चीन के जाल में फंस चुके नेपाल के लोग इतने परेशान हो गए हैं कि उन्होंने फिर से राजशाही लागू करने की मांग उठानी शुरू कर दी है। नेपाल की जनता प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की चीन परस्त नीतियों से इतना तंग आ चुकी है कि वह सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने लगी है। राजशाही के समर्थन में लोग फिर से एकजुट होने लगे हैं। नेपाल कभी हिन्दू राष्ट्र था और वहां के राजा को देवताओं की तरह पूजा जाता था लेकिन बंदूक से निकली क्रांति ने उसे लोकतांत्रिक देश में बदल दिया। उसके बाद भी उथल-पुथल मची रही तथा संविधान लागू किए जाने के बाद भी तनाव बरकरार रहा। जब से केपी शर्मा प्रधानमंत्री बने हैं तब से उन्होंने नेपाल को चीन की गोद में बैठा दिया है। नेपाल की नीतियों में चीन का प्रभाव साफ तौर पर नजर आने लगा है। चीन ने नेपाल की जमीन भी हथियानी शुरू कर दी है लेकिन केपी शर्मा ओली खामोश हैं। ओली की खामोशी को लेकर अब उनकी पार्टी के साथ-साथ देशभर में सवाल उठ रहे हैं। सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी भी दो भागों में विभाजित हो चुकी है। एक गुट का नेतृत्व प्रधानमंत्री ओली कर रहे हैं जबकि दूसरे गुट का नेतृत्व पुष्प कमल दहल प्रचंड कर रहे हैं।
नेपाल में 28 मई 2008 को राजशाही पूर्ण रूप से खत्म हो गई थी। 2017 में हुई चुनाव में तत्कालीन सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन (माओवादी दलों) के कम्युनिस्ट गठबंधन को जनादेश मिला। हालांकि बाद में इन सभी दलों ने मिलकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई, जो वर्तमान में देश पर शासन कर रही है। केपी शर्मा ओली ने फरवरी 2018 में दूसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री का पद संभाला। शुरूआत में तो सब कुछ ठीक-ठाक चला लेकिन वह चीन के करीब होते गए। चीन की महिला राजदूत होउ यानकी का सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप बढ़ गया। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अन्दर असंतोष बढ़ने पर भी होउ यानकी केपी शर्मा ओली की सत्ता को बचाने के लिए सभी सीमाएं तोड़ कर हस्तक्षेप कर रही हैं।
केपी शर्मा ओली ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भारत विरोधी रुख अपना लिया। उन्होंने तो भगवान श्रीराम का जन्म नेपाल में होने का दावा किया। उन्होंने भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया था जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ का हिस्सा हैं। जून में नेपाल की संसद ने देश के नए मानचित्र को मंजूरी दी। जब भारत की खुफिया एजैंसी रॉ के प्रमुख सामंत कुमार गोयल के साथ ओली की मुलाकात हुई तो उसके बाद संशोधित मानचित्र को हटा दिया गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को उत्तराखंड में लिपुलेख और धारचूला को जोड़ने वाले 80 किलोमीटर लम्बे रणनीतिक रूप से अहम मार्ग का उद्घाटन किया था तब से ही दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो गया था। नेपाल ने जब मानचित्र जारी कर लिपुलेख, कालापानी एवं लिम्पियाधुरा को अपनी सीमा के भीतर बताया था तब भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और इसे एकतरफा कृत्य करार दिया था। भारत ने उसके क्षेत्रीय दावे काे कृत्रिम विस्तार करार दिया था। तनाव के बीच भारतीय सेना के प्रमुख एम.एम. नरवणे ने नेपाल की यात्रा की थी। जिसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के बाद तनावपूर्ण हुए आपसी संबंधों में पुनः सामंजस्य स्थापित करना रहा।
इस यात्रा के दौरान जनरल नरवणे को वर्षों पुरानी परम्परा के तहत नेपाली राष्ट्रपति ने नेपाली सेना के जनरल की मानद उपाधि भी प्रदान की। भारत-नेपाल संबंधों को पटरी पर लाने के लिए अजित डोभाल भी सक्रिय रहे। इसके बाद चीन के रक्षा मंत्री ने नेपाल और पाकिस्तान का दौरा किया था जिसमें बड़े रक्षा समझौतों को मंजूरी दी गई। पाकिस्तान और नेपाल से समझौतों की आड़ में चीन भारत पर निशाना साधना चाहता है। चीन ने नेपाल की 150 हैक्टेयर से अधिक जमीन हड़प ली है। नेपाल के राजनेताओं का कहना है कि चीन ने नेपाल के पूर्ववर्ती डूब क्षेत्र पर दावे के लिए एक नदी के बहाव की दिशा को भी बदला है। नेपाल सरकार ने चुप्पी साध रखी है और लोगों में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है। ओली के चीन प्रेम और पार्टी में बढ़ती कलह का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। कोरोना वायरस ने नेपाल की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। ऐसे में लोगों के सामने रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है। इसके अलावा सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार की जड़ें भी मजबूत होती जा रही हैं। यही कारण है कि देश में राजशाही के समर्थन में आवाज उठने लगी है। राजशाही समर्थकों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियां आयोजित करने के बाद काठमांडू में विरोध प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय शक्ति ने नेपाल के मौजूदा संविधान को फाड़ने की धमकी देते हुए कहा है कि देश में शांतिपूर्ण तरीके से हिन्दू किंगडम बहाल किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय शक्ति नेपाल के तीन प्रमुख एजैंडे हैंः संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना, नेपाल को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में बहाल करना और संघवाद को खत्म करना, क्योंकि यह लोगों को विभाजित करता है और राष्ट्र को खतरे में डालता है। नेपाल की जनता महसूस कर रही है कि चीन के चलते देश संकट में है और नेता देश को लूट रहे हैं। यह भी निश्चित है कि एक न एक दिन ओली को सत्ता छोड़नी ही पड़ेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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