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यूपी में विकास परियोजनाएं

उत्तर प्रदेश में विकास के दृष्टिगत जिस प्रकार विभिन्न सड़क परियोजनाओं का जाल बुना जा रहा है उसका खुले दिल से स्वागत किया जाना चाहिए परन्तु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये परियोजनाएं समय पर पूरी हों जिससे इनकी लागत न बढ़ सके।

उत्तर प्रदेश में विकास के दृष्टिगत जिस प्रकार विभिन्न सड़क परियोजनाओं का जाल बुना जा रहा है उसका खुले दिल से स्वागत किया जाना चाहिए परन्तु यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ये परियोजनाएं समय पर पूरी हों जिससे इनकी लागत न बढ़ सके। प्रधानमन्त्री ने शनिवार को गंगा एक्सप्रेस-वे की जिस परियोजना का उद्घाटन शाहजहांपुर के पास ‘रोजा’ में किया है उससे पूरा उत्तर प्रदेश सड़क मार्ग से जुड़ेगा और इस परियोजना पर 36 हजार करोड़ रुपए से अधिक का धन खर्च होगा। इससे पहले जिस पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन बनी हुई सड़क पर वायुसेना के विमान उतार कर किया गया था उससे यह तो साबित हो गया था कि सड़कों का निर्माण वै​श्विक स्तर की गुणवत्ता के साथ हुआ है। बेशक इसका श्रेय राज्य के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ को दिया जा सकता है जिनके कार्यकाल में यह निर्माण कार्य हुआ। इसके साथ ही भू-तल परिवहन मन्त्री श्री नितिन गडकरी की भूमिका की भी सराहना करनी पड़ेगी जिन्होंने उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्य में राजमार्गों का जाल बिछा कर इसके चहुंमुखी विकास की आधार भूमि तैयार की है। वास्तव में विकास का कार्य कोई भी राज्य या केन्द्र सरकार अकेले नहीं कर सकती है। इसके लि​ए दोनों सरकारों में सांमजस्य का होना जरूरी होता है।
 हमारे संविधान में राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार के अधिकार इस प्रकार बंटे हुए हैं कि वे विकास के कामों में एक-दूसरे के अनुपूरक बन कर काम करें जिसका लाभ आम जनता को जल्दी से जल्दी पहुंचे। इस काम में दलगत राजनीति की कोई जगह नहीं होती क्योंकि भारत की बहुदलीय राजनीतिक प्रशासनिक प्रणाली में जरूरी नहीं है कि जिस दल की सरकार केन्द्र में हो उसी की राज्य में भी हो। यह व्यवस्था हमारे लोकतन्त्र की खूबसूरती है कोई कमी नहीं क्योंकि राज्य सरकारों का गठन विशुद्ध रूप से प्रादेशिक अपेक्षाओं पर होता है। अतः बात घूम- फिर कर राजनीतिक इच्छा शक्ति पर आ जाती है। ऐसा  भी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद से कोई विकास ही नहीं हुआ है मगर यह भी हकीकत है कि पिछले तीस वर्षों से इस राज्य में जिस तरह की राजनीति चल रही है उसमें विकास के स्थान पर राजनीतिक छीना-झपटी ज्यादा होती रही। जिस प्रकार इस राज्य की विकास योजनाएं लम्बित होती रहीं उससे इनका खर्चा बेतहाशा बढ़ता रहा। मगर यह मानना पड़ेगा कि जिस प्रकार से पिछले पांच वर्षों से उत्तर प्रदेश में सड़कों का जाल बुना गया है उसकी कल्पना पहले नहीं की जा सकती थी। इस राज्य के प्रत्येक अंचल में शानदार सड़कें बता रही हैं कि विकास की अन्य परियोजनाएं भी इसके दोनों ओर एक न एक दिन अवश्य लगेंगी। 
एेसा भी नहीं है कि यह परिकल्पना केवल भाजपा की सरकार ने ही की हो। इसकी परिकल्पना पहले भी की गई है और कांग्रेस की सराकरों के दौरान की गई है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान स्वयं श्री राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में कहते थे कि रेलवे लाइन और राजमार्गों के दोनों ओर लघु व मध्यम उद्योगों का जाल खड़ा किया जाना चाहिए जिससे आसपास के सभी क्षेत्रों का विकास हो सके परन्तु प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में आकर सबसे पहले यह काम किया कि उन्होंने रुकी हुई या लम्बित परियोजनाओं का जायजा लिया और उन पर तेजी से काम करने की रूपरेखा बनाई और उन्हें कार्यान्वित भी किया।  यदि हम गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना को ही लें तो इसके पूरा होने पर उत्तर प्रदेश में इसकी कुल लागत का कम से कम दस गुना निवेश अगले पांच वर्षो में आना चाहिए। इसका उदाहरण ताज एक्सप्रेस-वे है जो नोएडा काे आगरा से जोड़ता है। इस एक्सप्रेस-वे की वजह से नोएडा निवेश का प्रमुख स्थल बन चुका है। हालांकि इसके निर्माण में बार-बार लागत खर्च भी बढ़ाया जाता रहा। विकास को हमें दल गत हितों से ऊपर उठ कर देखना चाहिए क्योंकि लोकतन्त्र में प्रत्येक राजनीतिक दल का लक्ष्य जनता के हितों को ही साधना होता है। 
कल्पना कीजिये यदि 1969-70 के करीब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री स्व. चन्द्रभानु गुप्ता दिल्ली के निकट ‘नोएडा’ बसाने का सपना न संजोते तो आज यह स्थान दिल्ली के निकट किस प्रकार तरक्की करते हुए उत्तर प्रदेश का सिरमौर बनता। स्व. गुप्ता मूल रूप से नोएडा को मुम्बई की तरह ही फिल्म नगरी में विकसित करना चाहते थे और उस समय उन्होंने इसका नाम ‘सूर्य नगर’  रख कर इसका उद्घाटन प्रख्यात सिने अभिनेता स्व. सुनील दत्त से कराया था। नोएडा नाम बाद में स्व. नारायण दत्त तिवारी ने अपने मुख्यमन्त्री काल में दिया। अतः विकास के लिए दूरदृष्टि होना बहुत आवश्यक होता है। इस पर यदि इस प्रकार की राजनीति की जाती है कि किस परियोजना की आधारशिला किस पार्टी की सरकार के दौरान रखी गई तो उससे जन हित की नहीं बल्कि पार्टी हित की बू आती है। राजनीतिज्ञों से इससे बचना चाहिए और विकास परियोजनाओं का खुले दिल से स्वागत करना चाहिए क्योंकि इनमें पैसा तो आम आदमी का ही लगता है और वह अपनी समझ से जब चाहे जिस पार्टी को सत्ता सौंपता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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