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कोरोना वैक्सीन : तैयार है भारत

वैज्ञानिकों की नेशनल सुपर मॉडल समिति ने दावा किया है कि देश में कोरोना का पीक सितम्बर में ही आ चुका था और फरवरी 2021 में कोरोना का वायरस फ्लैट हो जाएगा।

वैज्ञानिकों की नेशनल सुपर मॉडल समिति ने दावा किया है कि देश में कोरोना का पीक सितम्बर में ही आ चुका था और फरवरी 2021 में कोरोना का वायरस फ्लैट हो जाएगा। इस समिति में आईआईटी हैदराबाद और आईआईटी कानपुर समेत कई नामी इंस्टीट्यूट्स के विशेषज्ञ शामिल हैं।
रोजाना सामने आ रहे केसों की संख्या में भी कमी देखी जा रही है। भारत में हर सौ में से 88 मरीज ठीक हो रहे हैं यानी रिकवरी रेट 88.82 फीसदी तक जा पहुंचा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने यह भी स्वीकार किया है कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना वायरस कम्युनिटी ट्रांसमीशन के फेज में पहुंच चुका है।
दूसरी ओर महामारी से निपटने के लिए बनी टास्क फोर्स के प्रमुख वी.के. पाल ने चेतावनी दी है कि ठंड के कारण कोरोना की दूसरी लहर आ सकती है। इसलिए अब बहुत ज्यादा सावधानी की जरूरत है। तमाम दावों और चेतावनियों के बीच यह बहुत अच्छी बात है कि भारत ने कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता के बाद लोगों तक इसे जल्द से जल्द पहुंचाने की व्यवस्था तैयार कर ली है। इसके लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है।
पूरा विश्व कोरोना के लिए वैक्सीन की प्रतीक्षा कर रहा है। इस समय सबसे पहली जरूरत वैक्सीन की सुलभता है। भारत जैसे विशाल देश में किसी भी वस्तु की सुलभता आसान नहीं है लेकिन यह भारत की विशेषता है कि हर संकट की घड़ी में वह तैयार हो जाता है।
युद्ध हो या प्राकृतिक आपदा, भारत के लोग हमेशा सेवा और समर्थन की भावना के साथ एकजुट रहे। कोई भी सरकारी व्यवस्था जन सहयोग के बिना साकार रूप नहीं ले सकती। अब जबकि कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल चल रहे हैं। भारत ने भी रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-फाइव के तीसरे चरण के ट्रायल की मंजूरी दे दी है।
उम्मीद है कि कम से कम एक टीका तो नवम्बर या दिसम्बर की शुरुआत में आ सकता है। वैक्सीन को पहले कोरोना वारियर्स तक पहुंचाया जाएगा, फिर चरणबद्ध ढंग से इसकी सप्लाई शुरू की जाएगी। दरअसल भारत की आबादी 130 करोड़ से भी ज्यादा है। भौगोलिक परिस्थितियों और विविधताओं की जटिलताओं को देखते हुए वैक्सीन पहुंचाने के ​िलए बड़े लाजिस्टिक सिस्टम की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में अधिकारियों के साथ वैक्सीन की डिलीवरी को सुनिश्चित बनाने के लिए ​िवचार-विमर्श किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि वैक्सीन वितरण प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिसमें सरकारी और नागरिक समूहों की प्रत्येक स्तर की भागीदारी हो। उन्होंने तो यह भी कहा कि हमें वैक्सीन को सिर्फ पड़ोसी देशों तक सीमित नहीं रखना है बल्कि पूरी दुनिया में पहुंचाना है।
दवाइयां और टीका वितरण के वास्ते आई.टी. प्लेटफार्मों का विस्तार करना होगा। अब सरकार ने वैक्सीन रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की पहचान कर ली है। वैक्सीन को रखने के लिए अन्य मेकशिफ्ट सुविधाओं की तैयारी की जा रही है। सबसे पहले डाक्टरों, हैल्थ स्टाफ, पुलिस और स्थानीय निकाय प्रशासन के कर्मचारी, जो जान की परवाह किए बिना दिन-रात संक्रमित लोगों का ध्यान रखते रहे, उन तक वैक्सीन पहुंचाना हमारा पहला कर्त्तव्य है।
पहले चरण में 30 करोड़ लोगों के लिए 60 लाख डोज की जरूरत होगी। अगर सप्लाई अपर्याप्त रही तो पहला चरण ही काफी लम्बा हो जाएगा। देशभर में वैक्सीन पहुंचाने के लिए अनुमान के मुताबिक 80 हजार करोड़ की जरूरत होगी। यह अपने आप में बड़ी रकम है। यह बड़ा कार्य केन्द्र और राज्य सरकारों के सहयोग से ही हो पाएगा।
उम्मीद है कि सियासत की शतरंजी चालों के साथ वैक्सीन पहुंचाने के काम में कोई बाधा नहीं आएगी। उदाहरण हमारे सामने है कि कोरोना का वायरस जब फैलना शुरू हुआ तो हमारे पास कुछ भी नहीं था क्योंकि हमने कभी कल्पना भी नहीं की थ कि हमारे साथ ऐसा कुछ घटित भी हो सकता है लेकिन भारत कुछ दिनों में ही कोरोना के बचाव उपाय करने में आत्मनिर्भर हो गया।
भारतीय संस्कृति की जड़ें बहुत गहरी हैं। भारतीयों ने बिना देर किए प्राचीन जीवन पद्धति को अपनाया। शास्त्रों के अनुसार घरेलू इस्तेमाल में आने वाली जड़ी-बूटियों और अन्य औषधियों को अपना लिया। कोरोना वायरस ने भारतीयों को एक बार फिर इस बात का अहसास दिलाया कि पश्चिम जगत की अपेक्षा प्राचीन भारतीय जीवन शैली ही सर्वोत्तम है।
लोगों ने योग, ध्यान अपनाया और आयुर्वेद की मदद ली। सरकार ने वैक्सीन की सप्लाई के लिए होम डिलीवरी कंपनियों से भी सम्पर्क किया है। देशभर से पल्स पोलियो ड्राप्स अभियान की सफलता का श्रेय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन को दिया जाता है, उन्हें इस संबंध में अच्छा खासा अनुभव है। सरकार चाहे तो क्षेत्र​वार एनसीसी कैडेटों, एनएसएस के वालं​टियरों और अन्य स्वैच्छिक सेवा संगठनों की मदद ले सकती है।
वैक्सीन वितरण व्यवस्था पर निगरानी के लिए भी एक तंत्र होना चाहिए। वैक्सीन उत्पादन और शीघ्र वितरण के नाम पर लाभ उठाने के लिए कुछ कार्पोरेट सैक्टर सक्रिय हो गए हैं। कंपनियों द्वारा कार्टेल बनाकर लाभ बढ़ाना कोई नई बात नहीं है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि संकट की घड़ी में भी उनके और सहयोगी संस्थाओं के तौर-तरीके पहले जैसे ही हैं।
यह सब कोविड-19 के लिए उपकरणों की शीघ्र पहुंच सुनिश्चित करने के नाम पर चल रहा है। जरूरी है कि वैक्सीन आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सस्ते में मिले, इसके लिए सरकार को अनुदान देना होगा। चुनौतियों तो बहुत हैं लेकिन सरकार भी पूरी तरह तैयार है और जनता भी हर सेवा देने को तैयार है।

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