कोरोना की दूसरी लहर ने जिस तरह पूरे देश में कह बरपाया है उससे सभी मानव निर्मित चिकित्सा संस्थान इस तरह चरमराने लगे हैं जिस तरह अचानक बाढ़ आने पर मानव बस्तियां बिखरने लगती हैं। पूरे देश में आक्सीजन की कमी से त्राहि-त्राहि मची हुई है और राजधानी दिल्ली से लेकर लगभग हर राज्य के अस्पतालों में जीवन रक्षक आक्सीजन गैस की अप्रत्याशित कमी नजर आ रही है। हालत यह है कि लोग अपने परिजनों को अपनी आंखों के सामने ही इस गैस की उपलब्धता न होने की वजह से जीवन छोड़ते देख रहे हैं और विलाप कर रहे हैं। दूसरी तरफ बनारस से लेकर कई अन्य शहरों के श्मशान घाटों पर पार्थिव शरीरों को लेकर लोग कतार में खड़े हुए हैं। मृत्यु कोरोना के भेष में जिस तरह अट्टाहास कर रही है उससे मनुष्य द्वारा किये गये विकास व प्रगति के सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। महामारी के इस तांडव के आगे मानव का जीवन एक खिलौने की तरह मृत्यु के इशारों पर नृत्य कर रहा है और पूरा चिकित्सा तन्त्र व चिकित्सकीय विशेषज्ञता आक्सीजन की कमी के चलते बेजान नजर आ रही है। कहीं अस्पतालों में बिस्तर नहीं हैं और यदि हैं भी तो उन्हें आक्सीजन की अनुपलब्धता के चलते अस्पताल प्रबन्धन मरीजों को भर्ती करने से मना कर रहा है। जो मरीज घर पर हैं उनके परिजन आक्सीजन सिलेंडर के लिए बाजारों की खाक छानते फिर रहे हैं।
स्वतन्त्र भारत में स्वास्थ्य आपदा के ये दृश्य पहली बार देखे जा रहे हैं। इस महामारी पर काबू पाने के लिए राज्य आपस में ही आक्सीजन के लिए लड़ते भी देखे जा रहे हैं। एक भारत का सपना इस महामारी ने इस प्रकार बिखेर कर रख दिया है कि प्रत्येक राज्य को पहले अपने अस्पतालों में आक्सीजन की सप्लाई का मुद्दा संघीय ढांचे के सभी दायरों को तोड़ता हुआ नजर आ रहा है। गौर से देखा जाये तो भारत में ये चिकित्सा इमरजेंसी का समय चल रहा है जिसका संज्ञान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लिया है। प. बंगाल की अपनी चुनाव रैलियां रद्द करने की घोषणा करके उन्होंने देश के 130 करोड़ लोगों में यह विश्वास जमाने का प्रयास किया है कि संकट की इस घड़ी में वह नेतृत्व देने को तैयार हैं। आक्सीजन सप्लाई करने की व्यवस्था को पटरी पर लाने की गरज से उन्होंने सम्बन्धिक विभाग के आला अफसरों के साथ बैठक करके यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि प्रत्येक राज्य को उसका आवंटित आक्सीजन कोटा उठाने में किसी प्रकार की बाधा न आने पाये।
आक्सीजन वितरण केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही आता है और प्रत्येक राज्य को इसका कोटा वही निर्धारित करती है परन्तु यह भी सत्य है कि दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में कोरोना का दुष्प्रभाव बहुत तेज है। इसे देखते हुए ऐसे राज्यों का आक्सीजन कोटा बढ़ाने का भी निर्णय किया जा रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि प्रत्येक राज्य को समझना होगा कि हर भारतीय की जान महत्वपूर्ण है। श्री मोदी के कमान संभालने से यह उम्मीद बंधती नजर आ रही है कि चिकित्सीय सेवाओं के प्रबन्धन में जो अराजकता का माहौल पिछले कुछ दिनों में बना है वह दूर होगा क्योंकि उनकी कार्य करने की प्रणाली ‘सीधी कार्रवाई’ के रूप में देखी जाती है। वैसे भी प्रधानमन्त्री किसी एक राज्य या किसी राजनीतिक दल का नहीं होता है बल्कि वह समूचे देश का और प्रत्येक नागरिक का प्रतिनिधि होता है। अतः जब विभिन्न राज्यों के बीच ही कशमकश का माहौल आक्सीजन को लेकर बन रहा है तो प्रधानमन्त्री का नेतृत्व सभी दिक्कतों को दूर करने वाला होगा और लोगों में पुनः विश्वास का माहौल बनाने में सहायक होगा। अतः यह समय आलोचना या प्रत्यालोचना का न होकर परस्पर सहयोग करने का है।
सवाल यह नहीं है कि अभी तक क्या कमी रह गई है बल्कि असली सवाल यह है कि आगे कोई कमी न रहने पाये। प्रधानमन्त्री ने इसी को ध्यान में रखते हुए कमान अपने हाथ में संभाली है और राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ वार्ताओं का दौर चलाया है। क्याेंकि देशवासियों की उम्मीदें मोदी जी से हैं और वह भी सबको एक ही नजर से देख रहे हैं। अभी दो दिन पहले ही जब दिल्ली ने आक्सीजन ज्यादा मांगी तो उन्होंने राज्य का कोटा बढ़ाया और खुद सीएम केजरीवाल ने उनके प्रति आभार भी व्यक्त किया। कई राज्यों के मुख्यमंत्री कोरोना के बेहद खतरनाक हमले के बाद चिंतित थे और बराबर आक्सीजन की गुहार लगा रहे हैं। पीएम अपना कर्त्तव्य और धर्म दोनों निभा रहे हैं। इस समय हर नागरिक वह किसी भी राज्य का क्यों न हो वह भारतीय है और उसे अगर आक्सीजन चाहिए तो प्रधानमंत्री उनकी उम्मीदों पर एकदम सही उतरेंगे ऐसा विश्वास देश को है। बहरहाल अगर कोई आज की तारीख में टीका-टिप्पणी होती है तो असली उद्देश्य अस्पताल में तड़फते हुए लोगों की जान बचाने का है। उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि पीएम इस नाजुक दौर में इन लोगों को बचा लेंगे क्योंकि राज्यों को आक्सीजन पहुंचाने की समीक्षा और प्रबंध निर्बाध रूप से किए जा रहे हैं।
आज प्रत्येक संस्थान का कार्य सर्व प्रथम मानव जीवन को बचाने का है और इस कार्य में अपना योगदान करने का है। जब प्रधानमन्त्री ने यह बीड़ा स्वयं उठाया है तो पूरे देश को खड़े होकर मानव सेवा में जुट जाना चाहिए परन्तु कोरोना चेतावनी दे रहा है कि कोई भी समय ‘अचेत’ रहने का नहीं होता। जीत उसी की होती है जो सर्वता ‘सचेत’ रहता है। क्योंकि भारत के गांवों में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है कि ‘मुसीबत’ कभी ‘बता’ कर नहीं आती।