कुछ राज्य जहां बेहतर काम कर रहे हैं वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश ऐसे भी राज्य हैं जो अपनी-अपनी आबादी के अनुपात में परीक्षण कम करा रहे हैं। ये तीनों ही राज्य ग्रामीण जनसंख्या बहुल हैं और दूसरी लहर का आक्रमण इस बार गांवों पर ही ज्यादा हो रहा है अतः सबसे पहले ऐसे राज्यों को कोरोना परीक्षण करने के आंकड़े रोजाना जारी करने चाहिए । इस मामले में महाराष्ट्र ने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है और परीक्षणों की संख्या बढ़ा कर मृतकों की संख्या पर काबू करने का प्रयास किया है। बिहार की हालत तो यह है कि इस राज्य के बक्सर जिले में ही जहां पिछले तीन दिनों में केवल सात लोगों के कोरोना से मरने की आधिकारिक पुष्टि की गई वहीं दूसरी तरफ 789 लोगों के मरने की बात भी कही गई। जाहिर है कि ये आंकड़े कोरोना से मरने वालों की संख्या में नहीं जुड़ रहे हैं। इस समय कोई यह दावा नहीं कर सकता कि भारत के गांवों में जो लोग मर रहे हैं उनमें से कितनों को कोरोना था। क्योंकि ये लोग बेइलाज के मर रहे हैं और बेहिसाब तरीके से मर रहे हैं इनमें से कितनों ने मृत्यु प्रमाणपत्र लेने के लिए आवेदन किया होगा यह भी यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जो लाशें गंगा-यमुना से क्षिप्रा नदी के किनारों में दबी या तैरती मिल रही हैं उनका उल्लेख किसी दफ्तर में नहीं मिल सकता। अतः यह समझा जा सकता है कि संक्रमितों की संख्या कम होने के बावजूद मृतकों की संख्या में क्यों कमी नहीं हो रही है?