आज जब आपके हाथ में रविवार का अखबार है तो ठीक 24 घंटे बाद लोकसभा के सबसे बड़े महायुद्ध का चौथा चरण यानी कि 71 और सीटों पर मतदान हो जायेगा। अगर पिछले तीन चरणों का आकलन हम लगायें तो जनता 300 से ज्यादा सीटों पर इस वक्त सैकड़ों दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य ईवीएम में बंद कर चुकी है। बात देखने और सोचने वाली यही है कि राजनीतिक मुद्दे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किस ढंग से उछले। आज के समय में राजनीति जैसे संवेदनशील विषय में आम आदमी की भूमिका क्या रह गयी है? यह एक बहुत बड़ा सवाल है। परिणाम क्या होगा क्या नहीं इस बारे में अगर हम टिप्पणी करते हैं तो यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन होगा और हम ऐसा नहीं करेंगे लेकिन यह सच है कि पूरी दुनिया की निगाहें भारतीय लोकतंत्र के चुनाव परिणामों पर लगी हुई है।
सबसे अहम है पाकिस्तान जो कि आतंक का सबसे बड़ा प्रमोटर है। दरअसल सर्जिकल स्ट्राइक एक ऐसा मामला है जिसके बारे में प्रतिकूल टिप्पणी देशवासी नहीं चाहते। सब जानते हैं कि पाकिस्तान ने भारत में आतंक का घिनौना खेल जब चाहे जहां चाहे खेला है, इसमें भी कोई शक नहीं कि पिछली सरकारों और वर्तमान सरकार के शासन के दौरान देश में बॉर्डर से लेकर अंदरूनी हिस्सों तक आतंकी हमले हुए हैं। आम नागरिकों से लेकर सेना के जवानों तक ने अपनी शहादत दी है लोग भाजपा के पलटवार की नीति तथा विदेशी नीति से संतुष्ट होकर भाजपा पर भरोसा ला रहे हैं।
लेकिन फिर भी कश्मीर घाटी में पाकिस्तान की शह पर आतंक का नंगा खेल खेला जाता रहा है और जब इसका हल राजनीतिक तौर पर निकालने की कोशिश हुई तो इस मामले की निंदा की जाती है। वहां की मुख्यमंत्री रही महबूबा हो या भाजपा की शह पर उसे पावर मिली हो या उसकी पावर खत्म करने की प्रक्रिया हुई हो परंतु यह तो सच है कि वहां भी लोकतंत्र तो है, पंचायत चुनावों से लेकर लोकसभा चुनावों तक अगर श्रीनगर के अनेक भागों में महज 12 प्रतिशत तक का मतदान हुआ हो तो फिर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।
कहने का मतलब यह है कि 1952 से लेकर आज तक जितने चुनाव हुए हैं अगर वोटिंग शत- प्रतिशत में नहीं बदलता तो इसका मतलब यह है कि लोग अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग नहीं कर रहे। पूरे देश की 543 सीटों पर अगर शत-प्रतिशत वोटिंग हो तब हम छाती ठोक कर कह सकते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हैं। हम फिर से उन मुद्दों की बात करना चाहते हैं जो हमें देश के सामने एक उदाहरण के रूप में रखने हैं। किसानों की समस्याएं हों या बिजली-पानी या अन्य विकास के मुद्दे, हर मामले में आम आदमी को लाभ मिलना चाहिए। जब आम आदमी महसूस करे कि उसे लाभ मिल रहा है, वह सुरक्षित है तो इसे विकास की कड़ी से जोड़ा जा सकता है। इस बात का जवाब सोशल साइट्स और सोशल मीडिया बड़े अच्छे तरीके से दे रहे हैं परंतु यह भी तो सच है कि विपक्ष भी स्वस्थ राजनीति नहीं कर रहा।
इसीलिए इस लोकतंत्र में जब वोट तंत्र स्थापित होता है तो आम जनता थोड़ी नाराज दिखाई देती है। सातों चरणों में जब वोटिंग समाप्त होगी तो यह बमुश्किल 62 प्रतिशत तक ठहरेगी क्योंकि तीन चरणों में यह 60 प्रतिशत रही है। अब देखने वाली बात यह है कि हमारे देश में जो हिसाब-किताब शासन का रहा है तो स्वाभाविक है सरकार नोटबंदी को एक सफल प्रयोग, जीएसटी को एक कारगर उपाय और सर्जिकल स्ट्राइक को दुश्मन पर वार करने की बात कहकर सफल विदेश नीति की बात करेगी और वहीं विपक्ष राफेल डील को लेकर सरकार पर हमला करेगा। आतंकवाद एक बड़ा मुद्दा है, किसान एक अलग मामला है इसीलिए प्र्रमुख राजनीतिक दलों ने इसे अपने चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल भी किया है।
सच यह है कि बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रहा है, यूथ इसका जवाब मांगता रहा है। किसानों की समस्याओं को लेकर भी और आम आदमी खासतौर पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं। पहली बार इस चुनावी मौसम में सरकार की उपलब्धियों के दावों के बीच विपक्ष हमले कर रहा है। सरकारी मशीनरी के उपयोग और दुरुपयोग के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच महिलाओं के प्रति भद्दे बयान राजनेताओं ने ही हमें दिये हैं।
कहने वाले ने ठीक कहा है कि राजनीति और मोहब्बत में सब जायज है लेकिन पावर हासिल करने के लिए सब कुछ जायज नहीं होना चाहिए। जमीनी मुद्दों को लेकर देशवासी सोशल मीडिया पर जो कुछ शेयर कर रहे हैं उसमें वे अपनी सरकार से उम्मीदें भी रख रहे हैं। सरकार ने उन्हें बहुत कुछ नहीं दिया, वे इसको लेकर भी उदास हैं पर फिर भी लोकतंत्र में बड़े-बड़े वादे करने वाले लोग 23 तारीख को जनता के सामने अपनी राजनीतिक पावर का दमखम परख लेंगे। जो भी परिणाम हो इसे स्वीकार करना ही पड़ेगा लेकिन सोशल मीडिया की एक टिप्पणी मुझे बहुत अच्छी लगी जिसमें यह कहा गया है कि आज के लोकतंत्र में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दौर अब शक्ति प्रदर्शन का महत्व बढ़ गया है।