जब समूची दुनिया चीन में फैले कोरोना वायरस से भयभीत है तो फिर भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। ज्यों-ज्यों चीन में मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। त्यों-त्यों कई देशों में खौफ बढ़ रहा है। वैसे तो हर वर्ष दुनिया के किसी हिस्से से नए-नए वायरस फैलने की खबरें आती रहती हैं जिनका कोई टीका या दवाई ईजाद ही नहीं होती। वायरस फैलने के बाद ही रिसर्च शुरू होती है। कुछ वर्षों बाद वैक्सीन तैयार कर ली जाती है फिर शुरू होता है वैक्सीन का व्यापार। जलवायु परिवर्तन और मानव की बदलती जीवन शैली और खान-पान के व्यवहार के चलते ही उथल-पुथल मच रही है। जब भी महामारियां फैलती हैं तो चीन जैसा शक्तिशाली देश भी असहाय नजर आता है और चिकित्सा क्षेत्र भी लाचार नज़र आता है। जिन देशों के चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध हैं या उनके नागरिक चीन के शहरों में रहते हैं, उन देशों ने तो हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग की व्यवस्था की है।
भारत ने भी हवाई अड्डों पर चीन से आने वाले नागरिकों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था की है। राहत की बात है कि अब तक भारत में वायरस संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया। अमरीका ने कैलिफोर्निया में एक मामले की पुष्टि कर दी है। जापान, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया में भी कुछ मामले पाए गए हैं। चीन भारत का पड़ोसी देश है और दोनों देशों में आवाजाही लगातार होती रहती है, इसलिए भारत को बड़ी सतर्कता बरतने की जरूरत है। चीन के बुहान शहर में पढ़ने वाले ढाई सौ भारतीय छात्रों की चिन्ता बनी हुई है। आज के दौर में किसी भी वायरस के फैलने का खतरा काफी बढ़ चुका है।
आज समूची दुनिया आपस में जुड़ी हुई है, वह एक ग्लोबल मार्केट बन चुकी है। दुनिया भर के देशों के आपस में व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध बने हुए हैं। पर्यटन उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रसार पा चुका है। सुबह शंघाई से तो 24 घंटे में आप किसी दूसरे देश में पहुंच सकते हैं। चीन के हालात बेकाबू हो रहे हैं और स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए चीन ने वुहान शहर में दस दिन में बड़े अस्पताल का निर्माण करने का काम शुरू कर दिया है। कोरोना वायरस फैलने से चीन की अर्थव्यवस्था को तो धक्का लगना तय है लेकिन इससे 11 देशों की अर्थव्यवस्था को भी नुक्सान होने की आशंका है। चीन के 18 शहरों में ट्रेवल वैन हैं, 6 करोड़ लोग घरों में बन्द हैं और शेयर मार्केट गिर रही है।
चीन में जानलेवा कोरोना वायरस से हो रही मौतों ने 17 वर्ष पहले फैली सार्स की बीमारी से सैकड़ों मौतों की काली याद ताजा कर दी है। तब भी चीन की विकास दर लगभग ठप्प पड़ गई थी। 2002 से 2003 के बीच सार्स वायरस से चीन और अन्य देशों में 8 हजार से ज्यादा लोग पीड़ित हुए थे और दस फीसदी लोगों की मौत हुई थी। 2003 की तुलना में चीन आज कहीं अधिक गतिशील है। लाखों लोग वुहान की राजधानी हुवेई से यात्रा करते हैं। दो लाख से ज्यादा लोग रोजाना चीन से दूसरे देशों में जाते हैं। यह संख्या सार्स के दिनों से कहीं अधिक है। चीन में 1996 में पहली बार बर्ड फ्लू फैला जिसमें 450 लोगों की मौत हुई थी।
2014 से 2016 के बीच इबोला वायरस फैला। अकेले पश्चिम अफ्रीका में 11 हजार लोगों की मौत हुई थी। 2003 में दक्षिणी चीन से निकले सार्स वायरस से दुनियाभर में 774 लोगों की मौत हुई थी। 2012 में 27 देशों में मर्स वायरस का प्रकोप फैला और 2009 में आया स्वाईन फ्लू। 2016 में भारत में सार्स से सर्वाधिक मौतें हुई थीं। टैमी फ्लू की गालियां लेने के लिए अस्पतालों में लम्बी कतारें लग गई थीं।चीन के लोगों का खान-पान और जीवन शैली भारत से काफी अलग है। कहा तो यह जा रहा है कि कोरोना वायरस सांप और चमगादड़ के सूप से फैला है। इस वायरस का कोई इलाज नहीं है, ऐसे में किसी व्यक्ति के इसकी चपेट में आने पर उसे बचाने के लिए डाक्टर कुछ ज्यादा नहीं कर सकते। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अगर कोरोना वायरस भारत में अपना असर दिखाता है तो क्या हमारे पास ऐसी व्यवस्था है कि इस स्थिति से निबट लेंगे।
सरकारी अस्पताल तो पहले ही मरीजों से भरे पड़े हैं, एक-एक बैड के लिए भी सांसदों और मंत्रियों की सिफारिश लगानी पड़ती है। मैडिकल क्षेत्र में आपदा प्रबन्धन जैसी कोई चीज तो हमें नजर नहीं आ रही।अगर हमने इस बीमारी को अपने देश की सामान्य बीमारी की तरह देखा तो यह लापरवाही ही होगी। देश के हर हवाई अड्डे पर नागरिकों की गम्भीरता से निगरानी होनी चाहिए। थोड़ी-सी लापरवाही हमारे देश के लिए घातक हो सकती है। बेहतर यही होगा कि हम संक्रमण की परिस्थितियों को पूरी तरह नियंत्रित करने के साथ अधिकतम सावधानी बरतें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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