उपभोक्ता संरक्षण कानूनः जागो ग्राहक जागो लकिन ‘जागो ग्राहक जागो’ का भारी-भरकम प्रचार किए जाने के बावजूद ग्राहक जाग नहीं रहे। ग्राहक जाग इसलिए नहीं रहे क्योंकि वे जागरूक नहीं हैं। दरअसल बाजार में व्याप्त भ्रष्टाचार, मुनाफाखोरी और अन्य कारणों से उपभोक्ताओं काे मिलावटी और निम्न गुणवत्ता के उत्पाद मिल रहे हैं। उन्हें पैसे देने के बावजूद उचित और गुणवत्ता वाली सेवाएं भी प्राप्त नहीं हो रहीं। उपभोक्ताओं की परेशानी के कई कारण देखे जा सकते हैं। उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए सरकारों ने समय-समय पर कई कानून बनाए लेकिन उपभोक्ताओं के पूरी कीमत अदा करने के बावजूद उन्हें सही वस्तुएं और सेवाएं प्राप्त नहीं हो रहीं।
उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए 24 दिसम्बर, 1986 को राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। इसके अलावा 15 मार्च देश में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत में इसकी शुरूआत 17 वर्ष पहले यानी सन् 2000 में हुई थी। बाजार का हाल देखिए, हर त्यौहार पर नकली दूध, मिठाइयों में मिलावट, खाद्य सामग्री में मिलावट आम बात है। कृषि क्षेत्र में घटिया बीज, नकली उर्वरक, अत्यंत जहरीले कीटनाशकों की सप्लाई हो रही है। फसल तो खराब होती ही है किसानों की जानें भी जा रही हैं। यहां तक कि दवाओं में भी मिलावट या फिर नकली दवाइयां। गुमराह करने वाले विज्ञापनों के जरिये घटिया माल आनलाइन बेचा जा रहा है। इससे साफ जाहिर है कि उपभोक्ता इन्हें खरीद कर पछताता है, वह कर कुछ नहीं पाता। उपभोक्ता अदालतों में प्रक्रिया काफी लम्बी और जटिल है कि वह संघर्ष करना ही नहीं चाहता। उपभोक्ता सोचता है कि जितने की वस्तु है, उससे ज्यादा खर्च तो कानूनी लड़ाई में लग जाएगा, वक्त बर्बाद होगा सो अलग।
इसका अर्थ यही है कि वर्तमान उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा नहीं कर पा रहा। दूसरी तरफ अनेक ऐसे जागरूक उपभोक्ता हैं जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की और बड़ी कंपनियों के खिलाफ अपने मुकद्दमे जीते। उपभोक्ता अदालतें आज बड़ी कंपनियों के खिलाफ फैसले दे रही हैं और उपभोक्ताओं को कीमत के साथ अतिरिक्त राशि भी दिलवाई जा रही है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में 1989, 1993 और 2002 में संशाेधन किए गए। उपभोक्ता संरक्षण विधेयक के प्रावधान समय-समय पर सख्त किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व, दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी देशाें के लिए उपभोक्ता संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा है कि उपभोक्ता संरक्षण सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। उपभोक्ता संरक्षण के लिए नया कानून लाया जाएगा। आने वाले कानून के तहत भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कड़े प्रावधान किए जा रहे हैं।
पूंजीवादी व्यवस्था वाले विकसित देशों में कहा जाता है कि ‘कंज्यूमर इज किंग’ यानी उपभोक्ता राजा है। पहले बिल्डरों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए कोई कानून नहीं था, अब सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों के लिए ‘रेरा’ जैसे कदम उठाए हैं। इससे बिल्डरों की मनमानी पर अंकुश जरूर लगा है। मौजूदा कानून में काफी खामिया हैं, अगर जमाखोरी, कालाबाजारी आैर मिलावट करने वालों की सजा की अवधि में और बढ़ौतरी कर दी जाए, साथ ही उत्पादों की गुणवत्ता के मानदंड नए सिरे से तय हों तो उपभोक्ता वास्तव में किंग हो जाएगा। प्रधानमंत्री मेक इन इंडिया की बात करते हैं लेकिन भारत में बनी वस्तुओं की क्वालिटी एक बड़ा मसला है। हम विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की बात तो करते हैं, स्वदेशी उत्पाद अपनाए जाने चाहिएं लेकिन अगर उनकी गुणवत्ता ही बेहतर नहीं होगी तो लोग विदेशी उत्पाद अपनाएंगे ही।
उपभाेक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रतिविष्ट सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बकाया राशियों के समान प्रमाणपत्र मामलों के माध्यम से निपटान, जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, जिला स्तर पर निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद आदि बहुत कुछ है। इसी कानून का नतीजा है कि शहरों में जागरूकता बढ़ी है लेिकन अपने अधिकारों के लिए लड़ने वालों की संख्या कम है। टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हैल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान है। उपभोक्ताओं को मालूम होना ही चाहिए कि वह जाे खा रहे हैं उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा आदि की शुद्धता कितनी है। उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें। सरकार जागरूक है लेिकन लोग भी जागरूक होने चाहिएं। लोग कम से कम स्वास्थ्य, गुणवत्ता और उनके साथ हुई धोखाधड़ी के लिए तो जूझ ही सकते हैं। जागो ग्राहक जागो !