इसमें कोई शक नहीं कि आज खानपान को लेकर दिल्ली और एनसीआर में अनेकों कंपनियों ने फूड सप्लाई की चैन बनाकर रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध कराये हैं। गलियों, मौहल्लों या कॉलोनियों में अकसर कई खाने की कंपनियों के डिलीवरी ब्वाय समय पर फूड अपने ग्राहकों को पहुंचाने के लिए काफी तेजी और चुस्ती दिखाते हैं। अपने काम में चुस्ती दिखानी भी चाहिए लेकिन दूसरों की भूख शांत करने वाले डिलीवरी ब्वाय अपने परिवार का पेट भरने के लिए कई बार ड्यूटी के दौरान जब सड़क हादसों का शिकार हो जाते हैं तो बहुत दु:ख होता है। दो दिन पहले गुरुग्राम में चार डिलीवरी ब्वाय को एक तेज रफ्तार कार ने इतनी तेजी से टक्कर मानी की चारों की मौत हो गई। हादसा गुरुग्राम के पॉश ऐरिया गोल्फ कोर्ट में हुआ था। ड्राइवर को पकड़ भी लिया गया लेकिन चारों डिलीवरी ब्वाय काल का ग्रास बन गये। एक-एक ग्रास लोगों तक सुरक्षित पहुंचाने वाले डिलीवरी ब्वाय की मौत से एक नया सवाल खड़ा हो गया है और तेज रफ्तार से गाड़ियां भगाने वालों के लिए क्या व्यवस्था है? इस सवाल का जवाब किससे लें?
यह सच है कि आज के जीवन में डिलीवरी ब्वाय के जीवन में समय पर फूड पहुंचाने को लेकर काफी दबाव और तनाव रहता है। कई कंपनियों ने महज आधे घंटे में ग्राहकों का भोजन उनके घर तक पहुंचाने की होड़ में बड़ी सुविधाएं और शर्तें भी रखी हुई हैं। इस तरह के विज्ञापन हम अकसर टीवी पर देख सकते हैं। जहां सैकंड भर के विज्ञापन में पंद्रह मिनट से आधे घंटे के बीच फूड या अन्य सामान पहुंचाने की गारंटी यदि ऐसा न हुआ तो पैनल्टी की बातें की जाती हैं। अगर इस एक्सीडेंट को स्ट्रेस से अलग भी कर दिया जाये और दुर्घटना का केस मान लिया जाये परंतु तो भी डिलीवरी ब्वाय की जान तो चली ही गई। यह एक जान का मामला नहीं चार जानें गई हैं यानि के चार परिवारों का मामला है। कहने का मतलब यह है कि जीवन में फूड सप्लाई करने वाले डिलीवरी ब्वाय का जीवन हमेशा स्ट्रेस में रहता है। उस दिन एनसीआर में डिलीवरी ब्वाय के जीवन पर एक रिपोर्ट सामने आईं थी जिसमें लिखा था कि दिल्ली एनसीआर में हर पांचवें हादसे में एक डिलीवरी ब्वाय दुर्घटना का शिकार होता है। कहीं न कहीं कंपीटीशन जुड़ा है जो जीवन में कदम-कदम पर जोखिम खड़े करता है। पेट भरने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। बहुत लोकोक्तियां और मुहावरे पेट की भूख को लेकर कहे भी गये। उदाहरण के तौर पर
खाली पेट न भजन गोपाला।
अर्थात यदि आपने भोजन नहीं किया हुआ तो गोपाल जी का भजन भी नहीं हो सकता। इसी तरह पेट की भूख शांत करने के लिए पंजाबी में कहा गया है
पेट न पाईयां रोटियां, सारी गल्लां खोटियां
अर्थात अगर हमने अपने पेट की भूख को रोटियों से शांत नहीं किया तो फिर सबकुछ बेकार है। लेकिन भोजन लोगों तक पहुंचाने के लिए डिलीवरी ब्वाय स्ट्रेस में रहते हैं। इसे कम कैसे किया जाये यह एक बड़ी बात है। कई बार तो डिलीवरी ब्वाय को कितने ही भारी ट्रेफिक के बीच जोखिम से बाईक या स्कूटी चलाते हुए देखा जा सकता है। अब डिलीवरी करने वालों में लड़कियां भी शामिल हैं। स्ट्रेस तो है लेकिन उनकी अपनी सुरक्षा कैसे हो? हादसों पर हर सूरत में नियंत्रण होना ही चाहिए। गुरुग्राम वाले केस में भी बाईक सवार चार डिलीवरी ब्वाय रोड के किनारे तेज रफ्तार से आ रही कार से कुचल कर मारे गए थे। अब इस मामले में कोई कुछ भी कहे जिन परिवार के ये चार लोग गए हैं उनके लिए हमारी सहानुभूति है और प्रभु से प्रार्थना है कि उनके परिजनों को शक्ति प्रदान करें कि वे इस सदमें को सहन करें और उनकी आत्मा भी शांत हो।
फूड सप्लाई चैन के काम में मैकिंग से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक हर तरफ टेंशन है। कंपनियों की बड़ी-बड़ी स्कीम और समय पर काम करने के मामले ने डिलीवरी ब्वाय के लिए बहुत चुनौतियां खड़ी कर दी हंै। आज का पढ़ा-लिखा यूथ फूड सप्लाई की इस लाईन में एक चमकदार करियर तो देखता है लेकिन सड़कों पर जान हथेली पर रखकर समय पर फूड घर पहुंचाने की टेंशन एक सबसे बड़ा चैलेंज है। इस बारे में कंपनियों को यह स्ट्रेस खत्म करने के लिए ही कुछ सोचना होगा। हादसे के शिकार हुए लोगों को उचित मुआवजा देना या पारिश्रमिक देना कंपनियों का दायित्व होना चाहिए। भगवान से दुआ है कि इस प्रकार के हादसों में किसी की भी जान नहीं जानी चाहिए।