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दिल्ली नगर निगम के चुनाव

दिल्ली नगर निगम के चुनावों की घोषणा के साथ ही राजधानी में राजनैतिक गतिविधियों का स्थानीय स्वरूप बहुत तीखा और तंज भरा हो सकता है क्योंकि दिल्ली की जनता को लुभाने के लिए भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी वे सब तरीके इस्तेमाल करेंगी

दिल्ली नगर निगम के चुनावों की घोषणा के साथ ही राजधानी में राजनैतिक गतिविधियों का स्थानीय स्वरूप बहुत तीखा और तंज भरा हो सकता है क्योंकि दिल्ली की जनता को लुभाने के लिए भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी वे सब तरीके इस्तेमाल करेंगी जिनका सीधा सम्बन्ध आम नागरिक की दैनिक कष्ट भरी जिन्दगी से होता है। दिल्ली नगर निगम के एकीकृत हो जाने के बाद ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण इसलिए हो गये हैं क्योंकि इसके बाद दिल्ली का केवल एक ही महापौर या मेयर होगा, जो नियम शिष्टाचार के तहत दिल्ली का प्रथम नागरिक भी होगा। महानगरों की स्थानीय निकाय प्रणाली मे महापौर की विशिष्ट महत्ता होती है। इस सन्दर्भ में दिल्ली की पुरानी परंपराएं हम देख सकते हैं। मगर इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह होगा कि राजधानी की नगर निगम में पचास प्रतिशत प्रतिनिधित्व महिलाओं का होगा। राजधानी की तीनों नगर निगमों को संयुक्त नगर निगम में परिवर्तित किये जाने के बाद कुल 272 वार्डों की संख्या घटा कर 250 कर दी गई है। यह कार्य दिल्ली राज्य चुनाव आयोग ने बहुत कुशलता के साथ सीमित समय में किया और बिना किसी राजनैतिक दल को नाराज किये अपने कार्य को अंजाम दिया। वार्डों के पुनर्निर्धारण में भी पूरी पारदर्शित बरती गई।
 कुल 250 सदस्यों में से 125 महिलाएं होंगी जिनमें 104 सामान्य वर्ग की सीटें होंगी व 21 अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए होंगी। वैसे सामान्य सीटों पर भी अनुसूचित वर्ग की महिलाएं खड़ी हो सकती हैं। आयोग ने 250 में से 42 स्थान अनुसूचित जाति के लोगों के लिए आरक्षित किये हैं और इनमें से 21 स्थान महिलाओं के लिए हैं, जबकि शेष 208 में 104 स्थान महिला प्रत्याशियों के लिए रखे गये हैं। अतः यह जरूरी नहीं है कि दिल्ली का महापौर कोई पुरुष ही बने, वह महिला भी हो सकती है। पूर्व में तीन निगमों में विभक्त निकायों में भी ऐसा हो चुका है। दिल्ली नगर निगम बजट की दृष्टि से वृहन्मुम्बई महापालिका के बाद सबसे बड़ी स्थानीय निकाय है जिसके ऊपर नागरिकों को मूल सुविधाएं प्रदान करने की जिम्मेदारी होती है। सामान्य साफ-सफाई के काम से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने के काम से नगर निगम बंधी हुई है। 
नगर निगम के स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर हायर सेकेंडरी स्तर तक की शिक्षा प्रदान की जाती है और इन स्कूलों की संख्या हजार के आसपास है। गरीब नागरिकों के साथ नगर निगम का हाथ हमेशा दिखाई पड़े, यही किसी नगर निगम की सफलता का पैमाना होता है। दिल्ली नगर निगम तीन निगमों में विभक्त होने से पहले यह काम काफी सफलतापूर्वक करती थी। नगर निगम की भूमिका नागरिक के जन्म से लेकर मरण तक के सफर में बहुत महत्वपूर्ण होती है। जन्म व मरण का पंजीकरण इसके ही हाथ में होता है। एक जमाना था जब दिल्ली में उपभोक्ता सामग्री के उत्पादन व वितरण में भी इसका ठोस योगदान हुआ करता था। परन्तु हमें ध्यान रखना होगा कि दिल्ली के सीमित क्षेत्रफल में इसकी आबादी अब तीन करोड़ को छू रही है जिससे आवास की किल्लत लगातार बद से बदतर होती जा रही है। इसके साथ आजकल राजधानी में वायु प्रदूषण का जो शोर मच रहा है, उसका भी इसकी आबादी और ऊंची अट्टालिकाओं अर्थात बहुमंजिला फ्लैटों की बढ़ती संख्या से सीधा लेना-देना है। जमीन पर विस्तार करने की दिल्ली संभावनाएं 1980 में ही समाप्त हो गई थीं। इसके बाद जो भी विस्तार हुआ है, वह प्रायः आकाश की ऊंचाई की तरफ बहुमंजिला इमारतें खड़ा करके ही हुआ है। इस विस्तार की जिम्मेदारी भी नगर निगम पर आ जाती है क्योंकि मूलभूत नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराना उसकी ही जिम्मेदारी होती है विशेष कर गरीब नागरिकों को। परन्तु आगमी 4 दिसम्बर को नगर निगम चुनाव कराये जाने के फैसले को भी राजनैतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। मगर यह चुनावी पंडितों का दिमागी खलल ज्यादा लगता है, क्योंकि कोई भी राजनैतिक दल एक से अधिक चुनाव लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहता है। 
वैसे भी यह तय था कि हिमाचल व गुजरात विधानसभा के समानान्तर ही दिल्ली नगर निगम के चुनाव कराये जा सकते हैं क्योंकि चुनाव आयोग ने वार्ड परिसीमन का कार्य पिछले महीने के शुरू में ही पूरा कर लिया था और गृह मन्त्रालय ने इसे अधिसूचित भी कर दिया था। दिल्ली नगर निगम शुरू से ही दिल्ली की धमनियों में दौड़ता रक्त रही है। इस पर कांग्रेस पार्टी का एक जमाने में एक छत्र राज हुआ करता था, मगर 1967 से जनसंघ ने कब्जा जमाना शुरू किया और बाद में अधिक समय तक भाजपा का ही इस पर कब्जा रहा। अब आम आदमी पार्टी भी मैदान में है जिसकी दिल्ली में सरकार है, अतः चुनावी लड़ाई का त्रिकोणात्मक होना बहुत स्वाभाविक है। इस तीन तरफा लड़ाई में किसकी लाटरी खुलती है, यह तो केवल दिल्ली नागरिक ही जान सकते हैं। निगम के चुनावों में लगभग डेढ़ करोड़ मतदाता अपने मत का प्रयोग करेंगे जो भारत के कई राज्यों के मतदाताओं की संख्या से ज्यादा हैं। अतः लोकतन्त्र का जश्न तो दिल्ली में मनना स्वाभाविक है। 7 दिसम्बर को चुनाव परिणाम और 4 दिसम्बर को एकल चरण मे मतदान रंग-बिरंगा स्वरूप देगा। 

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