क्या मजा आ रहा है कि बिहार में ‘लालू प्रसाद एंड फैमिली’ के घोटाले पर घोटाले खुल रहे हैं और दिल्ली में अरविन्द ‘केजरीवाल एंड पार्टी’ के नये-नये कारनामें उजागर हो रहे हैं मगर किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। कल तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों से अपने मकानों से बाहर निकल कर जंग छेडऩे का आह्वान करने वाले केजरीवाल इसे अब अपना ‘जन्म सिद्ध अधिकार’ मान रहे हैं और इनके कारनामों का भंडाफोड़ करने वाले अपने पुराने साथी ‘कपिल मिश्रा’ को भरी विधानसभा में ही अपने विधायकों से पिटवा रहे हैं और सबसे गजब का आलम यह है कि विधानसभा अध्यक्ष अपने आसन पर बैठकर कह रहा है कि कोई मार-पिटाई नहीं हो रही। सदन से इसे (कपिल मिश्रा) को बाहर निकालो। लोकतन्त्र का मजाक वे लोग उड़ा रहे हैं जो कल तक यह कहते घूमा करते थे कि दिल्ली विधानसभा का सत्र खुले मैदान ‘रामलीला मैदान’ में बुलाओ और जनता को सब कुछ देखने दो। अगर हिम्मत है तो अब बुलाओ अधिवेशन रामलीला मैदान में और अपने भ्रष्टाचार का चिट्ठा आम जनता के सामने रखकर उससे उसकी राय पूछो और अमल करो! अगर हिम्मत है तो इस्तीफा देकर आरोपों की जांच का सामना उसी तरह करो जिस तरह दूसरों से अपेक्षा किया करते थे। मजमेबाजों की तरह आम आदमी पार्टी के नौसिखिये नेताओं ने पिछले दिल्ली के विधानसभा चुनावों के मौके पर अपना नकली माल बेचा और सारे वादे भूलकर दूसरे राज्यों के लोगों को मूर्ख बनाने के लिए अपना ‘टाल-टंडीरा’ बांध कर वहां निकल पड़े मगर वहां के लोगों ने इनकी बाजीगरी को तुरन्त भांप लिया और इन्हें बैरंग वापस लौटा दिया मगर हिम्मत तो देखिये किस तरह दवाइयों तक में घोटाला किया गया और दिल्ली के लोगों को मुहल्ला क्लीनिकों का ‘लाली पाप’पकड़ा कर कहा गया कि तुम इनमें कड़वी दवाएं पीते रहो हम तो 300 करोड़ रुपए तुम्हारे ही नाम पर डकारेंगे। हद होती है लोगों को मूर्ख बनाने की भी। सरकारी कागजों में दर्ज हो चुका है कि दिल्ली के मन्त्री सत्येन्द्र जैन ने बेनामी सम्पत्ति में काला धन लगाया मगर हुजूर जनता दरबार लगा रहे हैं लेकिन कयामत देखिये कि किस तरह बिहार का नमूना दिल्ली में लागू किया गया।
यहां के राजद पार्टी के पीठाधीश्वर श्रीमान लालू प्रसाद यादव ने अपने दोनों होनहार पुत्रों को राज्य में नीतीश बाबू की पार्टी जद (यू) के साथ चुनाव जीतकर मन्त्री बनवा दिया और अपनी पुत्री को राज्यसभा में पहुंचा दिया। अब इन तीनों के कारनामों की फेहरिस्त खुल रही है। बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव बिहार के माननीय स्वास्थ्य मन्त्री हैं मगर पद पर रहते इन्होंने फरवरी 2017 में पेट्रोल पम्प भी अपने नाम करा लिया। अब ये मन्त्री महोदय पेट्रोल पम्प के मालिक बन गये और इन्होंने भारतीय पेट्रोलियम कम्पनी से इकरारनामा किया कि उनका कोई दूसरा रोजगार नहीं है। वह 24 घंटे पेट्रोल पम्प की निगरानी करेंगे और इसके कारोबार पर नजर रखेंगे। लालू प्रसाद यादव पहले ही चारा घोटाले के सजा याफ्ता मुजरिम हैं और उच्च न्यायालय में अपील दायर करके जमानत पर जेल से छूटे हुए हैं। छोटे बेटे तेजस्वी यादव राज्य के उपमुख्यमन्त्री हैं मगर पटना में बन रहे शानदार ‘मॉल’ के हिस्सेदार हैं। इसका काम पर्यावरण मन्त्रालय के हस्तक्षेप के बाद रुक गया है। राज्यसभा सदस्य लालू जी की बेटी मीसा दिल्ली में बेनामी सम्पत्ति के मामले में लिप्त हैं। यह सब मजलूम बिहारियों के नाम पर किया जा रहा है और लोकतन्त्र का धन्यवाद ज्ञापित किया जा रहा है। बेहतर होता लालू जी आम बिहारी को धनवान बनाने के उपाय अपनी लोकप्रियता के चलते करते मगर उन्होंने लोगों के ऊपर परिवार को चुना। राज्य के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार का पुत्र क्या करता है और कौन से शहर में नौकरी-व्यवसाय करता है, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम मगर नीतीश बाबू की भी मजबूरी है कि वह जेल से राज्य का शासन चलाने वाले अपराधी शहाबुद्दीन के साथी लालू प्रसाद की बांहें पकड़ कर बैठे हुए हैं। और देखिये कांग्रेस की शान कि किस तरह पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित विरोधी दलों की बैठक में यह ईमानदारी के मसीहा समझे जाने वाले अपने पूर्व प्रधानमन्त्री डा. मनमोहन सिंह की बगल में लालू प्रसाद को बिठाकर इज्जत अता करती है। ऐसा लग रहा है कि जैसे पूरे कुएं में ही भांग डाल कर ईमानदार को भ्रष्टाचारी से गले मिलने के ‘गिले’ के मिटाया जा रहा है। यह स्थिति भारत के लोकतन्त्र के लिए भयावह है क्योंकि लोकतन्त्र में परिवारवाद तब प्रभावी होता है जब नेता जनता से मिली ताकत का बेजा इस्तेमाल करता है। यह ताकत लोक कल्याण के लिए जनता स्वयं उसे देती है मगर वह सत्ता के नशे में डूबकर जनता की ताकत की ‘चोरी’ करने की हिमाकत कर बैठता है लेकिन चोरी तो किसी न किसी दिन पकड़ी ही जानी होती है। यह एक बीमारी है जो भारत के लोकतन्त्र को लग चुकी है और इससे कोई भी पार्टी अछूती नहीं है लेकिन बिहार और दिल्ली में जो हो रहा है वह सीधे चोरी और सीनाजोरी है। राजनीति में भी नक्कालों के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।