बिल्किस बानो के अपराधी

बिल्किस बानो के अपराधी
Published on

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार की वह याचिका एक सिरे से खारिज कर दी है जिसमें प्रार्थना की गई थी कि न्यायालय अपने विगत 8 जनवरी के उस फैसले पर पुनर्विचार करे जिसमें बहुचर्चित 'बिल्किस बानो बलात्कार व हत्याकांड' के 11 सजायाफ्ता अपराधियों की गुजरात सरकार द्वारा दी गई कृपा रिहाई (रेमिशन) को रद्द कर दिया गया था और राज्य सरकार के खिलाफ बहुत तल्ख टिप्पणियां की गई थीं। इन सभी अपराधियों को अदालत ने बिल्किस बानो के साथ बलात्कार करने व उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के अपराध में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बावजूद राज्य सरकार ने उन्हें रेमिशन दे दिया था। इस याचिका की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्तियों बी.वी. नागरत्ना व उज्जल भुइयां ने अपना ताजा फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिका पर बहुत गंभीरता के साथ विभिन्न तथ्यों की रोशनी में विचार करते हुए वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अपराधियों को रेमिशन देने की कार्यवाही कानून के अनुसार अनुचित थी।
बिल्किस बानो के साथ गुजरात के कुख्यात 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार किया गया था और उसके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी जिनमें बिल्किस बानो की एक तीन साल की बेटी भी थी। यह नृशंस कांड मानवता के नाम पर कलंक की तरह देखा गया था और इस बात का प्रमाण था कि साम्प्रदायिक दंगों के दौरान मानवता पर पैशाचिकता प्रभावी हो जाती है। जिन 11 अपराधियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी वे सभी स्वयं को सभ्य नागरिक कहने से भी नहीं चूकते थे। मगर जब 2022 में इन्हें गुजरात सरकार ने रेमिशन दिया था तो मामला सर्वोच्च न्यायालय में आया था और 13 मई, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि रेमिशन की प्रार्थना पर सम्बन्धित सक्षम राज्य सरकार को विचार करना चाहिए और एक अपराधी की प्रार्थना पर उसने 1992 की रेमिशन नीति के अनुसार निस्तार किये जाने की बात भी कही थी। मगर गुजरात सरकार ने दलील रखी कि 8 जनवरी, 2024 के फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुकदमे पर बहुत ही तल्ख व सख्त टिप्पणियां की और अपने आंकलन में कहा कि राज्य सरकार ने अपराधी नम्बर तीन राधेश्याम भगवान दास शाह के साथ मिलीभगत व सांठगांठ करके रेमिशन की कार्रवाई को अंजाम दिया। (सर्वोच्च न्यायालय ने 8 जनवरी के अपने फैसले में रेमिशन को रद्द कर दिया था) अतः ऐसी टिप्पणियों में संशोधन किया जाना चाहिए।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि 2008 में मुम्बई की सीबीआई अदालत ने इन सभी 11 अपराधियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। मगर जब 2022 में सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ के न्यायमूर्तियों ने अपना फैसला दिया तो साफ कर दिया कि रेमिशन सक्षम सरकार ही स्वीकार कर सकती है। जब रेमिशन दिया गया था तो भी यह विवाद खड़ा हुआ था कि इन अपराधियों की रिहाई गुजरात सरकार द्वारा की जाये या महाराष्ट्र सरकार द्वारा क्योंकि बिल्किस बानो का मुकदमा महाराष्ट्र में स्थानान्तरित कर दिया गया था।
मूल सवाल यह है कि क्या एेसे जघन्य कांड करने वाले अपराधियों को रेमिशन मिलना चाहिए या नहीं? भारत के सामान्य नागरिक की बुद्धि कहती है कि एेसा पैशाचिक काम करने वाले लोगों के साथ किसी भी प्रकार की कृपा कैसे दिखाई जा सकती है क्योंकि वे साधारण अपराधी नहीं हैं बल्कि पूरी मानवता के अपराधी हैं। मगर भारत में कुछ लोगों की मानसिकता अभी भी सामन्तवादी व​ पितृसत्तात्मक सत्ता वाली है अतः जब ये अपराधी जेल से छूट कर आये थे तो फूलमालाएं पहना कर कुछ संगठनों ने इनका स्वागत किया था और इन्हें संस्कारी बलात्कारी बताया था। यह किसी सड़े-गले समाज की मानसिकता ही हो सकती है जिसमें एेसी जहालत का प्रदर्शन होता है।
भारत के लोग चाहे वे किसी भी राज्य के हों, किसी बलात्कारी को संस्कारी नहीं मान सकते हैं। भारत में तो नारी का सम्मान करने के संस्कार हैं चाहे वह किसी भी धर्म या जाति की हों। ये संस्कार हमें हमारे इतिहास के महानायकों ने दिये हैं चाहे वह शिवाजी महाराज हों या राजस्थान के वीर दुर्गादास राठौर जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब की पोती का पालन-पोषण एक पिता की तरह किया था और उसकी शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था पूरी इस्लामी तहजीब के अनुसार कराई थी। अतः सर्वोच्च न्यायालय का बिल्किस बानो के सम्बन्ध में विगत 8 जनवरी को दिये अपने फैसले में किसी भी प्रकार का संशोधन न करना बताता है कि पैशाचिक कृत्य करने वाले लोगों के साथ किसी प्रकार की दया दिखाना उचित नहीं होता। इसलिए न्यायमूर्तियों ने न केवल गुजरात सरकार की पुनर्विचार याचिका को खारिज किया बल्कि इसके साथ यह भी आदेश दे दिया कि इस सम्बन्ध में जितनी भी अन्य याचिकाएं हैं वे भी निरस्त समझी जायें।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Related Stories

No stories found.
logo
Punjab Kesari
www.punjabkesari.com