भारत में आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि माने जाते हैं। आदिकाल से आयुर्वेद की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानते हैं। आदिकाल के ग्रंथों में विविध पुराणों की रचना हुई, रामायण और महाभारत लिखे गए, जिसमें सभी ग्रंथों ने आयुर्वेदावतरण के प्रसंग में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख है। आयुर्वेद तन,मन और आत्मा के बीच न केवल संतुलन बनाकर स्वास्थ्य में सुधार करता है बल्कि यह जीवन जीने का ऐसा तरीका सिखाता है जिससे जीवन लम्बा और खुशहाल होता है। कोई भी बीमारी आप तक नहीं पहुंचे, इसलिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है। भारत में आयुर्वेद पर शोध काफी समृद्ध है लेकिन पश्चिम का अंधा अनुसरण कर हमने एलोपैथी को ऐसा अपनाया कि हम अपनी विरासत को भूल गए। आयुर्वेद में कहा जाता है कि इस धरती पर पाई जाने वाली हरेक जड़, हरेक पत्ता, हरेक पेड़ की छाल का औषधीय गुण है। हमने केवल कुछ का ही इस्तेमाल करना सीखा है। बाकी का इस्तेमाल करना अभी सीखना है। मेरे पड़नाना का परिवार आयुर्वेद और होम्योपैथिक डाक्टरों का है। मैंने अपने घर के बुजुर्गों को ऐसी बीमारियों का इलाज करते देखा है, जिसका इलाज सम्भव नहीं था। यहां तक कि मेरी मां को एलर्जी हो गई थी, कई साल इलाज कराने के बाद आयुर्वेद की दवाइयों से वह ठीक हुई जिसमें था अश्वगंधा, प्रवाल पिष्टी और सर्पगंधा टिकड़ी इसलिए हमारे घर में इनकी बहुत महत्वता है।
कोरोना की महामारी ने एक बार फिर भारत को आयुर्वेद और योग से जोड़ा है। यानी भारत अपनी जड़ों की ओर लौटा है। आयुर्वेद हर रोग में अपनी पैठ रखता है। आयुष मंत्रालय ने भी कोरोना वायरस से निपटने के लिए जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयों का इस्तेमाल करने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए हुए हैं और औषधि के नाम भी दिए हैं। आज लोग काढ़ा पी रहे हैं और बचाव के अन्य उपाय अपना रहे हैं। कोरोना वायरस से निपटने के लिए दवाओं को मंजूरी दे दी गई। रेमडेसिवियर दवा की खेप बाजार में पहुंचने वाली हैै। इसके जैनेरिक वर्जन को भी मंजूरी दे दी गई। एक गोली की कीमत 103 रुपए है। पूरे वायल की कीमत लगभग साढ़े 5 हजार है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दवा कम्पनियों की लॉबी काफी प्रभावशाली है, इस लाॅबी के तार डाक्टरों से जुड़े होते हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में कौन सी दवा का प्रयोग किया जाए, यह लॉबी ही तय करती है। डाक्टरों को विदेशी टूर के पैकेज दिए जाते हैं, हर वर्ष दवा कम्पनियां कारें और महंगे उपहार देती हैं। पिछले कुछ वर्षों में दवाओं की कीमतों में एक हजार गुणा बढ़ौतरी हो चुकी है। इनमें भारत की कुछ कम्पनियों के नाम भी शामिल हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि दवा कम्पनियां लोगों से पूरी तरह ठगी करती हैं। सरकार ने सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए जन औषधि केन्द्र खोले हैं लेकिन लोगों को इन दवाओं पर भरोसा नहीं है। भारत में गम्भीर रोगों के इलाज के लिए लोगों के घर-बार बिक जाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर कोई आयुर्वेद के शोध पर आधारित कुछ औषधि लेकर सामने आता है तो उसका विरोध होता है। योग गुरु बाबा रामदेव की कम्पनी पतंजलि द्वारा तैयार कोरोनिल को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। आयुष मंत्रालय ने इसके प्रचार और बिक्री पर फिलहाल राेक लगा दी है। महाराष्ट्र ने भी ऐसा ही कदम उठाया है। मंत्रालय ने दवा के िक्लनिकल ट्रायल के प्रमाण और अन्य डाटा की मांग की है।
बाबा रामदेव द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण में सभी मानकों को पूरा करने का दावा किया गया है। एक तरफ आयुष मंत्रालय लोगों को काढ़ा पीने और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का आग्रह कर रहा है तो दूसरी तरफ कोरोलिन पर विवाद विरोधाभासी ही लगता है। बाबा रामदेव का कहना है कि दवा के फार्मूले में वही जड़ी-बूटियां हैं जिसका परामर्श स्वयं आयुष मंत्रालय देता आया है तो फिर विवाद किस बात का। एलोपैथी दवा बनाने वाली कम्पनियां इस दवा का उपहास उड़ाती हैं। जब भी कोई दवा बाजार में आती है तो उसकी बड़ी परख की जाती है, दवा के ट्रायल तो होने ही चाहिएं। काम तो नियम से ही होने चाहिएं। आयुष मंत्रालय स्वयं इस दवा का ट्रायल अपनी निगरानी में करा सकता है। बाबा रामदेव का कहना है कि यह दवा उपचार भी है और बचाव भी है। अगर किसी को कोरोना के लक्षण नहीं हैं तो भी वह इसका इस्तेमाल कर सकता है और कोरोना होने पर भी इसका इस्तेमाल कर अपनी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ौतरी कर सकता है तो फिर विवाद किस बात का है।
कोरोना महामारी में लूट का बाजार गर्म है। निजी अस्पताल वाले लोगों को लूटने में लगे हैं, सरकार के पास दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे रोगियों के उपचार की व्यवस्था नहीं। अस्थायी व्यवस्था की जा रही है। ऐसी स्थिति में अगर पतंजलि या कोई अन्य आयुर्वेद कम्पनी अपना शोध प्रस्तुत करती है तो मंत्रालय को इसे प्रोत्साहित करना चाहिए। आयुर्वेद से उपचार के काेई साइड इफैक्ट नहीं होते। जब एलोपैथी चिकित्सा पद्धति हर्ड इम्युनिटी की बात बार-बार कर रही हो, कोरोना वायरस को पराजित करने के लिए एंटीबॉडीज विकसित करने की बात कर रही हो तो ऐसे में अगर उसके समानांतर कोई औषधि बाजार में आकर उन्हें चुनौती दे रही है तो वे इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं। कोरोना वायरस के सामने एलोपैथी भी कोई दम नहीं दिखा पा रही है। जो दवाएं आ रही हैं वह भी शरीर में एंटीबॉडीज विकसित करने के लिए ही हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद ने कोरोना से लड़ने का रास्ता दिखाया है तो शोध कीजिए। लाभ दिखाई दे तो उस पर आगे बढ़ना चाहिए। 5-6 हजार की दवाइयों के मुकाबले 550 रुपए में दवाई हर कोई खरीद सकता है। भारत में आयुर्वेद को मेडिकल साइंस जितना सम्मान देने की जरूरत है। यह आयुर्वेद की परीक्षा का समय है आैर उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे भारत को लाभ ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा