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गौवंश संवर्धन से बचेगी देश की संस्कृति

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गाय की महिमा को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। गाय हमारे जीवन से जुड़ी है, उसके दूध से लेकर मूत्र तक का उपयोग किया जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि गाय की पूंछ छूने मात्र से ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। गाय के दूध में वह सारे तत्व मौजूद हैं, जो जीवन के लिए जरूरी हैं। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गाय के दूध में बहुत शक्ति है। मीरा ज़हर पीकर भी जीवित बच गई थी क्योंकि वह पंचगव्य का सेवन करती थी लेकिन कृष्ण को पाने के लिए लोगों में मीरा जैसी भावना नहीं रही। लोग अपने लिए आलीशान इमारतें बना रहे हैं। यदि इतना धन कमाने वाले अपनी कमाई का एक हिस्सा भी गौ सेवा और उनकी रक्षा के लिए खर्च करें तो गौमाता की रक्षा होगी। समय के बदलते दौर में राम, कृष्ण और परशुराम भी आए और उन्होंने भी गायों के उद्धार का काम किया। जब पांडव वन जा रहे थे तो उन्होंने गाय का साथ मांगा था। गाय की महिमा का सूरदास और तुलसीदास ने भी वर्णन किया है। लोग आज ‘बाबाओं’ के चक्कर में फंसे हुए हैं, उन पर तो लाखों रुपए खर्च कर देते हैं लेकिन दृश्य देवी की रक्षा के लिए बहुत कम लोग आगे आ रहे हैं। आज गौवंश की हत्या आैर तस्करी हो रही है। गौशालाओं में गाय मर रही हैं। जो लोग गाय पालते हैं आैर उसके दूध का व्यापार भी करते हैं, वे भी अपनी गायों को सड़कों और गलियों में छोड़ देते हैं। सड़कों, गलियों में घूमती गाय दुर्घटनाओं का शिकार हो जाती हैं जिससे जान-माल की क्षति भी होती है। गौवंश बढ़ने की बजाय उसकी संख्या में निरंतर कमी आ रही है। मध्यप्रदेश में गौवंश की संख्या काफी अधिक थी लेकिन गौवंश गणना के आंकड़ों ने सरकार की गौरक्षा की नीयत पर सवाल अंकित कर दिए हैं।

विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत संख्या के अनुसार मध्यप्रदेश में पांच साल में 2 करोड़ से अधिक गौवंश लापता हो गए हैं। बुंदेलखंड के सागर संभाग में 7 लाख गौवंश का अता-पता नहीं है। आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि मृत गाय के शरीर से निकलने वाली बेशकीमती गौरोचन के लालच में तो गाय की हत्याएं करने वाला गिरोह सक्रिय नहीं है! गाय के पेट में बनी पथरी को गौरोचन कहा जाता है ​जिसका बाजार मूल्य 20 हजार रुपए प्रति ग्राम बताया जाता है, इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों में होता है। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार गौसंवर्धन बोर्ड के माध्यम से प्रतिवर्ष गौशालाओं को करोड़ों का अनुदान देती है लेकिन गौवंश गायब हो रहा है। ज्यादातर गौवंश आवारा और लावारिस हालत में घूमते देखा जाता है, जो कचरे के ढेर से पेट भरता है। बुंदेलखंड में गौ तस्करों सहित गौरोचन के लालची बड़ी मात्रा में गाय की हत्याएं कर रहे हैं। गौवंशों की संख्या में भी कमी से इन आरोपों को बल मिलता है कि कहीं न कहीं गाय के नाम पर बड़ा खेल हो रहा है। अब सवाल यह है कि गाय का संरक्षण कैसे किया जाए? गौवंश सड़क पर न होकर हमारे घरों में हो और हम सब उनकी सेवा करें तो स्थिति बदल सकती है। मध्यप्रदेश में गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है। मध्यप्रदेश गौवंश प्रतिरोध अधिनियम 2004 के साथ में मध्यप्रदेश गौवंश वध प्रतिरोध अधिनियम 2012 तथा मध्यप्रदेश कृषक परिरक्षण अधिनियम 1559 नवीनतम न्याय दृष्टांत एवं अधिसूचना सहित प्रभावी हैं। जहां गाय का आहार जंगल में है और जंगल का आहार गाय के पास है परन्तु स्थितियां पहले से काफी अलग हैं।

मध्यप्रदेश सरकार अब गौवंश वध प्रतिरोध कानून में संशोधन करने जा रही है जिसमें गौवंश को सड़कों पर खुला छोड़ने वालों को दंडित करने का प्रावधान किया जाएगा। मध्यप्रदेश में देश की कुल मवेशी जनसंख्या का 10.27 प्रतिशत मवेशी हैं। पिछले कुछ महीनों से ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि आवारा गाय फसलों को नष्ट कर रही हैं, सड़कों पर दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। मध्यप्रदेश में एक करोड़ 96 लाख पशु हैं। कानून में संशोधन कर यह प्रावधान किया जा रहा है कि अगर कोई गाय सड़क दुर्घटना में मारी जाती है तो इसके लिए उसके मालिक को दंडित किया जाएगा। गायों को सड़कों और शहरों की गलियों से दूर रखने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा। अगर कोई गौवंश पालता है तो उसकी रक्षा की जिम्मेदारी भी उसी की होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि वह अपने पशुओं को दिन में खुला छोड़ दें। मध्यप्रदेश शासन द्वारा विशाल भूखंड में वन संरक्षण हेतु अभयारण्य की स्थापना की गई है। राज्य के आगर मालवा जिला के सालरिया नामक स्थान पर इसकी स्थापना की गई है जिसमें 6000 गौवंश का संरक्षण होगा। समय के आधार पर जंगल में गायों के आश्रय स्थल सुनिश्चित किया जाना समय की जरूरत है। मध्यप्रदेश के दस गौसदन शासन के पशुपालन विभाग द्वारा संचालित थे जो कई कारणों से पूर्ववर्ती शासन ने बंद कर दिए थे। अब 8 गौसदनों को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव है। किसानों को भी गौधन को अपना धन मानकर इसकी रक्षा करनी होगी। गाय बचेगी तो धन बचेगा। गौवंश का सड़क पर मारे- मारे विचरण करना मानवीय दृष्टि से भी उचित नहीं। गाय के प्रति परम्परागत श्रद्धा बनी हुई है परन्तु हमारी जीवनशैली ऐसी बनी हुई है कि हम धीरे-धीरे माता से दूर हो गए हैं। हमें सच्चे अर्थों में गाय को मां समान मानकर उसकी सेवा करनी होगी। गाय की उपेक्षा से ही पूरे समाज का स्वास्थ्य चक्र बिगड़ा है। उसे ठीक करने के लिए समाज को गाय की ओर लौटने के लिए प्रेरित करना ही होगा। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गौवंश संवर्धन के लिए उठाए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं।

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