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कोरोना और होली

हम सब जानते हैं कि कल होली है और होली जो रंगों का, खुशी, उल्लास और प्यार का त्यौहार है सद्भावना और मेल-मिलाप का भी त्यौहार है परन्तु इस बार होली को अगर सब घर पर ही बैठकर मनाएं तो सही रहेगा।

हम सब जानते हैं कि कल होली है और होली जो रंगों का, खुशी, उल्लास और प्यार का त्यौहार है सद्भावना और मेल-मिलाप का भी त्यौहार है परन्तु इस बार होली को अगर सब घर पर ही बैठकर मनाएं तो सही रहेगा। एक-दूसरे को फोन पर या व्हाट्सऐप पर वीडियो बनाकर शुभकामनाएं दें तो सही रहेगा। वैसे तो सभी होली मिलन कार्यक्रम स्थगित हो गए हैं। सभी बहुत समझदार हैं परन्तु फिर भी काफी हैं। साे यह समय कोराेना से बचने का है। उसके भयंकर नतीजों को भी याद रखने का है, क्योंकि पहला जिन्दगी का सुख निरोगी काया है और हैल्थ इज वैल्थ।
हमारे यहां कहा गया है कि 
बीती ताहि बिसार दें
आगे की सुध लेई
जो बन आवै सहज में
ताहि में चित धरेइ॥
अर्थात जो बीत गया है उसे भुला दो और भविष्य के बारे में ध्यान रखते हुए जो काम आसान दिखाई देता है उसे करो तथा इसी में दिल लगाओ लेकिन आज कोरोना का समय है इसलिए हम उन पिछली बातों को भुला नहीं सकते जो कोरोना से जुड़ी थी। मैं इस विद्वान की लिखी हुई कीमती बातों को पलट नहीं रही हूं लेकिन कोरोना के मामले में जब देखती हूं कि हम वहीं आ खड़े हुए हैं जो पिछले साल 2020 के मनहूस वर्ष को हमने कोरोना की मार के रूप में झेला था। जब पिछले साल मार्च, अप्रैल, मई में कोरोना के केस बढ़ रहे थे और हर कोई इस लहर से बच रहा था तो यही कह रहे थे कि वर्ष 2021 सबके लिए राहतों भरा होगा। भगवान से यही कामना थी लेकिन पंद्रह दिन पहले जब कोरोना दिल्ली में लगभग शून्य पर आ गया था और देश में यह महज दस हजार पर सिमट गया था क्योंकि हमारे यहां वैक्सीन आ चुकी थी। इससे पहले भारत के लोग लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया से गुजरते हुए खुश हो रहे थे कि तभी प्रधानमंत्री मोदी जी, गृहमंत्री अमित शाह जी और हैल्थ मंत्री डा. हर्षवर्धन और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जी तथा अन्य वैज्ञानिकों और डॉक्टरों तथा मैडिकल टीम के दम पर कोवैक्सीन और कोविशिल्ड का आगमन हुआ तो कोरोना का भी खात्मा होने लगा था लेकिन हमने जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई  नहीं, के इस मंत्र को भुला दिया और लापरवाही का परिणाम यह है कि आज की तारीख में एक दिन में पचास-पचपन हजार से ज्यादा कोरोना मरीज आ रहे हैं। एक दिन में छह-छह लाख अगर एक्टिव केस आयेंगे तो बात कैसे बनेगी। कभी हमारी दिल्ली में जब कोरोना शून्य पर था और अब पंद्रह सौ केस चौबीस घंटे में आ रहे हैं तो फिर क्या विकल्प बचता है। उस पर सोचना होगा। 
इसीलिए मैं पुरानी बातों को जोड़कर कह रही हूं कि पुरानी उन बातों को न भुलाते हुए याद करो कि जब हमने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन किया था। हर रोज, हर घड़ी मास्क लगाते थे, हाथों को सैनेटाईज करते थे, सामाजिक समारोह में जाने से बचते थे लेकिन अनलॉक क्या हुआ हम लोगों ने सारी पुरानी बातें भुला दी इसीलिए आज कोरोना के केस बढ़ रहे हैं। बहुत ही गंभीर दौर से हम गुजर रहे हैं। अमरीका, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्पेन, मैक्सीको, ब्रिटेन, रूस में इसी कोरोना की दूसरी लहर ने भारी तबाही मचाई। जिस भारत ने दुनिया के चालीस से ज्यादा देशों को अपनी वैक्सीन सप्लाई कर रखी हो वहां अगर कोरोना के एक दिन में साठ हजार केस आ जाये तो बताईये इसे क्या कहेंगे। हमें अपनी पुरानी बातों के आधार पर अपने उस पुराने मंत्र को याद रखना होगा जो कोरोना की सुरक्षा से जुड़ा है। याद रखो कोरोना से सुरक्षा हटी तो दुर्घटना घटी। साथ ही मैं एक और अनुरोध करना चाहूंगी कि वैक्सीनेशन को लेकर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि देश के साठ प्लस को टीका लग जाना चाहिए। इसी तरह पैंतालीस प्लस को टीकाकरण का ऐलान सरकार ने कर रखा है। केजरीवाल सरकार भी बहुत कुछ कर रही है लेकिन सरकारी तंत्र तब कुछ नहीं कर पायेंगे अगर देशवासी या दिल्ली के लोग सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करना छोड़ देंगे। विकल्प सीमित है लेकिन हमारा मानना है कि अगर विकल्प का पालन कर लिया तो समझ लो कि कोरोना का खात्मा हो जायेगा। सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन और मास्क की अनिवार्यता को लेकर हमने आखिरी विकल्प के रूप में स्वीकार किया था तो हमने इसी कोरोना पर विजय पा ली थी। सावधान रहिए और आगे बढि़ये। क्योंकि याद रखो विद्वानों ने सही कहा है कि स्वास्थ्य से बढ़कर कोई दौलत नहीं। जिसके पास स्वास्थ्य की दौलत है, जिसके पास सुरक्षा का मजबूत जज्बा है और जो सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर रहा है वही जियेगा। अगर सोशल डिस्टेंसिंग के इस विकल्प को छोड़ दिया तो फिर टीकाकरण क्या करेगा? हमारा मानना है कि टीकाकरण अभियान को और तेज करना होगा और लोगों को सुरक्षा के इसी मंत्र को जीवन में उतारकर अपनी सुरक्षा के साथ सबकी सुरक्षा का संदेश देना होगा तभी भारतीय संस्कृति इस तथ्य पर ही उतरेगी जिसके बारे में कहा जाता है कि जिओ और जीने दो।

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