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क्रिकेट राजनीति : राष्ट्रहित में सोचें!

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पुलवामा हमले के बाद माहौल काफी गर्म है। एक बार फिर भारत बनाम पाकिस्तान क्रिकेट कंट्रोवर्सी शुरू हो चुकी है। भारत को पाकिस्तान के साथ विश्व कप क्रिकेट में खेलना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर टीवी चैनलों पर डिबेट जारी है। जिस तरह देश की राय बंटी हुई है, उसी तरह खिलाड़ियों की राय भी बंटी हुई है। चीख-चीखकर कहा जा रहा है कि देश क्रिकेट से कहीं बड़ा है इसलिए भारत को विश्व कप में पाकिस्तान से नहीं खेलना चाहिए। दूसरा पक्ष यह कह रहा है कि नहीं खेलने से भारत को नुक्सान होगा। भारत को विश्व कप क्रिकेट में खेलना चाहिए और पाकिस्तान को हराना चाहिए। अब सवाल उठाया जा रहा है कि भारत के बॉयकाट करने से उसे हासिल क्या होगा? पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन, पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली, चेतन चौहान, गौतम गम्भीर, हरभजन सिंह और कुछ अन्य ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलने को कहा है। सौरभ गांगुली ने तो यहां तक कह डाला कि सिर्फ क्रिकेट ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के साथ सभी खेलों में सम्बन्ध खत्म होने चाहिएं। हरभजन सिंह ने कहा है कि हम पहले भारतीय हैं और उसके बाद क्रिकेटर हैं। एक तरफ हमारे जवानों पर हमला हो और दूसरी ओर आप उसी मुल्क के साथ क्रिकेट खेलें, यह नहीं हो सकता।

पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने कहा है कि भारत अगर विश्व कप में पाकिस्तान के साथ मैच नहीं खेलता तो नुक्सान उसे ही होगा। हम तो हारे हुए कहलाएंगे और उन्हें दो अंक दे बैठेंगे इसलिए सबसे बेहतर यही होगा कि विश्व कप में हम उनके साथ खेलकर उसे हरा दें। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद को पत्र लिखकर विश्व कप में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलने के मुद्दे पर अपनी बात रखी है और क्रिकेट समुदाय से उन देशों के साथ सम्बन्ध तोड़ने का आग्रह किया है जहां आतंक को पनाह मिलती है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड विश्व कप से पाकिस्तान को बाहर करने की अपील भी कर सकता है। हालांकि इस तरह के कदम से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के नियमों में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है जो एक सदस्य को किसी अन्य सदस्य को बाहर करने की मांग करने की अनुमति दे। ऐसा नहीं लगता कि अन्य सदस्य देश पाकिस्तान को विश्व कप से बाहर करने की स्वीकृति दें।

बात सिर्फ क्रिकेट तक नहीं रुकी बल्कि भारत ने नई दिल्ली में चल रहे आईएसएसएफ शूटिंग वर्ल्ड कप में पाकिस्तानी शूटर्स को वीजा देने से मना कर दिया है। परिणामस्वरूप ओलिम्पिक से सम्बन्धित किसी ईवेंट की मेजबानी के लिए जो पोटेंशियल एप्लीकेशन होती है, उस पर चर्चा करने से भी भारत अब निलम्बित है। आगामी सितम्बर माह में भारत को पाकिस्तान जाकर डेविस कप मैच खेलने होंगे और पाकिस्तान भी हमारे खिलाड़ियों को वीजा देने से इन्कार करेगा। भारत और पाकिस्तान मेें क्रिकेट डिप्लोमेसी भी बहुत हुई है। 1999 में कारगिल ​युद्ध के दौरान भी इंग्लैंड में भारत आैर पाकिस्तान के बीच विश्व कप के मैच खेले गए। 2003 में भी संसद पर हुए हमले के 15 महीनों के भीतर वर्ल्ड कप में हमने पाकिस्तान को हराया था। 26/11 के मुम्बई हमले के बाद भी 2011 में पाकिस्तानी टीम भारत में वर्ल्ड कप सेमीफाइनल खेलने आई थी और दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने एक साथ मैच देखा था। उड़ी हमले के बाद भी 2017 में आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी में भारत पाकिस्तान के खिलाफ दो बार खेला था। क्रिकेट मैंने भी बहुत खेला है।

1970-80 के दशक में क्रिकेट सिर्फ एक खेल मात्र था। आज क्रिकेट न केवल धन कमाने के लिए सोने की खान बनकर रह गया है बल्कि सियासत का एक हथियार भी बन चुका है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसके पक्ष में कुछ बातें लिखना अपना फर्ज समझता हूं। क्रिकेट और खेल की भावना मैं समझता हूं क्योंकि बचपन में स्वयं भी ​क्रिकेट के प्रति आसक्त था और यह प्रेम मुझे रणजी ट्रॉफी से दिलीप, ईरानी आैर अंतर्राष्ट्रीय ​क्रिकेट मैचों तक खींचकर ले आया। उस समय क्रिकेट में सचमुच राजनीति का कोई स्थान नहीं था लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं।

पुलवामा हमला हमारे स्वाभिमान पर प्रहार है। अगर हम मजबूती से जवाब नहीं देते तो भारत के लोगों को लगेगा कि केन्द्र में सही समय पर सही जवाब देने की हिम्मत नहीं। मैं तो उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब हम पाकिस्तान का कश्मीर में लुकाछिपी का यह खेल हमेशा के लिए बन्द करने को मजबूर कर देंगे। मैं चाहता हूं वह हमारे साथ खून की होली नहीं खेले। मेरी अपनी मान्यता है कि जब तक रिश्ते बहुत खूबसूरत नहीं होते, पाकिस्तान से खेल की बात तो होनी ही नहीं चाहिए। देश के स्वाभिमान से बढ़कर और कोई चीज होती ही नहीं।

ऐ पाकिस्तान वालो, तुमने तो लाख सद्प्रयासों के बाद भी कश्मीर में अपना खूनी खेल बन्द नहीं किया। भारत में जघन्य अपराधों को अन्जाम देने वाले अपराधियों को तुमने शरण दी। तुमने सारे अंतर्राष्ट्रीय शांति प्रयासों को लात मारकर परमाणु गेंदें काला बाजार में बेच दीं। तुम्हारी कोई साख नहीं बची। मैंने अपनी बात कह दी है। राष्ट्र मंथन करे कि राष्ट्रहित में क्या है?

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