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कोरोना काल : क्या बदल देगा फिल्म उद्योग का ट्रेंड

कोरोना वायरस के चलते हर क्षेत्र प्रभावित है। इस महामारी ने फिल्म उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है। लाइट, कैमरा एक्शन यानी फिल्मों और टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद है

कोरोना वायरस के चलते हर क्षेत्र प्रभावित है। इस महामारी ने फिल्म  उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है। लाइट, कैमरा एक्शन यानी फिल्मों और टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद है। भारत में लगभग 9600 स्क्रीन्स हैं, इनमें 2950 मल्टीप्लैक्स हैं। सब बंद पड़े हैं। लॉकडाउन से पहले हर शुक्रवार को नई फिल्में रिलीज होती थी, लोग सिनेमाघरों और मल्टीप्लैक्स की ओर भागते थे लेकिन अब हर शुक्रवार सन्नाटे में गुजर जाता है। फिल्मों रिलीज पर सवालिया निशान लगे हुए हैं। अधूरी फिल्में लटक गई हैं। पिछले वर्ष बालीवुड में बाक्स आफिस पर जिस तरह धन दौलत की झमाझम बरसात हुई थी, उससे फिल्म इंडस्ट्री सांतवें आसमान पर थी। एक वर्ष में 17 फिल्में सौ करोड़ के क्लब का हिस्सा बनी थी, जो एक नया रिकार्ड था लेकिन 2020 में कोरोना का ऐसा ग्रहण लगा कि कहा नहीं जा सकता कि महामारी से मुक्ति कब मिलेगी। फिल्म और टेलीविजन उद्योग ग्लैमर चमक-दमक और चकाचौंध से भी एक सपनों की दुनिया है। मुम्बई को सपनों का शहर कहा जाता है और फिल्म उद्योग सपने बेचता है जो हर इंसान पूरे करना चाहता है। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि भारत में दो ही भगवान हैं- ​सिनेमा और क्रिकेट, लेकिन लोग इस चकाचौंध के पीछे की असलियत से वाकिफ नहीं।
फिल्म उद्योग में हर आदमी बड़े से बड़े स्टार से लेकर स्पॉटबाय तक एक अंधेरे और अनिश्चित भविष्य के साथ जीता है। हमने बड़े-बड़े सितारों को डूबते भी देखा है और हिट होते भी देखा है लेकिन समस्या करोड़ों का बिजनेस करने वाले अभिभावकों और फिल्म निर्माताओं की नहीं है क्योंकि वे तो लॉकडाउन में भी आराम से जीवन बिता रहे हैं। मुम्बई फिल्म उद्योग विश्व में दूसरी बड़ी ​फिल्म इंडस्ट्री है लेकिन 90 फीसदी से अधिक इंडस्ट्री को असंगठित ​उद्योग माना जाता है। इसके 90 फीसदी से अधिक कामगार दिहाड़ीदार मजदूर की तरह काम करते हैं। शूटिंग बंद तो आमदनी बंद। न कोई पेंशन, न कोई प्रोवि​डेंट फंड, कुछ भी नहीं। किस दिन काम मिल जाए और किस दिन न मिले, कुछ कहा नहीं जा सकता। लॉकडाउन 4-0 भी समा​प्ति की ओर है, सारी गतिविधियां ठप्प पड़ी हुई हैं। निर्माता भी बिना कमाई के कब तक सैलरी दे सकते हैं। यू​िनयनों, कुछ बड़े कलाकारों, प्रोड्यूसरों एवं सभी समर्थ लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। इन सभी ने कोशिश की है कि उद्योग का एक भी कामगार भूखा न सोये लेकिन लम्बे काल तक मदद जारी रखना सम्भव नहीं है। लॉकडाउन धीरे-धीरे खुल रहा है लेकिन फिल्म उद्योग के दोबारा खुलने के आसार अभी नहीं बने हैं। शूटिंग कोई अकेले नहीं कर सकता। इसके लिए पूरी टीम होती है। कोरोना महामारी के चलते फिल्म उद्योग को एक हजार करोड़ तक के नुक्सान का अनुमान लगाया गया है। ​सिनेमाघर बंद होने से करोड़ों का नुक्सान हो चुका है। टीवी पर भी पुराने सीरियल दिखाए जा रहे हैं।
इस समय मनोरंजन की दुनिया से जुड़ा एक ही प्लेटफार्म है जो अच्छा कर रहा है और वह है ऑनलाइन प्लेटफार्म जैसे हॉटस्टार, नेटफिल्म्स, अमेजन प्राइम आदि। टीवी और सिनेमा जहां पिछड़ गए हैं वहां ऑनलाइन प्लेटफार्म तरक्की कर रहे हैं। दूरदर्शन ने पहले से ही लोकप्रिय रहे कई सीरियल्स दिखा कर जनमानस में अपनी जगह बनाई है। पुराने सीरियल ने यह साबित कर दिया है कि उनकी कहानी का सबसे बड़ा गुण उसकी भव्यता नहीं बल्कि सरलता से दर्शकों के दिल में जगह बना लेना है। फिल्मों में हर तरह के दृश्य होते हैं, सैक्स और हिंसा के दृश्यों की भरमार होती है, इन फिल्मों को आप छोटे पर्दे पर साझा नहीं कर सकते क्योंकि टेलीविजन परिवार मिल कर देखता है।
अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना अभिनीत ​िफल्म गुलाबो-सिताबो को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज करने की घोषणा ने सबको चौंका दिया है। यद्यपि इस घोषणा से मल्टीप्लैक्स वाले खुश नहीं हैं। उन्होंने प्रोडक्शन हाउस के फैसले का विरोध किया है। इसी बीच विद्या बालन की फिल्म शकुंतला देवी बायोपिक को भी अमेजन पर रिलीज करने की घोषणा कर दी गई है। अब सवाल यह है कि कोरोना काल में फिल्म उद्योग का ट्रेंड भी बदल जाएगा। अगर भविष्य में फिल्में आनलाइन प्लेटफार्मों पर रिलीज होने लगीं तो सिनेमाघरों और मल्टीप्लैक्स खंडहरों में तबदील हो जाएंगे। वैसे भी वीडियो  क्रांति के चलते सि सिंगल स्क्रीन्स सिनेमाघर पहले ही बंद हो चुके हैं। घर बैठे फिल्में देखने का बढि़या विकल्प सामने हो तो सिनेमाघर जाकर फिल्में देखने को फिजूलखर्ची ही माना जाएगा। कोरोना वायरस खत्म हो भी गया तो तब हो सकता है कि सिनेमाघरों की जरूरत पड़े। तब रिलीज के लिए इतनी फिल्में होंगी कि मल्टीप्लैैक्स नहीं मिलेंगे। छोटे-बड़े और मझोले निर्माता फिल्मों की रिलीज के लिए आपस में भिड़ेंगे। यह तभी होगा जब सारी व्यवस्था सुचारू रूप से चले। फिलहाल इंडस्ट्री में सब कुछ फ्रीज है। सपने बेचने वाली इंडस्ट्री के लिए स्थिति का सामान्य होना एक सपना भी है। फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री सन्नाटे में अपनी आवाज तलाश कर रही है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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