएसएस पर भी प्रहार करते हुए अपनी बात समाप्त की। अक्सर मोदी उनके बारे में कहते हैं कि राहुल बोलेंगे तो पता नहीं कौन सा भूकंप आएगा लेकिन कहने वाले कह रहे हैं कि आज सचमुच राहुल के भाषण से भूकंप तो आ गया, इसीलिए वह भूकंप के केंद्र मोदी की तरफ गए और वहां जो कुछ हुआ वह किसी से छुपा नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं कि राहुल अपनी छवि को लेकर जितने चिंतित रहे हैं उससे कहीं ज्यादा चिंतित कांग्रेस भी रही है, क्योंकि अब वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सवाल उपचुनावों में हार-जीत या विपक्षी एकता का नहीं, बल्कि उनकी साख का है और राहुल ने जनता के बीच एक वह विश्वास जीतने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं, जिसकी एक लोकतंत्र में सबसे बड़ी जरूरत होती है और जिसका नाम विपक्ष या कांग्रेस है। दूसरी ओर मोदी के बारे में साफ कहा जाना चाहिए कि वह एक सुलझे हुए और जमीनी नेता हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय छवि पर देश को फोकस करते हुए भारत को ऊंचा मुकाम दिलाना उनका मकसद रहा है और उसमें वह कामयाब भी हुए हैं। इसीलिए 2019 को सामने रखकर वह डटे हुए हैं।
कहने वाले ने कहा कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है। लोकतंत्र में सत्ता हासिल करने के लिए सब जानते हैं कि महा मुकाबले के लिए शतरंज बिछ चुकी है। ये वार और पलटवार की इस बिसात पर शह और मात का ही रूप लेकर आगे बढ़ रहे हैं। भ्रष्टाचार और ब्लैकमनी को सबसे बड़ा मुद्दा मानकर पीएम मोदी आगे बढ़ रहे हैं। इस कड़ी में उन्होंने देश में एक संदेश दिया कि भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए कांग्रेस विहीन देश की जरूरत है। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर आज किसानों तक के मुद्दों पर चर्चा हो रही है, तो वहीं कहीं महंगाई और कहीं विकास दर को लेकर वार-पलटवार हो रहे हैं। फिलहाल मोदी ने सफलतापूर्वक भाजपा का झंडा उठा रखा है। राहुल हों या मोदी, इन दोनों को कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जो कुछ यह कर रहे हैं या करेंगे उसका असर देश पर जरूर पड़ेगा। जमीनी स्तर पर राहुल गांधी अब पप्पू की छवि से बाहर आकर बराबर इसी पप्पू को लेकर मोदी से काउंटर कर रहे हैं और मोदी भी उन्हें हर मोर्चे पर अहसास करा रहे हैं कि हम किसी से कम नहीं।
आने वाला वक्त मोदी और राहुल के बड़े-बड़े दावों का जवाब देगा लेकिन हम इतना जरूर कह सकते हैं कि 20 जुलाई 2018 को संसद में विपक्ष और सत्ता पक्ष की ओर से राहुल गांधी बनाम पीएम मोदी के बीच में जो कुछ हुआ वह भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा सबसे बड़ा उदाहरण है जो हमें दुनिया में सबसे अलग और सबसे महान बनाता है। हार-जीत को छोड़ दिया जाए, लेकिन इस उदाहरण के प्रस्तुतिकरण के लिए राहुल और मोदी दोनों ही बधाई के पात्र हैं।