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सामाजिक इमरजेंसी में सिमटा देश

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी आज राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ पुनः ‘वीडियो के जरिये बैठक’ करके जारी लाॅकडाऊन के बारे में फैसला लेंगे कि इसे आगे बढ़ाया जाए या नहीं और यदि बढ़ाया जाये

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी आज राज्यों के मुख्यमन्त्रियों के साथ पुनः ‘वीडियो के जरिये बैठक’ करके जारी लाॅकडाऊन के बारे में फैसला लेंगे कि इसे आगे बढ़ाया जाए या नहीं और यदि बढ़ाया जाये तो किन शर्तों को कड़ा व नरम बनाते हुए मगर एक बात सुनिश्चित है कि 14 अप्रैल के बाद भी सामाजिक अलहदगी में कोई कमी नहीं होगी। श्री मोदी ने विगत दिनों विपक्षी नेताओं के साथ अपनी बैठक में इस बारे में साफ संकेत यह कहते हुए दिया था कि यह ‘सामाजिक इमरजेंसी’ का समय है जिसका पालन करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है क्योंकि कोरोना को समाप्त करने के लिए इसे अपनाये बिना गुजारा नहीं है। 
अतः अधिक संभावना लाॅकडाऊन का समय बढ़ने की ही है परन्तु इस बीच ओडि़शा के मुख्यमन्त्री नवीन पटनायक ने अपने राज्य में लाॅकडाऊन को 30 अप्रैल तक अाधिकारिक तौर पर बढ़ा दिया है और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने इसकी अवधि 1 मई तक बढ़ा दी है। दोनों ही राज्यों ने अपने प्रदेशों की स्थिति को देखते हुए यह फैसला लिया है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह कोरोना को परास्त करने की गरज से एक के बाद एक कठोर निर्णय ले रहे हैं और साथ ही गरीब परिवारों की मदद के इन्तजाम बांध रहे हैं, उसका संज्ञान भी लिया जाना जरूरी है। श्री योगी ऐसे मुख्यमन्त्री हैं जो प्रायः नकारात्मक दृष्टि से अखबारों की सुर्खियां बनते रहे हैं परन्तु कोरोना के प्रकोप ने सिद्ध कर दिया है कि वह मूल रूप से सकारात्मक ऊर्जा के पुंज भी हैं। उनकी सकारात्मकता सीधे जमीन पर दिखाई पड़ती है।
 लाॅकडाऊन का मुकाबला रोजाना कमा कर खाने वाला व्यक्ति कैसे कर सकता है जब तक कि वह अपने बाल-बच्चों की तरफ से बेफिक्र कम से कम दो वक्त की रोटी जुटाने से न हो। श्री योगी की सरकार ने राज्य में कोरोना के हमले को देखते हुए दिहाड़ी मजदूरों के खाते में एक हजार रुपए प्रति व्यक्ति पहुंचाने का फैसला करके लाॅकडाऊन को बढ़ने की संभावना की तल्खी को कम करने का प्रयास किया है। इसके साथ ही उनकी सरकार ने राज्य के उन 15 जिलों को चिन्हित करके वहां कोरोना के मामले पाये जाने वाली बस्तियों को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है और पुलिस व चिकित्सा के सख्त इन्तजाम किये हैं, जिससे कोरोना का असर आसपास के इलाकों पर शून्य हो सके। वस्तुतः कोरोना को परास्त भी इसी तकनीक से किया जा सकता है। इसी तकनीक का इस्तेमाल दिल्ली व महाराष्ट्र की सरकारें भी कर रही हैं। 
इसके साथ ही बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश बाबू ने भी इस मोर्चे पर कमाल किया है। उन्होंने कोरोना के प्रकोप की वजह से महानगरों से गांवों की तरफ भागने वाले बिहारी मजदूरों व कामगारों को आश्वस्त किया था कि वे जहां हैं वहीं रुक जायें तो बिहार सरकार उनकी सुरक्षा व जरूरतों को पूरा करने के लिए संबन्धित राज्यों की सरकार से बात करके उनकी मदद का रास्ता निकालेगी। इसके ​लिए उन्होंने भी 100 करोड़ रुपए की धन राशि आपदा प्रबन्धन विभाग को आवंटित की थी और निर्देश दिया था कि वह उन लोगों का पता लगाएं जो कोरोना की वजह से या तो अपने राज्य में पलायन कर गये हैं अथवा बीच में ही किसी महानगर में या अन्य स्थान में रुकने को मजबूर हो गये हैं।
 आपदा प्रबन्धन विभाग ने इस मामले में जिस फुर्ती के साथ काम करके लाभार्थी मजदूरों का पता आधारकार्ड व जनधन खाते की मार्फत लगाया, उसकी भी प्रशंसा की जानी चाहिए। (बिहार जैसे राज्य के सन्दर्भ में तो यह प्रशंसा जरूर बनती है)   उसके खातों में भी बिहार सरकार ने प्रति व्यक्ति एक हजार रुपए पहुंचाने का काम कर दिया है। नीतीश बाबू ने यह भी आश्वासन दिया है कि कोरोना के प्रकोप के मद्देनजर जरूरत पड़ने पर आगे भी मदद की जायेगी। मुख्यमन्त्री राहत कोष का इससे ज्यादा जायज इस्तेमाल और दूसरा क्या हो सकता है? इसके साथ यह भी कम हैरत की बात नहीं है कि जिस बिहार में लू या सर्दी लगने अथवा बरसात में अति वृष्टि में सबसे ज्यादा व्यक्ति मौत का ग्रास बनते हैं वहां कोरोना का प्रकोप नियन्त्रित है।
 उत्तर प्रदेश व बिहार दोनों ही गरीब राज्यों की श्रेणी में आते हैं परन्तु कोरोना से मुकाबला करने में दोनों ही प्रदेश पूरी मुस्तैदी दिखा रहे हैं। योगी जी ने तो अपने विधायकों की निधि भी एक वर्ष तक के लिए खारिज कर दी है। उत्तर प्रदेश में प्रत्येक विधायक को प्रति वर्ष दो करोड़ रुपए स्थानीय विकास कार्यों के लिए मिलते हैं। अब यह धनराशि ‘कोरोना कोष’ में जमा हो जायेगी। दरअसल प्रत्येक राज्य को इसी तर्ज पर चलते हुए कोरोना का मुकाबला करने की रणनीति बनानी चाहिए जिससे गरीब परिवार पूरा सहयोग करते हुए सामाजिक अलगाव को सफल बना सकें और सही ढंग से समझ सकें कि ‘सामाजिक इमरजेंसी’ क्या होती है लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी लघु से लेकर बड़े उद्योग जगत की है कि वह अपने कर्मचारियों की छंटनी करने का खतरा पेश न करें। लाॅकडाऊन समाप्त होने के बाद देश में उत्पादन की गतिविधियां तेज करना लाजिमी होगा क्योंकि बाजार में माल की आपूर्ति पूरी करनी पड़ेगी। केन्द्र सरकार ने पिछले दिनों जो मदद पैकेज इस दृष्टि से घोषित किया था उसमें भी  संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।  इसी तथ्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुम्बई अन्तर्राष्ट्रीय  हवाई अड्डे पर  पर 4500 टन आयातित माल खुले में लावारिस की तरह पड़ा हुआ है, जिसका लदान करने वाले नदारद हैं।

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