विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अंततः कोरोना वायरस काे महामारी घोषित कर दिया है। दुनियाभर में 4300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। किसी भी बीमारी को महामारी तब घोषित किया जाता है जब वह एक से ज्यादा देशों में फैल जाए, लोगों के सामने जीवन का संकट पैदा कर दे। इटली ने तो कोरोना का प्रसार रोकने के लिए अपने यहां पूरी तरह लॉक डाउन घोषित कर दिया है।
कोरोना के कहर के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोप से अमेरिका की सभी यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत ने भी 15 अप्रैल तक विदेशियों की एंट्री प्रतिबंधित कर दी है। किसी भी राष्ट्र के लिए उसके नागरिकों का जीवन सबसे बेशकीमती होता है। उनकी सुरक्षा से बढ़कर और कोई चीज नहीं होती इसलिए मोदी सरकार ने फैसला किया है कि भारत एक माह तक पूरी दुनिया से अलग-थलग रहे। बड़ी आबादी को बचाने के लिए अलग-थलग रहना ही सबसे बड़ा उपाय है। ऐसा नहीं है कि दुनिया ने पहले महामारी का सामना नहीं किया।
इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जिन्होंने कई देशों का हुलिया बिगाड़ कर रख दिया था। वैसे तो असंख्य बीमारियों के नाम इतिहास में दर्ज हैं। 430 ईसा पूर्व चार वर्षों की समयावधि में टाइफाइड बुखार से एक चौथाई एथेनियन सैनिकों की मौत हो गई थी। फिर इतालवी प्रायदीप में चेचक फैला, इससे पांच मिलियन लोगों की मौत हुई थी।
यह वह दौर था जब स्वास्थ्य सुविधाएं थी ही नहीं। 541-570 में बूबोनिक प्लेग का प्रकोप आया। इसकी शुरूआत मिस्र से हुई थी और वसंत के मौसम के बाद यह कस्तूनिया में पहुंचा। इससे हर रोज दस हजार लोगों की मौत होती थी। इस प्लेग ने सम्पूर्ण विश्व की एक चौथाई जनसंख्या को समाप्त कर दिया था। समय-समय पर महामारियों ने भयंकर तबाही मचाई है। 152 वर्ष पहले भी एक वायरस ने कहर ढाया था। इस वायरस ने पहले चीन के अन्दरूनी इलाकों में हमला बोला था और फिर यह हांगकांग में दाखिल हुआ। उस दौर में इस महामारी को मार्डन प्लेग का नाम दिया गया जो सिल्क रूट के रास्ते से पूरी दुनिया में फैला।
इस वायरस से संक्रमित चूहे इस बीमारी को लेकर शिप तक पहुंचे थेे, जहां-जहां भी शिप गए और डाक्स पर रुके, ये बीमारी भी वहां फैलती गई। भारत में इसकी शुरूआत 1889 में हुई। इसने चीन से ज्यादा कहर भारत में मचाया था। अकेले भारत में ही करीब एक करोड़ मौतें हुई थीं। इसका प्रकोप 1950 तक चला था। 1950 के बाद भी कई तरह के नए वायरस सामने आए लेकिन चिकित्सा अनुसंधान के चलते ऐसे वायरसों का उपचार ढूंढ लिया गया।
टीकाकरण के माध्यम से कई बीमारियों पर काबू पाया गया। चिकित्सीय उन्नति की वजह से कई देशों में मृत्यु दर के कम होने की वजह से मानव इतिहास में अपनी जनसंख्या में सबसे बड़ी वृद्धि का दर्शन किया। हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले एंथ्रेक्स के बीजाणुओं का उद्गम गलती से 1979 में एक सोवियत शहर के पास एक सैन्य केन्द्र में हुआ था। एंथ्रेक्स रिसाव को जैविक चेर्नोविल भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि 1980 के दशक के अंतिम दौर में चीन में एक जैविक हथियार संयंत्र में गम्भीर घटना हुई थी। सोवियत संघ ने तब संदेह प्रकट किया था कि 1980 के दशक के अंतिम दौर में चीन के वैज्ञानिकों द्वारा विषाणुजनित रोगों को हथियार का रूप देने वाली प्रयोगशाला में एक दुर्घटना की वजह से रक्तस्त्रावी बुखार के दो अलग-अलग रूपों का प्रसार हुआ था। जनवरी 2009 में अल्जीरिया में प्लेग से अलकायदा के एक प्रशिक्षण शिविर का सफाया हो गया था, जिसमें 40 इस्लामी आतंकवादियों की मौत हो गई थी।
विशेषज्ञों ने तब भी आरोप लगाया था कि यह दल जैविक हथियार विकसित कर रहा था। अब सवाल यह है कि कोरोना वायरस का उद्गम भी चीन में हुआ है। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई, इसका सत्य जानने के लिए तो वर्षों लगेंगे। इस्राइल ने दावा किया है कि वह कुछ समय के भीतर ही कोरोना वायरस का उपचार ढूंढ लेगा। इस्राइल उपचार ढूंढ लेता है तो लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। जनसंख्या बढ़ौतरी का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है, फिर शुरू होता है असंतुलित प्रकृति का क्रूरतम तांडव।
सैकड़ोें वर्ष पहले अर्थशास्त्री माल्थस ने लिखा था कि यदि आत्मसंयम और कृत्रिम साधनों से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो प्रकृति अपने क्रूर हाथों से नियंत्रित करने का प्रयास करेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना वायरस से स्थिति भयावह हो चली है। महामारी जब फैलती है तो लोग डर के साये में जीने लगते हैं।
खौफ का आलम यह होता जा रहा है कि पीड़ित व्यक्ति को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। लोग घरों में कैद हो जाते हैं। समाज जैसा कुछ नहीं रह जाता। मानवता, नैतिकता सब खत्म हो जाती है। इटली की स्थिति लगभग ऐसी ही है। कोरोना को पराजित करने के लिए भारतीयों को स्वच्छता अपना कर खुद की रक्षा करनी होगी। अगर अब भी नहीं चेते तो जीवन पटरी पर लाना मुश्किल हो जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा