स्वास्थ्य दुनिया के सामाजिक और आर्थिक विकास में सर्वोपरि महत्व का क्षेत्र है। दवा उद्योग आज आर्थिक विकास की प्रक्रिया में प्रमुख उद्योग बन चुका है। वैश्विक फार्मा सैक्टर में भारतीय दवा उद्योग उल्लेखनीय स्थान हासिल कर चुका है। कोरोना वायरस के संक्रमण का दायरा अब पूरी दुनिया में विस्तार पा चुका है। अमेरिका जैसी विश्व शक्ति समेत 25 से ज्यादा देशों ने भारत से दवाइयों को लेकर गुहार लगाई है। यह देश मलेरिया की दवाई से लेकर शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने तक की दवाइयां मांग रहे हैं। भारतीय फार्मा सैक्टर लगातार 24 घंटे काम कर रहा है लेकिन कोरोना वायरस के चलते भारतीय दवा उद्योग भी प्रभावित हो रहा है।
कोरोना वायरस के कहर के चलते भारत के 40 अरब डालर का दवा कारोबार प्रभावित हुआ है। दरअसल दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल चीन से आता है। अब कच्चे माल की सप्लाई ठप्प ही पड़ी है। कोरोना के चलते केन्द्र सरकार ने कई दवाओं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है। जैनरिक दवाओं के मामले में भारत की भूमिका वैश्विक स्तर पर काफी अहम है। 2015 से 2020 के दौरान भारतीय दवा उद्योग की वृद्धि दर 22.4 फीसदी रही। भारतीय दवा उद्योग इसमें विश्व में टॉप पर है और भारत लगभग 200 देशों को जीवन रक्षक दवाओं की सप्लाई करता है। भगवान का शुक्र है कि चीन में वुहान आैर आसपास को छोड़कर अन्य राज्यों में दवा उद्योग ने आंशिक रूप से काम करना शुरू कर दिया है।
उम्मीद की जाती है कि अगले माह मई तक स्थिति सामान्य होने की उम्मीद है। भारतीय दवाओं की गुणवत्ता काफी अच्छी है, यहां कुशल वैज्ञानिकों आैर सरकार के संयुक्त प्रयासों से वैश्विक दवा बाजारों में भारत ने शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है। दुनिया भर में अलग-अलग बीमारियों के टीकों की 50 फीसदी मांग भारत से पूरी होती है। अमेरिका में दवाओं की सामान्य मांग का 40 फीसदी और ब्रिटेन में कुल दवाओं की 25 फीसदी आपूर्ति भारत ही करता है। इसके अलावा एंटी रेट्रो वायरल दवाएं जिनका इस्तेमाल खतरनाक बीमारियों में किया जाता है, उनकी 80 फीसदी मांग भी भारत ही पूरा करता है। भारत अमेरिका को मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन सप्लाई के लिए भी तैयार हो गया है। अब जबकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस की दवा को ईजाद करने में जुटी हुई है।
अलग-अलग दावे पेश किए जा रहे हैं। भारत में भी वैक्सीन ईजाद करने का काम युद्ध स्तर पर जारी है। जब तक दवा का सफल ट्रायल नहीं हो जाता तब तक दवा की विश्वसनीयता के संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता। भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस को खंडित करने में सफलता प्राप्त कर ली है और उम्मीद है कि इससे उन्हें कोरोना वायरस को लेकर दवाई बनाने में सफलता हाथ लगेगी। कच्चे माल की कमी के चलते छोटे दवा यूनिट प्रभावित हुए हैं। कच्चे माल की कीमतें चार गुणा बढ़ चुकी हैं। सरकार की फार्मा उद्योग पर नजर है आैर वह फार्मा उद्योग को बचाने के लिए हर सम्भव कदम उठा रही है ताकि उद्योग के लिए कच्चे माल की कमी न हो।
यूरोप से आने वाला कच्चा माल काफी महंगा है, जिससे भारतीय यूनिटों पर ताला लग सकता है। कच्चा माल न होने से ब्लड प्रेशर, हार्ट और आपरेशन के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण भी प्रभावित होंगे।
कोरोना वायरस के बाद दुनिया में बहुत कुछ बदल जाएगा। अब दुनिया भर के देशों का प्राथमिक एजैंडा हैल्थ सैक्टर ही होगा। मार्किट वैल्यू के हिसाब से भारत दुनिया का छठा बड़ा फार्मा बाजार बनने की क्षमता रखता है। लोगों की स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने से भी दवाइयों की मांग बढ़ेगी। भारत पहले ही विदेशी नागरिकों के लिए मेडिकल हब बन चुका है। हार्ट सर्जरी या किडनी ट्रांसप्लांट के लिए लोग भारत आते हैं। यहां उपचार विदेशों से सस्ता और विश्वसनीय माना जाता है। फार्मा उद्योग रोजगार के अवसर सृजित कर रहा है। जहां एक ओर स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास हो रहा है वहीं आयुर्वेद औषधि पद्धतियों का भी विकास हुआ है। कोरोना वायरस के बाद शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए जड़ी-बूटी की औषधियों की मांग बढ़ेगी। महामारी के दिनों में भी फार्मा उद्योग एक सुरक्षित क्षेत्र माना गया है, जहां दवाइयों का उत्पादन किया जा रहा है। देश के फार्मा उद्योग को कोई नुक्सान नहीं पहुंचे इसके लिए सरकार को विशेष पैकेज भी देना पड़े तो दे देना चाहिए। सरकार की हर आदमी को उपचार सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हों, यह सपना भी फार्मा उद्योग ही पूरा कर सकता है।
फार्मास्यूटिकल साइंस में उच्च अध्ययन की इच्छा रखने वालों को विदेशों में स्कॉलरशिप तथा रोजगार के मौके मिल सकते हैं। इसके अतिरिक्त यूनिवर्सिटी अध्ययन और शोध संस्थाओं में भी सम्भावनाएं कुछ कम नहीं हैं। निःसंदेह फार्मेंसी का क्षेत्र करियर निर्माण में काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com