कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन को 12 दिन बीत चुके हैं। नीला आकाश और स्वच्छ हवा देखकर प्रकृति का अहसास होना शुरू हो गया है। लॉकडाउन ने देशभर में प्रदूषण को अस्थायी तौर पर मात दे दी है। सभी फैक्ट्रियां, मार्केट, शॉपिंग माल, ऑफिस, ट्रांसपोर्ट और उड़ानें बन्द हैं। लोग घरों में बन्द हैं। अभी तक जो आंकड़ा आया है उसके मुताबिक भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में प्रदूषण में काफी कमी आई है।
वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला खतरनाक पार्टीकुलेट मैटर और नाइट्रोजन डाई-आक्साइड में काफी कमी आई है। लॉकडाउन के चलते भारत के शहरों में वायु की गुणवत्ता में भी लगातार सुधार हो रहा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार शहरों में अच्छी वायु गुणवत्ता दर्ज की गई जबकि 65 शहरों में वायु गुणवत्ता सन्तोषजनक रही।
वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2019 में विश्व के सर्वाधिक 30 प्रदूषित शहरों में भारत के 21 शहर शामिल थे। देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर में हर वर्ष नवम्बर में जहरीली धुंध की चादर छा जाती है। इस दौरान प्रदूषण काफी बढ़ जाता है। यहां तक कि वायु गुणवत्ता बेहद गम्भीर और आपात स्थिति तक पहुंच जाती है।
स्कूल, कालेज बन्द कर दिए जाते हैं। वाहनों के लिए ऑड-ईवन फार्मूला लागू किया जाता है। लोग बीमारियां का शिकार हो जाते हैं। राजधानी विषाक्त गैसों का चैम्बर बन जाती है। हर वर्ष दिल्ली का ही ऐसा हाल नहीं होता बल्कि देशभर के शहरों में लोगों को सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा भी नसीब नहीं होती।
अब लॉकडाउन के चलते सड़कों पर शोरगुल शांत है, चिड़ियों की चहचाहट फिर से सुनाई देने लगी है। वहीं तेंदुए, हाथी से लेकर हिरण तक शहरों में देखे जाने की खबरें मिल रही हैं। इन्सान घरों में रहने को मजबूर है तथा पक्षी और जानवर उन इलाकों में नज़र आने लगे हैं जो कभी उनके हुआ करते थे। यह सोचना सुखद है कि प्रकृति अपने घाव भर रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अच्छी खबर है क्योंकि शहरी केन्द्रों में जंगली जानवरों का नजर आना जारी है। चण्डीगढ़ में एक सड़क पर तेंदुआ घूमता नजर आया। नोएडा के जीआईसी माल के पास एक नील गाय को सड़क पार करते देखा गया। हरिद्वार में सांभर हिरणों को सैर करते देखा गया। गुड़गांव के लोगों ने एक मार्केट में मोराें को देखा और केरल के कोझिकोड में बिलाव को देखा गया। प्रवासी मजदूर कोरोना वायरस के चलते शहरों से गांवों की तरफ पलायन कर रहे हैं और जंगल के शरणार्थी शहरों की तरफ आ रहे हैं।
इन्सानों की गैर मौजूदगी में जानवरों का जंगल से बाहर आना आसान हो गया है। हालांकि यह अच्छा संकेत नहीं है। कोई वक्त था जब लोग और जानवर तालमेल बनाकर रहते थे लेकिन लोगों ने उनसे जंगल छीन लिए और सरकारों ने जंगल को केवल कारोबार बना दिया। अब जंगलों में भी भोजन नहीं मिलता तो जानवर भूख की वजह से शहरों की ओर भागेंगे नहीं तो और क्या करेंगे।
जानवर जिन इलाकों में देखे गए वह क्षेत्र उनके प्राकृतिक वास के करीब हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि ऐसी स्थिति में लोगों को प्रकृति के करीब जाना होगा। लॉकडाउन के चलते शहर खुद-ब-खुद ग्रीन जोन में आ गए हैं। ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि पंजाब के जालन्धर शहर से नंगी आंखों से हिमाचल प्रदेश की धौलाधार पर्वत शृंखला देखी जा सकती है। यह पर्वत शृंखला हिमाचल के कांगड़ा और मंडी जिले के बीच फैली है।
जालन्धर शहर में रहने वाले लोग खुद हैरान हैं कि जिन पहाड़ों को देखने के लिए टूरिस्ट दूर-दूर से आते हैं, हर साल लोग गर्मियों में धर्मशाला जाते हैं, वह पर्वत माला घरों की छतों से साफ दिखाई दे रही है। प्रदूषण की मार झेल रही वर्तमान पीढ़ी के लिए यह सुखद अनुभूति से कम नहीं है।
अब नीले आसमान और स्वच्छ हवा को महसूस कर सभी सोच रहे हैं कि काश! ऐसा हमेशा के लिए हो जाए। ऐसी कल्पना करना भी अब असम्भव है। आसमान और हवा भले ही साफ है लेकिन मानवता का हाल बहुत बुरा है। लोग लगातार मर रहे हैं, संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। समाज की विकृतियां सामने आ रही हैं। लोग लगातार हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति कर रहे हैं और इंसानियत को नुक्सान पहुंचा रहे हैं।
सोशल मीडिया पर एक समाज को गुमराह करने की साजिश जारी है यानी मानवता पर प्रदूषण के बादल गहरा चुके हैं। इंसान कुछ भी समझने को तैयार नहीं। जितनी प्रकृति से छेड़छाड़ इंसान ने की है, उतनी किसी ने नहीं की, इंसान ने इंसान से जितना छल किया है उतना किसी ने नहीं किया है। जाति, धर्म के नाम पर लड़ते हुए मानवता से ऊपर धर्म को रखकर उसके नाम पर जहालत की जा रही है।
सौहार्द का संदेश देने वाला भारत अब हमें काल का ग्रास बनता दिखाई दे रहा है। फिर भी झूठ फैलाने वालों से सच बोलने वाले बहुत ज्यादा हैं और मानवता को बचाने का प्रयास जारी है। इंसान को याद रखना होगा कि भौतिकवादी संसार में जितनी सुख सुविधा की चीजें हैं वह प्रदूषण फैलाती हैं। इंसान को अपनी महत्वाकांक्षाएं छोड़नी होंगी और इंसान की तरह रहना होगा। इसलिए उसे प्रकृति की ओर लौटना होगा अन्यथा प्रकृति अपने तेवर दिखाती रहेगी।
-आदित्य नारायण चोपड़ा