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दुनियाभर में बढ़ते साइबर अपराध

जैसे-जैसे दुनिया में इंटरनेट के उपयोग में लगातार बढ़ौतरी हो रही है, वैसे-वैसे साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं। भारत में भी इंटरनेट क्राइम का ग्राफ तेजी से बढ़ा है।

जैसे-जैसे दुनिया में इंटरनेट के उपयोग में लगातार बढ़ौतरी हो रही है, वैसे-वैसे साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं। भारत में भी इंटरनेट क्राइम का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। बैंकों के उपभोक्ता उनके खाते से धन गायब होने की ​शिकायतें कर रहे हैं। पहले देश में साइबर अपराध का मुख्य केन्द्र दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरु और पुणे जैसे महानगर ही होते थे लेकिन आजकल साइबर अपराध का विस्तार छोटे शहरों तक में भी हो गया है। साइबर अपराध के मामले में भारत विश्व के पांचवें पायदान पर खड़ा है। भारत में तीन-चौथाई इंटरनेट उपभोक्ता किसी न किसी तरह साइबर अपराधों का शिकार हो रहे हैं। 
अभी दो दिन पहले ही सिंगापुर स्थित एक ग्रुप आईबी सुरक्षा अनुसंधान की टीम ने डार्क वेब पर क्रेडिट और डेबिट कार्ड के विवरण के एक बड़े डेटाबेस का पता लगाया है। इनमें 13 लाख से अधिक उपयोगकर्ताओं के भुगतान से जुड़ी पहचान शामिल है। जांच में पता चला है कि इसमें सर्वाधिक ट्रैक-2 डेटा चोरी हुआ है, जो कार्ड के पीछे मेग्नेटिक स्ट्रिप में होता है। वैश्विक स्तर पर लगभग 65 फीसदी इंटरनेट उपयोक्ता साइबर क्राइम के शिकार होते हैं जबकि भारत में यह संख्या 76 प्रतिशत है। इनमें कंप्यूटर वायरस, ऑनलाइन क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी और आइडेंटी चोरी जैसे अपराध शामिल हैं। 
देश में साइबर संबंधी अपराधों की घटनाओं में करीब 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हर साल हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी रिपोर्ट में इस संबंध में जानकारी दी गई है। इसके अनुसार सबसे अधिक साइबर अपराध ‘पोर्नोग्राफी’ से संबंधित हैं। इनमें सबसे खास बात यह है कि इन वारदातों को अंजाम देने वाले अपराधियों की उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच है। औद्योगिक क्षेत्र इंटरनेट के क्षेत्र में हुए विकास का लाभ भले ही उठा रहा हो, लेकिन हकीकत यह भी है कि साइबर अपराध में वृद्धि से निगमित क्षेत्र की आय पर्याप्त मात्रा में प्रभावित हो रही है। विशेषज्ञों की मानें तो साइबर अपराधों के कारण बहुत सी कंपनियों को अपनी आय में 8 से 10 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ता है। 
वस्तुत: हिन्दुस्तान के सूचना भंडार पर बाहरी देशों की लगातार नजर बनी रहती है जबकि देश के सभी राज्यों का एक पक्ष यह भी है कि साइबर अपराध की तेजी से बढ़ती घटनाओं के मुकाबले पुलिस और इनफोर्समेंट एजेसियां कंप्यूटर तकनीक के मायाजाल से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं। हैकिंग, डाटा चोरी, डिजिटल हस्ताक्षर, सर्विलेंस और गोपनीय दस्तावेजों को खुफिया हमले से बचाने के लिए राज्यों में अपनाई जा रही कंप्यूटर इमर्जेन्सी रिस्पांस टीम (सर्ट-इन) तकनीक भी पूरी तरह से सफल साबित नहीं हो पा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि आईटी दक्षता के मद्देनजर आने वाले समय में सभी प्रदेशों में साइबर अपराध आतंकवाद को पीछे छोड़ देगा। 
वस्तुत: ये साइबर आतंकवादी ऐसे लोग हैं जो किसी सामाजिक, धार्मिक, सैद्धांतिक, राजनीतिक या अन्य उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कंप्यूटर या कंप्यूटर तंत्र को बाधित कर लोगों को डरा-धमकाकर अपने हितों की पूर्ति करते हैं। आतंकवादी और जेहादी संगठनों की तरह साइबर अपराधी राज्यों में विशेषकर सॉफ्ट टारगेट के तौर पर देश के छोटे शहरों को निशाना बना रहे हैं। इनमें पुणे, नोएडा, गुड़गांव और भोपाल के अलावा दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तमिलनाडु और पंजाब शामिल हैं। आज तेजी से विकसित हो रही सूचना तकनीक ने साइबर अपराधियों की मुश्किलों को आसान बना दिया है।  
देश के सभी राज्यों में मुख्य रूप से वित्तीय संस्थान, बैंकिंग, कॉर्पोरेट, वाणिज्य और औद्योगिक क्षेत्र साइबर अपराधियों के निशाने पर हैं। सूचना तकनीक के इस दौर में आतंकियों ने हथियारों के साथ तकनीक को जोड़ने की कला में महारत हासिल कर ली है। यदि समय रहते इस पर लगाम न लगाई गई तो आगे चलकर यह और भी खतरनाक रूप अख्तियार कर सकता है। अगर भारतीय बैंक उपभोक्ताओं का डेटा सिंगापुर या अन्य देशों में उपलब्ध है तो फिर उनका धन भी सुरक्षित नहीं है। 
अब तो सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म व्हाट्सऐप में भी सेंध लगाई जा चुकी है। ब्लॉग, इंटरनेट, ई-मेल के जरिये लोकतांत्रिक व्यवस्था विरोधी गतिविधियों को भी आतंकवाद मानते हुए साइबर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। भारतीय साइबर कानून 2000 में भी संशोधन किया जा चुका है। लोग फिर भी जागरूक नहीं हैं, बड़ी राशि पुरस्कार स्वरूप पाने के लिए वह अपने खाते की जानकारी दे देते हैं और अपनी जीवनभर की कमाई गंवा देते हैं। अभी तक साइबर अपराधों से बचने के लिए कोई ठोस तंत्र विकसित नहीं हो पाया। 
साइबर अपराध एक गम्भीर खतरे के रूप में विकसित हो रहा है। दुनिया भर की सरकारों, पुलिस विभागों और गुप्तचर इकाइयों ने साइबर अपराध के खिलाफ प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया है। सीमापार साइबर खतरों पर अंकुश लगाने के ​लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय पुलिस के देशभर में विशेष साइबर सेल स्थापित हो चुके हैं और लोगों को शिक्षित करना शुरू कर दिया है ताकि वे ज्ञान हासिल करें और ऐसे अपराधों से खुद को बचाएं।

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