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ब्राजील में कोवैक्सीन सौदे की गूंज

भारत बायोटेक कम्पनी द्वारा पूर्णतः भारत में निर्मित कोरोना वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ के ब्राजील की सरकार से हुए एक सौदे को लेकर उस देश की सड़कों पर जिस तरह का बवाल मचा हुआ है

भारत बायोटेक कम्पनी द्वारा पूर्णतः भारत में निर्मित  कोरोना वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ के ब्राजील की सरकार से हुए एक सौदे को लेकर उस देश की सड़कों पर जिस तरह का बवाल मचा हुआ है उससे भारत के समस्त फार्मा उद्योग में गंभीर चिन्ता का माहौल है, क्योंकि इस सौदे में जिस तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं उससे भारत के औषधी उद्योग की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। ब्राजील में सड़कों के साथ ही यहां की संसद में भी जिस तरह इस देश के विपक्षी दल सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं उससे भारत तक में इसकी गूंज सुनाई दे रही है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि ब्राजील के सर्वोच्च न्यायालय ने वहां के राष्ट्रपति श्री जेयर बोलसोनारो के खिलाफ इस सौदे को लेकर जांच के आदेश दे दिये हैं और साथ ही इस देश की दो आपराधिक जांच एजेंसियां भी पूरे मामले की जांच कर रही हैं।
कोवैक्सीन बेशक डॉ. कृष्णा इलैया की एक निजी कम्पनी है मगर कोवैक्सीन विकसित करने के लिए इसमें सरकारी संस्थान आईसीएमए का भी निवेश हुआ है और विभिन्न सरकारी विभागों व संस्थानों की शोध कार्यों में भागीदारी भी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोवैक्सीन शुरू में भारत में भी गैर वाजिब कारणों की वजह से विवाद में रही और जब इस वैक्सीन की कार्य दक्षता सन्देहों से ऊपर सिद्ध हो चुकी है तो इसके एक विदेशी सरकार के साथ हुए सौदे को लेकर विवाद पैदा हो गया है। यह गंभीर इसलिए है क्योंकि इस सौदे को लेकर गंभीर घपले व भ्रष्टाचार के प्रश्न उठ रहे हैं जिनका कुप्रभाव भारत की छवि पर पड़ रहा है। मुद्दा यह है कि भारत बायोटेक ने ब्राजील की एक फार्मा कम्पनी के साथ दो करोड़ वैक्सीन देने का सौदा किया। शुरू में प्रति वैक्सीन कीमत 1.34 डालर बताई गई मगर बाद में इसे बढ़ा कर 15 डालर प्रति वैक्सीन कर दिया गया। यह सौदा कुल 32 करोड़ डालर का हुआ। मगर इस सौदे की एवज में सिंगापुर की एक कम्पनी मेडिसिन बायोटेक ने ब्राजील की सरकार से साढ़े चार करोड़ डालर की रकम पेशगी मांगी। सवाल पैदा हो रहा है कि दो कम्पनियों के बीच हुए सौदे में यह तीसरी कम्पनी बीच में कहां से आ गई।
आरोप लग रहे हैं कि ‘मेडिसिन बायोटेक’ की मार्फत भारत बायोटेक कम्पनी दो करोड़ कोवैक्सीन ब्राजील को सप्लाई करती। इसका मतलब यह हुआ कि पहले कोवैक्सीन मेडिसिन बायोटेक को सप्लाई करती और बाद मने मेडिसिन बायोटेक इन्हें ब्राजील को सप्लाई करती। वैक्सीन सप्लाई में यह बिचौलिया रास्ता अपनाने के पीछे कहा जा रहा है कि भारत बायोटेक सिंगापुर की कम्पनी को वैक्सीन कम दाम पर सप्लाई करती और बाद में मेडिसिन बायोटेक इन्हें ऊंचे दामों पर ब्राजील को सप्लाई करती। सिंगापुर की मेडिसिन बायोटेक कम्पनी के मालिक व संस्थापक भी डॉ. कृष्णा इलैया हैं अतः इस रास्ते से जो ऊंचा मुनाफा कमाया जाता उसका हिसाब-किताब भारत बायोटेक के खाते में नहीं जाता। हालांकि ये सब आरोप हैं मगर ब्राजील में इन्हें लेकर लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं और अपने राष्ट्रपति व उनकी सरकार के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों में भारत का नाम लिया जा रहा है जिससे इसकी प्रतिष्ठा पर भी आंच आ रही है।
भारत बायोटेक में आईसीएमए की पांच प्रतिशत की भागीदारी है अतः कम्पनी के मुनाफे पर भी इसका इतना हक है। मगर भारत बायोटेक ने ‘सिंगापुर रूट’ अपनाकर सरकारी कम्पनी को उसके वाजिब मुनाफे से महरूम रखने की तिकड़म भिड़ा दी है। भारत में ऐसे मामले ‘धन शोधन’(मनी लाऊंडरिंग) के दायरे में आते हैं अतः इन आरोपों के आधार पर भारत में भी मांग की जा रही है कि वैक्सीन सौदे की जांच कराई जानी चाहिए क्योंकि भारत बायोटेक में सरकार की भी हिस्सेदारी है। ब्राजील में इस देश के चालीस से अधिक शहरों में इस सौदे को लेकर भारी प्रदर्शन हो चुके हैं और लोग मांग कर रहे हैं कि उनके राष्ट्रपति के खिलाफ महाअभियोग चलाया जाना चाहिए क्योंकि वैक्सीन खरीद में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। एक तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आर्थिक उदारीकरण के दौर में भी निजी कम्पनियों द्वारा विदेशों से किये गये सौदों को देश की सरकार की सार्वभौमिक गारंटी प्राप्त होती है। इसलिए भारत की किसी निजी कम्पनी को भी देश का नाम बदनाम करने का अधिकार नहीं होता।
ब्राजील के साथ भारत के बहुत मधुर सम्बन्ध हैं और दोनों देश विश्व की तेजी से विकास करती अर्थ व्यवस्थाएं हैं । ब्राजील उस ब्रिक्स( ब्राजील, रूस, भारत, चीन व द.अफ्रीका) संगठन का महत्वपूर्ण सदस्य है जिसकी स्थापना भारत की पहल पर ही न्यूयार्क में राष्ट्रसंघ महाधिवेशन के अवसर पर 2006 में तत्कालीन विदेश मंत्री स्व. प्रणव मुखर्जी के प्रयासों से हुई थी जिससे विश्व मंचों पर केवल यूरोप व अमरिका का ही दबदबा काबिज न रह सके। ब्रिक्स में विश्व के सात महाद्वीपों में से चार महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व है। जिनमें एशिया, द.अमेरिका, यूरोप व अफ्रीका शामिल हैं। अतः ब्राजील के साथ अपने सम्बन्धों को भारत हल्के में नहीं ले सकता है। कोवैक्सीन सौदे को लेकर ब्राजील में जो प्रदर्शनों का सिलसिला चल रहा है उसमें सबसे गंभीर पक्ष यह है कि पिछले 25 सालों के दौरान औषध पेटेंट कानून के भारत में लागू होने के बाद हमारे फार्मा उद्योग ने पूरे विश्व में अपनी सफलता का परचम इस तरह फहराया है कि यह देश दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है और हकीकत तो यह है कि कोरोना वैक्सीन के उत्पादन में भी यह संसार का अव्वल मुल्क है।

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