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राजनीतिक हिंसा का षड्यंत्रकारी खेल (4)

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संघ, भाजपा कार्यकर्ता होना गुनाह है ?

केरल में 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठï नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ओ. राजगोपाल ने पहली बार चुनाव जीतकर इतिहास रच डाला। उन्होंने राज्य की निमाम विधानसभा सीट से माकपा उम्मीदवार को हराया था। केरल विधानसभा में पहली बार कमल खिला। केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में भी भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया। उसका वोट बैंक भी बढ़ा है। केरल में भाजपा का उदय स्पष्ट है। भाजपा की सशक्त दस्तक को वामपंथी एक चेतावनी के रूप में ले रहे हैं। यही कारण है कि वामपंथी भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ता लगातार संघर्ष कर रहे हैं और हर क्षेत्र में अपना कार्यालय स्थापित कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि केरल में शैतान का राज हो गया है। भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं को केरल में जीने का अधिकार ही नहीं।कहते हैं शिक्षा व्यक्ति को इन्सानियत से जीना सिखाती है, विनम्रता सिखाती है लेकिन देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल में यह क्या हो रहा है? आखिर यह कैसा राजनीतिक विरोध है? जहां उस बच्चे को बख्शा नहीं जा रहा है जिसे मालूम ही नहीं दुनिया क्या है? सियासी रंजिश में इतनी नफरत क्यों?ï जितनी क्रूरता देखने को मिल रही है वह सभ्य समाज के लिए अच्छा संकेत नहीं है। पिछले वर्ष 28 दिसम्बर को कोझीकोड की घटना माकपा की बर्बरता का एक उदाहरण है। कोझीकोड के पलक्कड़ में 28 दिसम्बर की रात माकपा के गुंडों ने भाजपा नेता चादयांकलायिल राधाकृष्णन के घर पर पैट्रोल बम से उस वक्त हमला किया जब उनका समूचा परिवार गहरी नींद में था। सोते हुए लोगों को आग के हवाले करके बदमाश भाग गए। इस हमले में भाजपा की मंडल कार्यकारिणी के सदस्य 44 वर्षीय चादयांकलायिल राधाकृष्णन, उनके भाई कन्नन और भाभी विमला की मौत हो गई। राधाकृष्णन ने उसी दिन दम तोड़ दिया था जबकि आग से बुरी तरह झुलसे कन्नन और उनकी पत्नी विमला की इलाज के दौरान मौत हो गई। यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंदन का चुनाव क्षेत्र है। राधाकृष्णन और उनके भाई कन्नन की सक्रियता से यहां भाजपा का जनाधार बढ़ रहा था। भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से भयभीत माकपा के कार्यकर्ताओं ने इस परिवार को खत्म कर दिया। वामपंथी नृशंसता का एक और उदाहरण है जनवरी 2017 के पहले सप्ताह में मल्लपुरम जिले की घटना। भाजपा कार्यकर्ता सुरेश अपने परिवार के साथ कार से जा रहे थे, उसी दौरान मल्लपुरम जिले में तिरुर के नजदीक माकपाई गुंडों ने उन्हें घेर लिया। हथियार के बल पर जबरन कार का दरवाजा खुलवाया और उनकी गोद से 10 माह के बेटे को छीन लिया और उसके पैर पकड़कर सड़क पर फैंक दिया। सुरेश पर भी जानलेवा हमला किया। हाल में कन्नूर में 18 जनवरी को भाजपा के कार्यकर्ता मुल्लाप्रम एजुथान संतोष की हत्या की गई। संतोष की हत्या माकपा के गुंडों ने उस वक्त कर दी, जब वह रात में अपने घर में अकेले थे। इस तरह घेराबंदी करके हो रही संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या से स्थानीय जनता में आक्रोश बढ़ा। संतोष की हत्या के बाद केरल में बढ़ रहे जंगलराज और लाल आतंक के खिलाफ आवाज बुलंद करने का संकल्प संघ और भाजपा ने लिया है। इस संदर्भ में 24 जनवरी को दिल्ली में व्यापक विरोध-प्रदर्शन किया गया। जंतर-मंतर पर हुए धरने में आरएसएस के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और सह प्रचार प्रमुख जे. नंद कुमार के अलावा दिल्ली और केरल प्रांत के संघ के कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। हाल ही में आरएसएस कार्यकर्ता राजेश पर 20 लोगों ने हॉकी से हमला कर दिया और उनका बायां हाथ काट डाला गया। तिरुवनंतपुरम के प्राइवेट अस्पताल में राजेश की मौत हो गई। केरल का कन्नूर लाल आतंक के लिए सबसे अधिक कुख्यात है। ऐसा माना जाता है कि अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने का प्रशिक्षण देने के लिए वामपंथी खेमे में गर्व के साथ कन्नूर मॉडल प्रस्तुत किया जाता है। वामपंथी सरकारों के रहते इस कन्नूर मॉडल को लागू करने का षड्यंत्र रचा गया। हैरानी होती है जब राष्ट्रीय मीडिया खामोश रहता है।-ऌऌक्या माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा राजनीतिक विरोधियों की हत्या करना असहिष्णुता की श्रेणी में नहीं आता?-क्या वहां भाजपा या संघ कार्यकर्ता होना गुनाह है?-आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराने पर मानवाधिकार की बात करने वाले चुप क्यों हैं?-अवार्ड वापसी समूह और असहिष्णुता की राजनीति करने वाले सारे के सारे कहां दुबके हुए हैं? (क्रमश:)

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