देश में लागू ‘लाकडाऊन’ की अवधि बढ़ाये जाने के बारे में सरकार के अधिकारियों द्वारा किये गये खंडन से आश्वस्त हुआ जा सकता है कि 24 मार्च से लागू तीन सप्ताह की यह हरकत बन्दी ऐसा ‘आपातकालीन चिकित्सीय कदम’ है जिससे कोरोना वायरस का जवाबी कारगर उपाय हो सके। इस दौरान कोरोना पर काबू पाने की पूरी उम्मीद भी है क्योंकि भारत में इस बीमारी का सामुदायिक स्तर पर परावर्तन (रिफ्रेक्शन) नहीं हुआ है (एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक बीमारी छन कर पहुंचना) और यह स्थानीय स्तर तक ही सीमित है। अतः इस प्रकार की अफवाहें फैलाने वालों की नीयत को समझा जाना चाहिए। यह नीयत विशुद्ध रूप से मुनाफा कमाने की कारोबारी नीयत भी हो सकती है जिससे आम लोग घबरा कर अपने घरों में खाने-पीने के सामान की इफरात बनाये रखने के लिए ज्यादा खरीदारी कर सकें और बाजार में माल की कमी का हौवा खड़ा करके दामों को अनाप-शनाप तरीके से बढ़ाया जा सके। ऐसी अफवाहें फैलाने वाले और नीयत रखने वाले लोगों को सीधे तौर पर राष्ट्रद्रोही ही कहा जायेगा। देश जब संकट की घड़ी से गुजर रहा होता है तो व्यापारी जगत का दायित्व किसी सैनिक के दायित्व से कम नहीं होता।
जनता के कष्टों को कारोबारी मुनाफे में तब्दील करने की किसी भी तरकीब या तजवीज को मुल्क की मुखालफत ही माना जाता है। अतः इस सन्दर्भ में केन्द्र की सरकार को एेसे लालची लोगों को सबक सिखाने के लिए कड़ी ताईद जारी करनी चाहिए लेकिन इसके समान्तर यह प्रसन्नता की बात है कि वाणिज्य मन्त्री पीयूष गोयल ने वाणिज्य व उद्योग जगत के कर्ताधर्ताओं के साथ एक वीडियो कान्फ्रेंस करके यह इजाजत दे दी है कि देश के विभिन्न राज्यों में सभी प्रकार के सामान की आवक व भरपाई के लिए परिवहन की छूट दी जाये। इससे बाजार में आवश्यक सामग्रीे समेत अन्य जरूरी सामान की सुलभता भी बनी रहेगी मगर यह देखना भी जरूरी होगा कि माल की सप्लाई होने के साथ उसका उत्पादन भी होता रहे, सतत् सप्लाई के लिए यह बहुत जरूरी होगा। अतः उद्योग जगत एेसे फार्मूले पर काम कर रहा है जिससे आवश्यक सामग्री के कारखानों को चलाया जा सके। इसके लिए पचास प्रतिशत कर्मचारियों को तैनात करके उत्पादन शृंखलाएं खोलने की योजना बनाई जा रही है। इसका बहुत अच्छा परिणाम आयेगा। इससे बड़े शहरों से अपने राज्यों में पालयन करने वाले मजदूरों की संख्या में भी व्यवधान पैदा होगा और उनमें उम्मीद की किरण फूटेगी।
वास्तव में कोराना वायरस से बचने के नियमों को लागू करके फैक्टरियों में उत्पादन शुरू करने का प्रयोग किया जा सकता है मगर सबसे बड़ी समस्या असंगठित क्षेत्र के छोटे-छोटे कारखानों या उत्पादन इकाइयों अथवा वाणिज्यिक इकाइयों की है जो जायज सरकारी देनदारियों को अदा न करने की गरज से अपना पंजीकरण सम्बद्ध कानूनों के तहत नहीं कराती है। इसके परिणामस्वरूप इनमें काम करनेे वाले कर्मचारी रिकार्ड में नहीं रहते हैं। अब यदि सरकार सभी छोटे उद्योगों या शाप एक्ट के तहत पंजीकृत इकाइयों के कामगारों को वित्तीय मदद की घोषणा करती है तो पचास प्रतिशत से अधिक कामगार खाली हाथ ही रह जायेंगे क्योंकि उनका नाम सरकारी रजिस्टरों में दर्ज ही नहीं है। इस हकीकत से सरकारी अमला बाखबर रहता है और वह जानता है कि बेइमानी कहां हो रही है? फिर भी आंखें मूंदे रहता है। यही वजह रही होगी कि पूर्व वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम ने जन-धन बैंक खाता व आधार कार्ड देख कर वित्तीय मदद का फार्मूला रखा था।
श्री चिदम्बरम को सरकार द्वारा आम लोगों को वित्तीय मदद देने का अनुभव सबसे पहले हुआ था जब 2006 में उन्होंने किसानों का 60 हजार करोड़ रु. का कर्जा माफ किया था। यह काम भी बहुत कठिन था, पूरे एहतियात के बावजूद इसमें थोड़ा-
बहुत घपला भी हो गया था जिसके बाद बैंक खाते में सीधे मदद राशि पहुंचाने की तकनीक पर काम होने लगा था और प्रत्येक नागरिक का आधार कार्ड बनाने के लिए संवैधानिक प्राधिकरण गठित किया गया था। इसका मूल उद्देश्य सरकारी सुविधाओं और मदद को सही आदमी तक पहुंचाना था। श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद इसे और ज्यादा जनोन्मुख बनाया और जन-धन बैंक खाता योजना को लागू किया। पूरी दुनिया में यह अभी तक की सबसे बड़ी गरीबोन्मुख योजना है। इसका लाभ ऐसे संकट के समय भारत को उठाना चाहिए। लाकडाऊन को सफल बनाने के लिए इसकी विशिष्ट महत्ता साबित हो सकती है, परन्तु इन सबसे बड़ा सवाल है कि देश में जरूरी चीजों की सप्लाई में कहीं भी कमी न होने पाये।
अभी लाकडाऊन के दो सप्ताह और बाकी हैं और इन दो सप्ताहों के भीतर बाजार में आगे के हफ्तों की मांग पूरी करने के लिए आवश्यक माल का ढुलान हर राज्य में होना जरूरी है। श्री पीयूष गोयल ने वक्त की नजाकत के अनुरूप फैसला किया है जिससे जमाखोर व मुनाफाखोर निराश होंगे मगर एक सवाल और है कि केवल आवश्यक उपभोक्ता सामग्री ही नहीं बल्कि अन्य जरूरी घरेलू सामान की आपूर्ति भी सुचारू रहनी चाहिए और इनका उत्पादन भी समानान्तर रूप से जारी रहना चाहिए क्योंकि लाकडाऊन को देखते हुए आम आदमी ने इफरात में ही खरीदारी की है जिससे उसे व उसके बाल-बच्चों को परेशानी न उठानी पड़े लेकिन चन्द लोगों ने लाकडाऊन के बढ़ने की अफवाहें फैला कर आम जनता के सब्र को नापने का काम करना शुरू कर दिया है।