भारत रूस को पछाड़ कर कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित देशों में तीसरे स्थान पर पहुंच गया और मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। इसी बीच कोरोना का टीका विकसित करने की तैयारियां भी जोर-शोर से की जा रही हैं। कोरोना के नए टीके की खोज की दिशा में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और भारत बायोटेक मिलकर काम कर रहे हैं। खबर अच्छी है कि इस टीके का जानवरों पर परीक्षण पूरी तरह से खरा उतरा है, इसलिए अब इसका इंसानी ट्रायल शुरू किया जाएगा। आईसीएमआर 15 अगस्त तक दुनिया का पहला टीका पेश करने का इच्छुक है। अगर उसे कामयाबी मिलती है तो दुनिया में भारत झंडे गाड़ देगा और कोरोना से संक्रमित मरीजों को भारी राहत मिलेगी लेकिन कोरोना के टीके को विकसित करने के लिए 15 अगस्त तक की समय सीमा में बांधने को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। कोवैक्सीन के पहले ट्रायल में 375 लोगों को 125-125 के तीन ग्रुपों में बांट कर वैक्सीन की दो डोज दी जाएगी। दूसरी डोज 14 दिन बाद दी जाएगी। इसके बाद नतीजे दूसरे चरण के ट्रायल की दिशा तय करेंगे, उसके लिए 750 लोगों के नाम हैं। पहले फेज के ट्रायल में 28 दिन का समय लगेगा। अगर इस माह की 18 तारीख को पहला ट्रायल शुरू होता है तो 15 अगस्त तक पहला ट्रायल ही पूरा हो पाएगा। मेडिकल क्षेत्र इस बात को लेकर हैरान है कि 15 अगस्त की डेडलाइन क्यों तय की गई। अगर की गई है तो क्या वैक्सीन लांच करने के लिए विज्ञान को ही ताक पर रख दिया जाएगा। जब तक दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल पूरे नहीं हो जाते तब तक वैक्सीन को लांच करना सम्भव ही नहीं है। दवा या वैक्सीन बनाने में महीने ही नहीं कई-कई साल लग जाते हैं। एड्स की दवा पर कई वर्षों से शोध जारी है, लेकिन अभी तक किसी को सफलता नहीं िमली है। बेंगलुरु स्थित वैज्ञानिकों की संस्था आईएएससी ने भी 15 अगस्त तक की डेडलाइन पर सवाल उठाया है। संस्था ने 15 अगस्त को कोरोना का टीका जारी करने के लक्ष्य को अव्यावहारिक आैर हकीकत से परे बताया है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इंसानों की जिन्दगियां बचाने के लिए कोरोना वैक्सीन की सख्त जरूरत है लेकिन मानवीय जरूरत के लिए टीका विकसित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक पद्धति से क्लिनिकल ट्रायल की जरूरत होती है। प्रशासनिक मंजूरियों में तेजी लाई जा सकती है लेकिन इसके इस्तेमाल की वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और डाटा संग्रहण की नैसर्गिक समय अवधि होती है। जिस पर वैज्ञानिक मानकों से समझौता नहीं किया जा सकता। विज्ञान मंत्रालय ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अगले वर्ष से पहले वैक्सीन आने की कोई सम्भावना नहीं है। दुनियाभर की 140 वैक्सीन में से 11 मानवीय परीक्षण के लिए तैयार हैं। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारतीय प्रतिभाओं ने पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े हैं। ऐसे में दुनिया के कई देश भारतीय वैज्ञानिकों से भी बड़ी उम्मीदें लगाए हुए हैं। कोरोना ने जब से पूरी दुनिया को अपनी जद में लिया है, तब से महामारी से सिर्फ बचाव के तरीकों से ही लड़ा जा रहा है।
कोरोना विषाणु को लेकर नई-नई जानकारियां मिल रही हैं और जिस तेजी से यह विषाणु नए-नए स्पो में परिवर्तित हो रहा है वह भी चिकित्सा वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। इससेे मुश्किल यह खड़ी हो गई है कि इस बीमारी के नए लक्षण सामने आ रहे हैं। ऐसे में कारगर दवा ईजाद करना आसान नहीं है। दुनिया भर में बुखार, इन्फलूएंजा या फिर एड्स की दवाओं से ही संक्रमितों को ठीक करने की कोशिशें चल रही हैं, परन्तु कोई भी बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है। ऐसे में दवा को समय सीमा में नहीं बांधा जाना चाहिए क्योंकि इससे दवा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। जब तक कारगर दवा शत-प्रतिशत विकसित नहीं हो जाती तब तक शोर-शराबा करने की जरूरत ही नहीं है। टीके को सफलता तभी मिलेगी जब उससे अधिकतम कोरोना संक्रमितों को ठीक कर पाएंगे। जब तक टीका विकसित नहीं होता तब तक लोगों को बचाव के उपाय अपनाते रहना होगा। अपने आसपास स्वच्छता का ध्यान रखना होगा। दो गज की दूरी बनाए रखनी होगी। मास्क पहनना तो लोगों की आदत में शुमार हो चुका है। जब तक कोई दवा नहीं आ जाती तब तक हमें कोरोना वायरस के साथ ही रहना होगा। अगर भारत काे टीका तैयार करने में सफलता मिलती है तो इससे पूरे विश्व को बड़ी राहत मिलेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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