भारत में हम इतने घोटाले देख चुके हैं कि अब किसी खबर से आम आदमी प्रभावित नहीं होता और खबर पढ़कर यह कहता हुआ आगे निकल जाता है कि ‘‘इसमें कुछ नया क्या है, आज की दुनिया में सब चलता है।’’ आर्थिक अपराधों के प्रति देश उदासीन हो चुका है और जल्दी प्रतिक्रिया नहीं देता। यह उदासीनता समाज के लिए उचित नहीं है लेकिन इतना निश्चित है कि भारत आर्थिक अपराधों में उलझ चुका है। एजैंसियां कितनी भी मुस्तैद क्यों न हों लोगों ने भी अपने रास्ते निकाल लिए हैं। आयकर विभाग ने अब 3300 करोड़ रुपए के हवाला रैकेट का पर्दाफाश किया है जो दिल्ली, मुम्बई, हैदराबाद और अन्य शहरों में फैला हुआ है।
छापों में टैक्स चोरी के सबूत मिले हैं। कार्रवाई में बड़े कारोबारी समूहों, हवाला कारोबारियों और पैसे लाने-ले जाने वाले गिरोह का खुलासा हुआ है। फर्जी ठेकों और बिलों के जरिये करोड़ों का लेन-देन किया गया। इस धंधे में लिप्त कम्पनियों ने दक्षिण भारत में कमजोर वर्गों के लिए बनने वाले प्रोजैक्टों में फर्जीवाड़ा किया।आंध्र प्रदेश के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति को 150 करोड़ से ज्यादा रकम नगद देने के भी सबूत मिल चुके हैं। देर-सवेर इस महत्वपूर्ण व्यक्ति का भी खुलासा हो ही जाएगा। कानूनी बैंकिंग तंत्र की बजाय अवैध तरीके से पैसे के लेन-देन को हवाला कहा जाता है।
हवाला का इतिहास बहुत पुराना है। हवाला के जरिये ही व्यापारी अपनी ब्लैकमनी को व्हाइटमनी में बदलते हैं। लेन-देन में अनधिकृत रूप से एक से दूसरे देश में विदेशी मुद्रा विनिमय किया जाता है। यानी हवाला विदेशी मुद्रा का एक स्थान से दूसरे स्थान पर गैर कानूनी रूप से हस्तांतरण का ही नाम है। सारा का सारा काम एजैंटों के माध्यम से किया जाता है। हवाला के जरिये ही राजनीतिक दलों और आतंकी संगठनों तक पैसा पहुंचाया जाता है। जांच एजैंसियों को पता है कि हवाला के एजैंट कहां-कहां सक्रिय हैं। राजनीतिक दल सुविधा की सियासत करते हैं, अपने लिए सब गैर कानूनी रास्ते जायज बन जाते हैं लेकिन दूसरों के लिए वही रास्ते गैर कानूनी होते हैं।
‘‘जिन्होंने लूटा सरेआम मुल्क को अपने,
उन लफंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता
गरीब लहरों पे पहरे बिठाये जाते हैं,
समंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता।’’
ऐसा नहीं है कि समंदरों पर उंगलियां नहीं उठीं, लेकिन इतने विशाल समंदरों की तलाशी कोई कैसे ले। समंदरों से अगर कुछ बरामद हुआ तो वह तो उनके विशाल खजाने का अंश मात्र के समान ही मिला।2013 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिज्ञ ने इस बात का खुलासा किया था कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त फंड नहीं था। ऐसे में उनकी मदद के लिए हवाला कारोबारी सामने आए। एक कम्पनी खोली गई। हवलदार के नाम पर कम्पनी को रजिस्टर्ड किया गया। विदेश से फंड मंगवाए गए। हवाला के जरिये फर्जी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए गए। बैंक की मदद से ब्लैकमनी को व्हाइटमनी में बदल दिया गया। यह है चुनावी सियासत का सच। हर चुनाव से पहले हवाला एजैंटों की चांदी हो जाती है क्योकि उन्हें भारी-भरकम कमीशन मिलता है। राजनितिक दलों को हवाला के जरिये चंदा मिलता है, इसको लेकर कई बार सियासी तापमान भी बढ़ा है।
पाठकों को सत्यम कम्प्यूटर्स सर्विसेज लिमिटेड का घोटाला तो याद होगा। देश में लगभग पांच सौ से अधिक कम्पनियां हवाला के जरिये धन को इधर-उधर करने का कारोबार कर रही हैं। सत्यम से जुड़ी अनेक फर्जी कम्पनियां पकड़ी गई थीं। पाठकों को जैन हवाला कांड भी याद होगा। 18 मिलियन डालर के इस घोटाले को तब का सबसे बड़ा घोटाला माना जाता है। इस घोटाले ने दिखाया कि किस प्रकार राजनीतिज्ञ और कारोबारी पैसों को ट्रांसफर करते हैं।
यह भी पता चला था कि जिस फंड के द्वारा राजनीतिक दल को पैसा ट्रांसफर किया गया उसी के जरिये आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन को भी फंड दिया गया। इस घोटाले में अनेक कारोबारियों, राजनीतिज्ञों और अफसरों के नाम उछले लेकिन सबूतों के अभाव में सब बचकरनिकल गए। घोटालों में जो बन गए वह बन गए। हवाला अब मनी लांड्रिंग बन चुका है और देश के पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम तिहाड़ जेल में हैं। सच तो यह है कि देश आर्थिक अपराधों में उलझ चुका है। आम आदमी की मेहनत की कमाई लुट रही है। कोई आत्महत्या कर रहा है तो किसी की सदमे से मौत हो रही है। कोई बेघर घूम रहा है। जाएं तो जाएं कहां?