सीबीएसई की 12वीं कक्षा के नतीजों के मामले में दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने प्राइवेट स्कूलों को मात दी है। इसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस बार सरकारी स्कूलों का परिणाम 90.7 प्रतिशत रहा जबकि प्राइवेट स्कूलों का रिजल्ट 88 प्रतिशत रहा जबकि 10वीं के परिणामों में दिल्ली के सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। केवल 69.32 फीसदी छात्र पास हुए जबकि प्राइवेट स्कूलों का परिणाम 89.45 फीसदी रहा। सरकारी स्कूलों का रिजल्ट खराब होने की वजह यह भी मानी जा रही है कि 9वीं में बड़ी संख्या में छात्र फेल हुए थे और 10वीं का प्री-बोर्ड में रिजल्ट काफी खराब था। इन परिणामों को लेकर सियासत भी शुरू हो चुकी है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा 12वीं के परिणामों के बाद किए गए दावों को लेकर बयानबाजी शुरू हो चुकी है।
शिक्षा का मुद्दा काफी गम्भीर है, इस पर सकारात्मक बहस होनी चाहिए। परिणामों में उतार-चढ़ाव से इतर दिल्ली में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि सरकारी स्कूलों का कायापलट हुआ है। शिक्षा आैर स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने काफी महत्वपूर्ण काम किए हैं। इसका पूरा श्रेय सरकार को दिया ही जाना चाहिए। 12वीं कक्षा के परिणामों में ऐसा पहली बार हुआ जब सरकारी स्कूलों ने बाजी मारी है। 20 वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो 1997-2006 तक पास प्रतिशत कभी 80 फीसदी तक नहीं पहुंचा था। वर्ष 2007 से इसमें वृिद्ध शुरू हुई। शिक्षा विशेषज्ञ शिक्षा स्तर में सुधार को इसकी वजह मानते हैं। बीते एक दशक से लगातार यह आंकड़ा बढ़ रहा है। एक दशक बाद आंकड़ा 90 फीसदी से ऊपर गया, यह कोई कम उपलब्धि नहीं।
सरकारी स्कूलों की हालत काफी खस्ता थी, उनमें बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। जर्जर इमारतें, पेयजल की कमी, संसाधनों का अभाव साफ नजर आ रहा था। स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे थे। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को निठल्ला करार दिया जाता रहा है, उनमें काम को लेकर उत्साह का अभाव था। शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों में उलझाए रखा जाता था। कभी उन्हें जनगणना के आंकड़े इकट्ठे करने के लिए लगा दिया जाता था तो कभी चुनाव की ड्यूटी पर। दिल्ली सरकार ने शिक्षकों को प्रशासनिक कामों से हटाकर कक्षा को अहमियत देने के लिए कदम उठाया। बच्चों के लिए शिक्षकों की निरंतरता काफी मायने रखती है। स्कूलों में शिक्षा के लिए आकर्षक वातावरण सृजित करने के लिए भरपूर प्रयास किए गए। स्कूलों की जर्जर हो चुकी इमारतों का पुनर्निर्माण किया गया। बच्चों के लिए चटख रंगों का इस्तेमाल किया गया। स्वच्छता, पेयजल और अन्य बुनियादी सुविधाओं का ख्याल रखा गया। दिल्ली सरकार द्वारा मेगा पीटीएम यानी शिक्षकों और अभिभावकों की सांझी बैठकों का आयोजन किया गया। अब मेगा पीटीएम बैठकों में शिक्षक-अभिभावक आपस में बातचीत करते हैं।
शिकायतों का समाधान किया जाता है। इन बैठकों में अभिभावकों के समूह को कुछ जिम्मेदारियां भी दी जाती हैं। उनसे कहा जाता है कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के काम में अपनी भागीदारी के रास्ते सुझाएं। इससे अभिभावकों को पता चलता है कि उनका बच्चा शिक्षा में कितनी प्रगति कर रहा है। शिक्षा विभाग ने गैस्ट टीचरों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया है जिसका पाठ्यक्रम खेल-खेल में चीजों को सीखने पर केन्द्रित था। बच्चों की मदद के लिए 2016-17 में चुनौती आैर 2018 में बुनियाद नाम की परियोजनाएं चलाई गईं। जो प्रिंसिपल कैम्ब्रिज का दौरा करके लौटे थे उन्होंने अपने अध्ययन के मुताबिक जोश के साथ काम करना शुरू किया। अब सरकारी स्कूलों की कक्षाओं में पहले से कहीं अधिक बदलाव नजर आने लगा है। व्यवस्थाएं कभी एक रात में नहीं बदलतीं, उसके लिए निरंतरता बहुत जरूरी है। प्राइवेट स्कूलों की फीस बहुत ज्यादा है। यदि सरकारी स्कूलों में पूरी सुविधाएं मौजूद हों तो फिर अभिभावक दाखिलों के संग्राम में क्यों उलझेंगे। सुविधाएं बेहतर करने से, शिक्षकों का मनोबल बढ़ाने से एक या दो साल के भीतर छात्रों का प्रदर्शन सुधर सकता है। कुछ सरकारी स्कूल तो प्राइवेट स्कूलों से बेहतर दिखाई देने लगे हैं।
दिल्ली सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में अभी बहुत काम करना है। जरूरत इस बात की है कि प्राइमरी शिक्षा गुणवत्तापूर्ण हो, इसके लिए भी दिल्ली सरकार प्रयास कर रही है। हमें समाजवादी चिन्तक राममनोहर लोहिया के इस कथन को याद करना चाहिए कि मिडिल तक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य होनी चाहिए और उच्च स्तर पर शैक्षिक सुविधाएं मुफ्त या सस्ते में उपलब्ध कराई जानी चाहिएं। व्यवस्था ऐसी हो कि गरीब का बच्चा भी अमीर के साथ पढ़े, सबको एक समान शिक्षा मिले तभी प्रतिभाओं का सही आकलन हो सकता है। महानगरों और गांवों में पढ़ने वाले बच्चों में अन्तर साफ दिखाई देता है, ऐसे में प्रतिभा का आकलन कैसे होगा? दिल्ली सरकार को स्कूलों का कायापलट करने के लिए बधाई लेकिन तीखी प्रतिस्पर्धा के बीच शिक्षा क्षेत्र का ढांचा अभी भी पर्याप्त नहीं। उम्मीद है कि दिल्ली सरकार की नीतियों की निरंतरता के चलते और सुधार आएगा। आज ज्ञान आधारित व्यवस्था समय की जरूरत है।