कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया तबाही की कगार पर है। विश्व की शक्तियां इस वायरस के सामने घुटने टेकने को मजबूर हैं। परमाणु हथियार, बम और कई किलोमीटर दूर बैठे दुश्मन के ठिकानों को तबाह कर देने में सक्षम मिसाइलें किसी काम नहीं आ रहीं। अब सभी को उस वैक्सीन का इंतजार है, जो इस भयंकर रोग को इस धरती से नेस्तनाबूद कर दे। कई देश कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं। इस्राइल और इटली ने तो वैक्सीन तैयार करने और उसके क्लीनिकल ट्रायल सफल होने का दावा कर दिया है। इससे वैज्ञानिकों के साथ-साथ दुनिया भर के लोगों की उम्मीदें भी जाग गई हैं। इस्राइल और इटली के दावे कितना पुख्ता हैं, इसका पता तो भविष्य में लगेगा। अभी यह पूर्वानुमान लगाना कठिन है कि यह वैक्सीन कब बाजार में आएगा, अगर आएगा तो यह कितना खरा उतरेगा। भारत के वैज्ञानिक भी कोरोना का उपचार ढूंढने में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में वैक्सीन विकसित करने के संबंध में समीक्षा की है।
मनुष्य शुरू से ही काफी जिज्ञासु रहा है, उसने जानलेवा बीमारियों का तोड़ निकाला है। उसने अपनी बौद्धिक प्रतिभा के बल पर एक के बाद एक महामारियों पर काबू पाया है। आज के दौर में इंटेंसिव केयर यूनिट और वेंटिलेटर्स का बहुत नाम लिया जा रहा है। 68 वर्ष पहले इन शब्दों को कोई नहीं जानता था क्योंिक तब मशीनें नहीं बनी थीं।
68 वर्ष पहले पोलियो फैला था, जिसका कोई उपचार नहीं था लेकिन एक डाक्टर ने मेडिकल साइंस में महत्वपूर्ण अध्याय लिख डाला। डैनिश डाक्टर बजार्न आजे इब्सेन ने ब्लेगडैम अस्पताल के लिए एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जो मरीजों के फेफड़ों में सीधे हवा पहुंचाने में सक्षम था। मरीज को आराम मिला और फिर वह धीरे-धीरे खुद सांस लेने लगा। डा. इब्सेन द्वारा तैयार वेंटिलेटर से अब तक लाखों जिन्दगियां बच रही हैं। इस मशीन के ईजाद के बाद ब्लेकडैम अस्पताल में इंटेंसिव केयर वार्ड स्थापित किया गया। उसी के माडल को दुनिया भर में अपनाया गया। आज मैडिकल साइंस कई चमत्कार कर चुका है। दुनिया को ऐसे ही चमत्कार की उम्मीद है।
भारत में भी पहले से मौजूद दावाओं के बल पर दवा ढूंढी जा रही है। बीसीजी इंजैक्शन, प्लाज्मा थेरेपी, मलेरिया की दवाएं क्लोरोेक्विन और हाइट्रोम्सी क्लोरोक्विन को लेकर प्रयोग किए जा रहे हैं। 6 वर्ष पहले इबोला वायरस से निपटने के लिए तैयार की गई रेमडसीविर नामक दवा को लेकर भी ट्रायल किए गए हैं। विभिन्न देश वैक्सीन की तलाश में पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। इस घटाटोप अंधकार में कौन सी संजीवनी बूटी उम्मीदों की किरण पैदा करेगी, िफलहाल कहना मुश्किल है। दुनिया में सामूहिक अनुसंधान की वकालत की जा रही है। दरअसल कोरोना वायरस का संक्रमण इतनी तेजी से फैलता है कि उसका मुकाबला करने के लिए शरीर में एंटीबाडीज तुरन्त नहीं बन पाते। अब एंटीबाडीज पर अनुसंधान किए जा रहे हैं।
दुनिया भर में ऐसे कई वायरस हैं जिनकी कोई वैक्सीन नहीं बन सकी है। वर्ष 1984 में एचआईवी वैक्सीन को लेकर अमेरिका की तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मार्गरेट हैकलर ने कहा था कि दो वर्षों में एचआईवी की वैक्सीन बन जाएगी। करोड़ों लोगों की मौत हो जाने के बाद भी वैक्सीन डेवल्प नहीं हो पाई। जब तक कोरोना की दवा तैयार नहीं होती तब तक हमें इसके साथ जीने का तरीका सीखना होगा। टैस्टिंग हमारे जीवन का अहम हिस्सा बना रहेगा। वायरस अपने स्वरूप बदलते रहते हैं, उसके उपचार के लिए नई-नई दवाइयां विकसित की जाती हैं। अगर दवा ढूंढ भी ली गई तो वायरस के बदलते चरित्र की चुनौतियों का सामना लगातार करना ही पड़ेगा। जब तक कोई कारगर उपचार नहीं मिलता तब तक बीमारी के लक्षणों के अनुरूप दवाएं इस्तेमाल की जा रही हैं। प्राण घातक बीमारी कोरोना की वजह से दुनिया भारतीय जीवन शैली को आत्मसात कर रही है। एक बार फिर भारत की पुरानी प्रथाओं का डंका विश्व में बज रहा है। भारतीय संस्कृति में रीति-रिवाज और परम्पराओं का वैज्ञानिक महत्व है। योग, सूर्य नमस्कार और अन्य सनातन पद्धतियों का महत्व है। प्राकृतिक जीवन शैली अपनाना और नमस्ते से लेकर शाकाहार तक को शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के िलए सबसे बेहतर विकल्प माना जा रहा है।
भारतीय जीवन शैली को आर्थिक और पारिस्थितिकीय दृष्टि से सर्वोत्तम विधि के रूप में माना जाता है। मानव प्रकृति से अपने संबंधों को वर्तमान समय में तथा भावी पीढ़ियों हेतु बनाए रखने का प्रयास करे। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ आहार में ही है लेकिन हम अपना जीवन जी नहीं रहे काट रहे हैं। आधुनिक जीवन शैली में हम आज ऐसा जीवन काट रहे हैं जिसमें कोई बोध नहीं है। डिग्रियां बहुत ज्यादा हैं लेकिन ज्ञान बहुत कम है। हमारी जीवन शैली बिगड़ी और बिखरी हुई है। इम्युनिटी धरती की मिट्टी में खेलकूद कर बड़े होने वाले लोगों में होती है, एयरकंडीशंड में पलने वाले बच्चों में इम्युनिटी की कल्पना ही की जा सकती है। बेहतरी इसी में है कि हम पुरातन जीवन शैली अपनाएं। दुनिया को बचाएगी तो केवल भारतीय जीवन शैली ही बचाएगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com