एक देश-एक चुनाव के मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व में गठित आठ सदस्यीय समिति में शामिल होने से लोकसभा में कांग्रेस के नेता श्री अधीर रंजन चौधरी ने यह कहते हुए इन्कार कर दिया है कि समिति का सन्दर्भ विषय इस तरह का है कि पहले से ही इसका निष्कर्ष तय हो जाये। श्री चौधरी के कहने का मतलब है यह समिति बनाई ही गई है 'एक देश-एक चुनाव' की सिफारिश करने के लिए। बेशक श्री चौधरी के इस मत से असहमति जताई जा सकती है मगर मूल प्रश्न यह है कि हम बात किस प्रकार के चुनाव सुधारों की कर रहे हैं? भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने जब पूरा संविधान लिख लिया तो 25 नवम्बर, 1949 को उन्होंने इस बारे में जो भाषण दिया वह बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें भारत की चुनाव प्रणाली के संरक्षक चुनाव आयोग को भारतीय लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ बताया गया था। दरअसल भारतीय लोकतन्त्र मूलतः जिन चार खम्भों पर बाबा साहेब खड़ा करके गये वे न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका व चुनाव आयोग थे। इनमें से दो कार्यपालिका व विधायिका सरकार का हिस्सा थे और दो चुनाव आयोग व न्यायपालिका सरकारी अंग न होकर स्वतन्त्र व स्वायत्तशासी थे जो सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपने दायित्वों का निर्वाह करते चले आ रहे हैं।