हार-ईवीएम व राहुल के तेवर

हार-ईवीएम व राहुल के तेवर
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'तुम्हीं बताओ ऐ दोस्त यह अश्क सा क्या है जो मेरी आंखों से पिघल रहा है
तुमने कितना हसीन दिखाया था ये मंजर फिर क्यों ये धू-धू कर जल रहा है'
हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्या​िशत हार के लिए कांग्रेस में बलि का बकरा ढूंढने की कवायदों के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता ईवीएम में कथित गड़बड़ी की शिकायत दर्ज कराने चुनाव आयोग के पास गुरुवार को पहुंचे, आयोग को बकायदा इस बाबत ज्ञापन सौंप कर नेतागण पार्टी अध्यक्ष खड़गे के निवास पर आए, जहां हरियाणा की हार को लेकर एक रिव्यू मीटिंग होनी थी। राहुल गांधी की हरियाणा के अपने वरिष्ठ नेताओं से नाराज़गी इस बात से ही समझी जा सकती है उस दिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा दिल्ली में थे, पर उन्हें इस मीटिंग में बुलाया ही नहीं गया। शैलजा व सुरजेवाला को तो इस मीटिंग की जानकारी देने की जहमत भी नहीं उठाई गई।
हरियाणा के पार्टी प्रभारी दीपक बावरिया से भी राहुल खासे कुपित बताए जाते हैं, सो बावरिया की उपलब्धता के बावजूद उन्हें इस मीटिंग में सिर्फ 'वर्चुअली' जोड़ा गया। अजय माकन से लेकर केसी वेणुगोपाल तक ने इस हार का ठीकरा पूरी तरह से ईवीएम पर फोड़ दिया, स्वयं खड़गे भी इसी राय की वकालत करते दिखे। इस बैठक में मौजूद राहुल गांधी से जब रहा न गया तो वे आपे से बाहर हो गए, वहां मौजूद तमाम सीनियर नेताओं को लगभग डपटते हुए तल्ख लहजों में कहना शुरू कर दिया-सिर्फ ईवीएम पर दोष मढ़ कर आप अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते।
हम हरियाणा की जीती हुई बाजी सिर्फ इस वजह से हार गए कि हमारे 'इलेक्शन मैनेजमेंट' में ही ढेर सारी गड़बड़ियां थीं। हमारा टिकट वितरण ठीक नहीं था, हमारे नेताओं में आपसी सामंजस्य कितना था इसका फायदा तो विरोधियों ने भी उठाया। मैं आखिर तक कहता रहा पर आप लोगों ने गठबंधन की राजनीति को किनारे कर दिया, सिर्फ आम आदमी पार्टी की वजह से हम 6-7 सीट हार गए। पार्टी के बागियों को आप लोग संभाल नहीं पाए, वोटर सचमुच वहां भाजपा से नाराज़ थे, पर भाजपा विरोधी वोट एकजुट होकर हमें नहीं मिले, कई छोटी पार्टियां व निर्दलियों में बंट गए। मैं कम से कम ऐसी 17 सीटें गिना सकता हूं जहां हम अपनी मैनेजमेंट की वजह से हारे हैं…' बोलते-बोलते राहुल इतने गुस्से में आ गए थे कि वे इस मीटिंग को अधबीच छोड़ कर ही वहां से चले गए।
सुरजेवाला, हुड्डा, शैलजा सब लगेंगे किनारे
संकेत मिल रहे हैं कि हरियाणा की अप्रत्या​िशत हार से बिलबिलाए राहुल गांधी अपनी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के पर कुतर सकते हैं, ऐसा हरियाणा की हार के कारणों को ढूंढने के लिए गठित 'फैक्ट फाइडिंग कमेटी' की रिपोर्ट सामने आने पर हो सकता है। राहुल हरियाणा को लेकर बेहद गुस्से में बताए जा रहे हैं, सो वे हरियाणा समेत अन्य राज्यों में भी नया व युवा नेतृत्व उभारने के पक्ष में बताए जा रहे हैं।
राहुल ने पार्टी में यह बात पहले भी की थी, पर पार्टी के सीनियर नेताओं ने तब उनसे नाराज़ होकर जी-23 का गठन कर लिया था, भूपेंद्र हुड्डा भी तब उस ग्रुप के एक अहम चेहरा थे। राहुल को लगता है कि हुड्डा ने किसी भी जनाधार वाले नेता को पार्टी में टिकने ही नहीं दिया, चाहे वह राव इंद्रजीत सिंह हों, किरण चौधरी हों या फिर कुलदीप बिश्नोई। कमोबेश शैलजा भी हुड्डा की राह पर ही चलीं उन्होंने किसी और दलित नेता के लिए कांग्रेस में संभावनाओं की जमीन को बेहद सीमित कर दिया, शायद इसी वजह से अपेक्षाकृत युवा अशोक तंवर कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गए थे।
चुनाव के दो रोज पहले उनकी कांग्रेस में पुनर्वापसी हुई पर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में शैैलजा के सियासी स्पेस में तंवर चहलकदमी करते दिख जाएंगे, जिन दिवंगत अहमद पटेल ने शैलजा को कांग्रेस की राजनीति में इतना आगे बढ़ाया था अब तो वे भी नहीं रहे, चुनांचे शैलजा को पार्टी ठंडे बस्ते के हवाले कर सकती है। कमोबेश यही हाल रणदीप सुरजेवाला का भी हो सकता है, बड़ी मुश्किल से वे अपने गढ़ से अपने बेटे को इस बार जीता पाए हैं। कहा जा रहा है कि बहुत जल्द उनके हाथों से कर्नाटक का प्रभारी भी छीना जा सकता है। रही बात इस बार के सबसे बड़े प्रतिखलनायक की तो इसका सेहरा भी हुड्डा के सिर बंधता है। पार्टी ने उनके कहने पर प्रदेश की 90 में से 72 टिकट दिए थे। कहा जाता है जिन बची 18 सीटों पर हुड्डा अपने लोगों को टिकट नहीं दिलवा पाए उन्होंने अंदरखाने से वहां कांग्रेस बागियों की मदद कर दी, सो बाजी यहीं से पलट गई।
लूटा यूं चमन-बागवां
इस बार राहुल गांधी अपनी पार्टी के नेताओं को सस्ते में नहीं छोड़ना चाहते, भले ही बदलते दौर में कांग्रेस का दामन सिमटता रहा पर इन जमे जमाए बड़े नेताओं की दुकान बढ़ती गई। राहुल ने ऐसे दो लोगों की भी एक फेहरिस्त बनाई है, इस लिस्ट में दीपक बावरिया व सुनील कानूगोलू आदि के नाम शामिल हैं। दीपक बावरिया हरियाणा के प्रभारी भी सिर्फ इस वजह से बनाए गए थे क्योंकि वे राहुल के खास लोगों में शुमार होते थे। पर उन पर आरोप है कि 'पूरे चुनाव के दौरान वे ग्राउंड पर नज़र ही नहीं आए, उन्होंने अपनी पूरी भूमिका बस चुनाव में टिकट बांटने तक ही सीमित रख ली थी', टिकट वितरण को लेकर भी उनके खिलाफ आलाकमान के पास कई शिकायतें पहुंची हैं।
अब बात करें चुनावी रणनीतिकार सुनील कानूगोलू की, पूरी चुनावी रणनीति बनाने व सिरे चढ़ाने की जिम्मेदारी इनकी थी, इन्होंने ही विधानसभा वार जीत सकने वाले उम्मीदवारों की पूरी लिस्ट वरियता के क्रम में बनाई थी, तो क्या यह लिस्ट व जमीनी सर्वे का मिलान पक्का नहीं था? या कई पार्टी के बड़े नेताओं के कहने पर लिस्ट में उलटफेर कर दी गई? अब राहुल अपने इन प्रिय दोनों से बस यही कहते घूम रहे हैं कि-
'तेरे रहते लूटा है चमन बागवां,
कैसे मान लूं कि तेरा इशारा न था।'
बम-बम हैं संघ
हरियाणा की जीत व जम्मू-कश्मीर चुनाव में भाजपा के उत्साहजनक प्रदर्शन को लेकर संघ नेतृत्व बम-बम है। पिछले कुछ समय से संघ व भाजपा के दरम्यान जो तल्खी की खबरें आ रही थी संघ नेतृत्व ने उस पर भी मिट्टी डालने का काम किया है। अब संघ न सिर्फ महाराष्ट्र व झारखंड के चुनाव की तैयारियों के लिए कमर कस चुका है, बल्कि बिहार व दिल्ली के चुनाव भी उनके एजेंडे में शुमार हो चुके हैं, जहां आने वाले वर्ष यानी 2025 में इन दोनों राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
अभी दिल्ली चुनाव की तैयारियों की झलक संघ के दो दिवसीय रणथंभौर की बैठक में देखने को मिली, जब दिल्ली के प्रांत व विभाग प्रमुखों की मौजूदगी में दिल्ली भाजपा के सभी विधायक, सांसद व पार्टी पदाधिकारियों ने इस बैठक में शिरकत की, जिसे संघ की ओर से अरुण कुमार ने संबोधित भी किया।
…और अंत में
सूत्रों की मानें तो नायब सिंह सैनी की 17 अक्टूबर को दुबारा बतौर हरियाणा के मुख्यमंत्री ताजपोशी हो सकती है। माना जा रहा है कि इस बार उनके मंत्रिमंडल में एक दर्जन तक मंत्री हो सकते हैं। जिसमें सावित्री जिंदल, श्रुति चौधरी जैसे नए चेहरों के साथ अनिल विज जैसे पुराने चेहरों की भी झलक मिल सकती है। अब तक हरियाणा के विभिन्न सरकारी विभागों के लिए 25 हजार भर्तियों को रोक कर रखा गया था, इस भर्ती परीक्षा के नतीजे भी कुछ रोज में आ सकते हैं ताकि नायब सरकार की ताजपोशी के साथ प्रदेश के युवाओं में एक सकारात्मक संदेश भेजा जा सके।

– त्रिदिब रमण

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