भारत को बेशक इस बात से ज्यादा मतलब नहीं हो सकता कि अमेरिका चीन के बारे में क्या कहता है बल्कि उसेे इस बात से लेना-देना है कि चीन का रुख भारत को लेकर क्या है क्योंकि हमारे चीन व अमेरिका दोनों के बारे में ही खट्टे-मीठे अनुभव हैं। यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान के खिलाफ भारत के हुए चार युद्धों में अमेरिका का वजन पाकिस्तान की तरफ ही रहा था और चीन तो आज भी भारत की कुछ धरती लद्दाख में हड़पे बैठा है और अरुणाचल प्रदेश को अपना इलाका बता रहा है। अतः प्रधानमन्त्री मोदी यदि यह तुरुप का पत्ता चल देते हैं कि आगामी गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी को वह 'क्वाड' देशों के राष्ट्राध्यक्षों को राजकीय मेहमान के रूप में नई दिल्ली में आमन्त्रित करेंगे तो इससे चीन की वे कलाबाजियां और सीनाजोरियां बन्द होंगी जो वह अख्सर करता रहता है। क्वाड में भारत, आस्ट्रेलिया, जापान व अमेरिका शामिल हैं। भारत लगातार यह मांग करता रहा है कि हिन्द महासागर क्षेत्र शान्ति क्षेत्र घोषित होना चाहिए मगर चीन लगातार इसमें अपने जंगी जहाज उतार कर दादागिरी दिखाता रहा है और जवाब में अमेरिका भी अपने बेड़े तैनात करता रहा है जिससे दुनिया के कारोबर का यह प्रमुख जलमार्ग खतरों से भरता जा रहा है। भारत की भूमिका इस सन्दर्भ में बहुत महत्वपूर्ण हो गई है मगर हमें अमेरिका की भी चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना है और रूस के साथ अपने रिश्ते निभाने हैं साथ ही चीन का मिजाज ठंडा करना है।