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दिल्ली केजरीवाल के साथ!

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सब जानते हैं कि दिल्ली में बहुशासन प्रणाली है। दरअसल, दिल्ली देश की राजधानी है लिहाजा यह केंद्रशासित प्रदेश है, परंतु इसके बावजूद दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। कहीं केंद्र सरकार तो कहीं राज्य सरकार, एमसीडी, कहीं विधानसभा, कहीं पालिका परिषद तो कहीं कैंटोनमेंट बोर्ड इत्यादि शासन के कई केंद्र हैं। सब यह भी जानते हैं कि केंद्र में भाजपा की सरकार है और राज्य में केजरीवाल सरकार है। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली में राज्य और केंद्र में टकराव इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन अब पिछले साढ़े तीन साल से एलजी कार्यालय और सीएम ऑफिस में टकराव पूरे शबाब पर है। सत्ता को लेकर अक्सर दर्जनों मुद्दों पर उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री में पंगेबाजी चलती रही और आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। बात यहां तक आ गई कि दिल्ली में शासन का बड़ा केंद्र एलजी ऑफिस है या फिर सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों जो व्यवस्था दी उसके तहत दोनों के अधिकार क्षेत्र राजनीतिक दृष्टिकोण से तय कर दिए गए।

मोटे तौर पर कामकाज करने का अधिकार दिल्ली सरकार का रहा और कई सर्विसेज के प्रशासन से जुड़े मामलों पर दिल्ली सरकार को जांच एजेंसियां गठित न करने की हिदायत भी दी। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को केंद्र और दिल्ली सरकार ने अपने-अपने ढंग से लिया। सत्ता का सबसे बड़ा बॉस तो सीएम ही माना गया है, लेकिन पुलिस और सुरक्षा के अलावा जमीन-जायदाद से जुड़े कई मामले उपराज्यपाल तथा केंद्र सरकार के तहत ही रखे गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी चतुराई से सब कुछ किया लेकिन दिल्ली में आज की डेट में इसी सत्ता को लेकर जिस तरह से टकराव चल रहा है, लोकतांत्रिक नजरिये से देखा जाए तो लोग केजरीवाल से सहानुभूति रखते हैं, जिसका वह राजनीतिक रूप से लाभ उठाने को तैयार हैं। यह बात पक्की है कि दिल्ली में किसी का भी शासन हो, चाहे वह यूटी हो या फिर राज्य सरकार, अफसरशाही ही सारा काम करती है। जितने भी आईएएस या प्रशासनिक अफसर हैं उनमें केंद्र सरकार का सीधा-सीधा दखल है और वे केंद्र सरकार के अधीन हैं।

दूसरी तरफ दिल्ली सरकार के मंत्री अपनी हर योजना जो बनाते हैं उसकी फाइलें अंतिम स्वीकृति के लिए एलजी दफ्तर जाती हैं और एलजी चाहें तो इसकी तहकीकात इन्हीं अफसरों से करवाते हैं। तीन दिन पहले दी गई सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के बावजूद नए टकराव 24 घंटे के बाद ही शुरू हो गए। दिल्ली सरकार की योजनाओं को एलजी ऑफिस या अन्य विभागों के आईएएस मोहर लगाने को तैयार नहीं। समस्या वहीं की वहीं है। बात जब राजनीतिक नफे-नुकसान की चलती है तो भाजपा, आम आदमी पार्टी या फिर कांग्रेस हर कोई लाभ उठाने की कोशिश तो करता ही है। इस समय सोशल साइट्स पर जिस तरह से लोग अपनी बातें शेयर कर रहे हैं, उसका संदेश यही है कि केजरीवाल बहुत कुछ दिल्लीवालों के लिए कर रहे हैं, परंतु केंद्र सरकार और एलजी ऑफिस उन्हें कुछ भी करने नहीं दे रहे। सोशल साइट्स पर लोग कह रहे हैं कि केंद्र सरकार के इशारे पर एलजी ऑफिस दिल्ली के विकास कार्यों में रुकावटें खड़ी कर रहा है।

कामकाज को लेकर दो साल तक रुके रहने के बाद केजरीवाल ने आखिरकार एलजी के दफ्तर में ही धरना देकर अपने प्रोटेस्ट की एक नई परिभाषा लिख दी। सात दिन के बाद उन्हें धरना खत्म करना पड़ा और मामला यहां तक पहुंचा कि आज भी एलजी ऑफिस से जुड़े और केंद्र सरकार के अफसरों के पास फाइलें पेंडिंग हैं। यह बात सोशल साइट्स पर आमतौर पर पढ़ी जा सकती है और इसके बाद लोगों की भावनाएं किधर जा रही हैं इसे समझा जा सकता है। इधर केंद्र सरकार और एलजी ऑफिस तरह-तरह की सफाइयां दे रहे हैं। सच बात यह है कि किसी भी कामकाज में अगर पंगेबाजी खड़ी करनी हो तो इसे आसानी से किया जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि राज्य और केंद्र सरकार में तालमेल होना चाहिए। दिल्ली में एक गड्ढा खोदना हो तो चार-चार पांच-पांच डिपार्टमेंट काम कर रहे हैं। गड्ढा खोदने के बाद उसमें पानी की पाइप डाली गई या बिजली के तार इसका संबंध लोगों की जरूरत से था। वह पूरी भी हो रही है परंतु जो गड्ढा एक बार खोद दिया गया उसे दुबारा उसी जगह भरने का काम कोई विभाग नहीं करता और यह कहकर छोड़ देता है कि हमने तार डाल दी है या पाइप डाल दी है, अब इसे भरना दूसरे डिपार्टमेंट का काम है।

हमारा सवाल यह है कि यह परंपरा कब तक चलेगी। सच यह है कि इसी दिल्ली में अनेक फ्लाईओवर और मैट्रो जैसे बड़े प्रोजेक्ट शीला शासन में सफलता के आयाम तय कर चुके हैं। दिल्ली का विकास एक मॉडल बना, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस क्यों हारी हम इस पंगे में न पड़कर केवल इतना कहना चाहते हैं कि दिल्ली में विकास जारी रहना चाहिए। दुर्भाग्य से दिल्ली में आज हर कोई एलजी और सीएम की लड़ाई को केंद्र सरकार की देन बता रहा है और इस मामले में जब केंद्र की ओर से बड़े-बड़े हुक्मरान और भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज सफाइयां देने लगते हैं तो लोग इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं। उनकी भावनाएं साेशल साइट्स पर देखी और समझी जा सकती हैं। हमारा तो यह मानना है कि हर सूरत में विकास होना चाहिए और लोगों को सहूलियतें मिलनी चाहिएं। बिजली, पानी, स्कूली शिक्षा जैसे मुद्दों पर केजरीवाल लोगों के दिलों में उतर रहे हैं और उनकी भावनाओं को समझ रहे हैं, इस बात को भाजपा हुक्मरानों और नीति विशेषज्ञों को अपने दिलों में बैठा लेना चाहिए। कुल 67 सीटें लेकर शासन कर रही आम आदमी पार्टी दिल्ली में 15 साल से शासन कर चुकी कांग्रेस को 0 पर ला चुकी है और भाजपा 33 प्रतिशत वोट शेयर के बावजूद 3 सीटों पर सिमटी हुई है। राजनीतिक दृष्टिकोण से भाजपा को सब कुछ सोच लेना चाहिए और इस टकराव से बचकर अपनी रणनीति बनानी होगी तभी उसकी बात बन सकती है।

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