हमारे देश की विदेश नीति फायर ब्रिगेड के एक दल की तरह है जो सिर्फ आग लगने पर ही बुझाने का काम करता है। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां सायरन बजाती घटनास्थल पर पहुंचती हैं। एडहॉक फैसलों के कारण हम अपने रणनीतिक हितों को परिभाषित करने में भी असमर्थ रहे हैं। बार-बार हमें सीमांत क्षेत्रों के भीतर और बाहर दोहरी चुनौितयों का सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है कि सारा परिदृश्य भारत के लिए चुनौती भरा आैर विस्फोटक हो चला है।
यह सही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद चीन को डोकलाम में पहली बार भारत के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और 73 दिनों तक भारत-चीन के सैनिक आमने-सामने रहे लेकिन कोई गोली नहीं चली। डोकलाम पर विवाद का शांत होना भी एक भ्रम ही रहा क्योंकि ऐसी खबरें आती रही हैं कि चीन ने डोकलाम के निकट सड़क बना ली है और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए बुनियादी ढांचा खड़ा कर लिया है।
यद्यपि भारत सरकार यह कहती है कि डोकलाम में यथास्थिति है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स कुछ और ही स्थिति बयान करती हैं। चीन डोकलाम पर भारत के कड़े विरोध को सहन कैसे कर सकता है? चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। उसने अरुणाचल के पास दबाव बनाने की कार्रवाई करते हुए राज्य के किबिथू के पास घर, कैम्प बना डाले आैर दूरसंचार टावर आैर सर्विलांस यंत्रों से युक्त आब्जर्वेशन चौकियां भी स्थापित कर डालीं।
यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब चीन में भारत के राजदूत गौतम बंबावाला ने डोकलाम में चीनी सैनिकों की संख्या बढ़ने की खबरों से इन्कार किया था। उन्होंने कहा था कि मौके पर यथास्थिति बनी हुई है। चीन ने अब भारत के खिलाफ डोकलाम-2 की साजिश रच दी है। भारत ने भी चीन के तिब्बती क्षेत्र की सीमाओं पर अरुणाचल सैक्टर के रिबांग, दाऊ देलाई अाैर लोहित घाटियों में अपने और सैनिक बढ़ा लिए हैं।
ब्रह्मोस मिसाइल भी तैनात कर दी है। विस्तारवादी और आक्रामक चीन एलएसी के पास अपनी ताकत को बढ़ा रहा है। 2016 में जहां एलएसी पर चीन ने 426 बार दखलंदाजी की थी, वहीं साल 2017 में यह मामले 273 थे। अरुणाचल को लेकर चीन की हरकतों को देखते हुए ऐसा लगता है कि चीन भारत के सीमांत राज्य को हड़प लेना चाहता है। उसकी नजरें इस राज्य पर काफी वर्षों से लगी हुई हैं।
नवम्बर 2006 में जब चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री हूं जिंताओ भारत की यात्रा पर थे उसी दौरान भारत में चीन के राजदूत सन यूक्सी ने यह कहकर हंगामा कर दिया था कि पूरा अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है, तवांग उसी हिस्से का एक अंग है, इसलिए उस पर पूरा अधिकार चीन का है। उसी दौरान चीन की एक सरकारी संस्था द्वारा प्रकाशित पत्र में यह कहा गया था कि चीन 1962 जैसी भूल नहीं करेगा।
विजित इलाकों काे लौटाया नहीं जाएगा, भारत को यह बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। अरुणाचल प्रदेश की कुल सीमा तकरीबन 90 हजार वर्ग किलोमीटर की है, जिसमें 83,743 किलोमीटर तक के हिस्से पर अपना पुश्तैनी अधिकार मानता है। इस उपक्रम से मैकमोहन लाइन और वास्तविक सीमा रेखा की मान्यता पूरी तरह से ध्वस्त हो जाती है। चीन शुरू से ही मैकमोहन लाइन को मानने से इन्कार करता रहा है जबकि भारत इस लाइन को आज भी भारत आैर चीन की अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा मानता है।
भारत की सरकारें देश के लोगों को मानसिक रूप से यह समझाने का प्रयास करती रही हैं कि भारत और चीन के बीच की पर्वतीय सीमा ठीक तरह से निर्धारित नहीं है, इसलिए इसे चीन के साथ वार्ता करके ही निर्धारित किया जा सकता है। चीन ने बड़ी कुटिलता के साथ सीमा विवाद को अपने सामरिक विस्तार के मोहरे की तरह प्रयोग किया। एक आेर चीन भारत की सीमा पर अपने तम्बू गाड़कर समस्या का आपसी बातचीत से हल निकालने की बात करता है तो दूसरी ओर भारत को आंख दिखाकर सीमा क्षेत्र में आधारभूत ढांचा खड़ा करने के लिए किए जा रहे निर्माण कार्यों को बन्द करने की धमकी देता रहता है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के लिए भी नत्थी वीजा व्यवस्था लागू की थी। वह कहता रहा है कि अरुणाचल तो चीन का हिस्सा है इसलिए उन्हें चीनी वीजा की जरूरत नहीं।
चीन ने जम्मू-कश्मीर के निवासियों को भी यह कहकर नत्थी वीजा जारी किए थे कि वह एक विवादास्पद इलाका है। चीन भारत के भीतर के कश्मीर को विवाद वाला इलाका और पाक के कब्जे वाले क्षेत्र काे पाकिस्तान का उत्तरी हिस्सा कहता रहा है। इस समय शीतयुद्ध अमेरिका-रूस में नहीं बल्कि भारत और चीन के बीच है। भारत की निगाह में चीन वर्चस्ववादी है, चीन भारत को नौसिखिया मानता है। भारत ने भी कई रणनीतिक भूलें की हैं। भारत के साथ व्यापार में चीन को जबर्दस्त बढ़त हासिल है। भविष्य में कोई युद्ध होगा तो यह सिर्फ एक पड़ोसी देश के साथ सीमित नहीं रहेगा।
आज पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार चीन के पाले में खड़े दिखाई देते हैं। अब सवाल यह है कि भारत चीन का मुकाबला कैसे करे जबकि चीन अरुणाचल के लोगों को भावनात्मक स्तर पर भारत से तोड़ना चाहता है। अरुणाचल में पूर्व की सरकारों ने कोई ध्यान नहीं दिया।
सीमांत क्षेत्रों में कोई आधारभूत ढांचा तैयार ही नहीं किया। मोदी सरकार के सत्ता में आने ने बाद ही इस ओर ध्यान दिया है लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यह सही है कि भारत अब 1962 का भारत नहीं है, लेकिन उसे अपनी सैन्य ताकत को चीन के बराबर लाना होगा और किसी दर्शन की जरूरत नहीं। भारत को सीमांत क्षेत्रों में किसी भी खतरे से निपटने के लिए पूरी तैयारी करनी होगी। रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां याद रखेंः
दर्शन की लहरें अधिक मत उछाल,
विचारों में विवर्त में पड़ा
आदमी बड़ा विवश होता है।
गांधी, बुद्ध और अशोक, विचारों से अब नहीं बचेंगे
उठा खड्ग, ये आैर किसी पर नहीं
स्वयं गांधी, गंगा आैर गौतम पर संकट है।