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अमेरिकी चुनावों में देसी टच

कोरोना महामारी के दौर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के ​लिए मतदान कल होगा। राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में अमेरिका के हितों की रक्षा करने के मुद्दे भी महत्वपूर्ण हो चुके हैं।

कोरोना महामारी के दौर में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के ​लिए मतदान कल होगा। राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में अमेरिका के हितों की रक्षा करने के मुद्दे भी महत्वपूर्ण हो चुके हैं। अमेरिका में इस बार का चुनाव अब तक के इतिहास में सबसे खर्चीला साबित होने जा रहा है। इन चुनावों में 12 लाख भारतीय अमेरिकी मतदाताओं का महत्व काफी बढ़ चुका है। डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन भारतवंशियों के वोट हासिल करने के लिए पूरा दम-खम लगा रहे हैं।  डोनाल्ड ट्रंप ने निक्की हेली को चुनाव प्रचार में उतार भारतीय अमेरिकियों को लुभाने की कोशिश की तो बाइडेन ने भारतीय मूल की कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भारतवंशियों को लुभाने की कोशिश की है।
अब यह सवाल भारत के लिए अहम है कि यदि अमेरिका में भारतीय इतने ही महत्वपूर्ण हैं तो फिर इस बार ट्रंप और  बाइडेन में से कौन ज्यादा भारत और भारतीयों के लिए फायदेमंद हो सकता है। इस बार के चुनाव को पूरी तरह देशी टच दे दिया गया। चुनाव प्रचार के दौरान सुपर हिट भारतीय फिल्म शोले के डॉयलाग, बिग बॉस के मीम्स और भारतीय मैचमेकिंग फेम सीमा आंटी के नामों का इस्तेमाल किया जा रहा है। शोले के पात्र मौसी और जय के डॉयलागों की तर्ज पर संवाद गूंज रहे हैं। अंत में मौसी कहती है कि ठीक है बेटा मैं  बाइडेन  को वोट देकर आती हूं। रेडियो और टेलीविजन के विज्ञापनों में पंजाबी का खुलकर इस्तेमाल किया जा रहा है। भारतीय अमेरिकियों का कहना है कि पिछले 30 वर्षों के दौरान पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया। बेटियों की सुरक्षा का मुद्दा भी उछाला जा रहा है। एशियाई मूल के लोगों से वोट देने की अपीलें उर्दू, हिन्दी, पंजाबी और बंगाली भाषा में की जा रही हैं। डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों ही पार्टियां महिलाओं के वोट हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। राष्ट्रपति चुनावों के बीच ही अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री दिल्ली आकर टू प्लस टू वार्ता करके और भारत के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करके भी जा चुके हैं। यह दौरा भी ट्रंप की चुनावी रणनीति का हिस्सा रहा। ट्रंप खुद की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नजदीकियों का हवाला देकर हिन्दू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि बाइडेन खेमे ने अमरीकंस फार  बाइडेन  नाम का कैंपेन चलाया। ​उन्होंने  हिन्दुओं के खिलाफ होने वाले हेट क्राइम्स को रोकने का वादा किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में वैसे तो दुनिया भर की दिलचस्पी हमेशा ही रहती है लेकिन इस बार पैनी नजर कुछ ज्यादा ही है।
 बाइडेन  ने कोरोना महामारी से निपटने में असफल रहने के मुद्दे पर ट्रंप को जमकर घेरा लेकिन ट्रंप कोरोना वायरस के इलाज और वैक्सीन विकसित करने को अपनी प्राथमिकता बता रहे हैं। ट्रंप जलवायु परिवर्तन को लेकर हमेशा से संदेह प्रकट करते रहे हैं। ट्रंप पैरिस समझौते को भेदभावपूर्ण मानते हुए उससे अलग हुए थे जबकि बाइडेन का कहना है कि अगर वे जीतते हैं तो पैरिस समझौते में शामिल हो जाएंगे। ट्रंप ने दस महीनों में एक करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने का वा​दा किया है, साथ ही दस लाख नए छोटे उद्योगों को स्थापित करने का आश्वासन दिया है। कोरोना से बेहाल अमेरिका में बेरोजगारी के सभी रिकार्ड टूट गए हैं। इसके अलावा न्यूनतम मजदूरी बढ़ाना, स्वास्थ्य व्यवस्था, विदेश नीति से जुड़े मुद्दे भी काफी महत्वपूर्ण हैं। नस्लभेद और बंदूक संस्कृति पर तो पहले ही काफी चर्चा की जा चुकी है।
अमेरिकी चुनाव ऐसे दौर में हो रहे हैं जब दुनिया की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से तबाह हो चुकी है। चीन और अमेरिका के बीच तनाव चल रहा है। अमेरिका और तुर्की  के बीच भी तनाव चल रहा है। ईरान से लगातार तनातनी बढ़ी है। भारत और चीन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा और अमेरिका चीन के साथ दुश्मनी के बीच भारत को एक दोस्त के रूप में देखता है। अमेरिकी राष्ट्रपति सिर्फ अपने देश का नेता ही नहीं होतेे बल्कि वह धरती का सबसे ताकतवर इंसान होता है। जिसके इशारे पर सारे समीकरण बदल जाते हैं। ट्रंप ने परम्पराओं को छोड़कर कुछ नया भी किया है। उन्होंने सीरिया, अफगानिस्तान, इराक में अमेरिकी सेनाओं की मौजूदगी कम की है। उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के इस्राइल के साथ रिश्ते बहाल करने के समझौते करने को एक नए मध्य पूर्व का सवेरा करार दिया। ये समझौते अमरीकी मदद से ही संभव हुए और ट्रंप शासन की सबसे बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि बने। ट्रंप का यह कहना कि महान राष्ट्र अंतहीन युद्ध नहीं लड़ा करते, पूरी दुनिया को अच्छा लगा। भारतीयों को ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति चाहिए जो उनकी नौकरियों के लिए खतरा न बने। एच-वन बी वीजा खत्म हो ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो। देखना होगा कि भारतीय मूल के अमेरिकी किसके पक्ष में ज्यादा वोट देते हैं। वैश्विक राजनीति और कूटनीति में अमेरिकी की हैसियत का सबको पता है। यह भी सच है कि कई बार अमेरिका बिना जरूरत के भी अन्य देशों के मामलों में मदद के नाम पर दखल देने की कोशिश करता है तो उसे नजरंदाज कर पाना मुश्किल होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिकी समाज अपने विवेक से फैसला करेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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