सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2018 की चुनावी बांड स्कीम को गैर कानूनी करार दिये जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा है कि इस योजना का लाभ देश के लगभग सभी बड़े राजनैतिक दलों ने उठाया औऱ चुनावी चन्दा विवादास्पद कम्पनियों से लिया? बेशक कुल चुनावी चन्दे का सबसे बड़ा भाग सत्ताधारी भाजपा के खाते में गया परन्तु अन्य राजनैतिक दलों ने भी चन्दा लेने से गुरेज नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस स्कीम को असंवैधानिक घोषित करने के बाद यह आदेश भी दिया था कि चुनावी बांड जारी करने वाले स्टेट बैंक को सभी बांड प्राप्तकर्ताओं तथा उन्हें खरीदने वालों की सूची भी जारी करनी चाहिए। काफी हील- हुज्जत के बाद और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कड़ा रुख अपनाये जाने के बाद बैंक ने यह सूची भी जारी कर दी परन्तु यह जानकारी छिपा ली कि कुल बांड धनराशि में से किस कम्पनी के कितने बांड किस राजनैतिक दल को दिये गये। अब यह जानकारी भी स्टेट बैंक आगामी सोमवार तक उपलब्ध करा देगा जिसे न्यायालय के आदेशानुसार चुनाव आयोग सार्वजनिक कर देगा।
अभी तक जो जानकारी उपलब्ध हुई है उसके अनुसार 2018 में संसद में कानून बना कर लागू की गई चुनावी बांड स्कीम के तहत अप्रैल 2019 से फरवरी 2014 तक कुल 12, 156 करोड़ रुपये के बांड राजनैतिक दलों ने भुनाये जिन्हें 1300 से अधिक कम्पनियों ने स्टेट बैंक से खरीदा था। इन कम्पनियों ने ये बांड खरीद कर अपनी मनपसन्द राजनैतिक पार्टियों को दिये। इनमें सर्वाधिक आधी के लगभग 6060 करोड़ की धनराशि के बांड भारतीय जनता पार्टी के पास गये जबकि दूसरे नम्बर पर प. बंगाल की ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी रही जिसे 1609 करोड़ के बांड मिले। तीसरे नम्बर पर कांग्रेस पार्टी 1422 करोड़ के बांड पाकर रही। चौथे नम्बर पर तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (1215करोड़ रु.) व पांचवें नम्बर पर ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजू जनता दल (775 करोड़ रु.) प्राप्त कर रही। बांड खरीदने वाली 1300 कम्पनियों में सर्वाधिक बांड चुनीन्दा बीस कम्पनियों ने खरीदे । इनमें सबसे ऊपर लाटरी का कारोबार करने वाली तमिलनाडु की फ्यूचर गेमिंग व होटल सर्विसेज प्रा. लि. कम्पनी रही जिसने कुल 1368 करोड़ रुपए के बांड खरीदे। दूसरे नम्बर पर हैदराबाद की मेघा इंजीनियरिंग (966 करोड़ रु.), तीसरे नम्बर पर क्विक सप्लाई चेन (410 करोड़ रु.), चौथे नम्बर पर हल्दिया इंजीनियरिंग (377 करोड़ रु.), पांचवें नम्बर पर वेदान्ता लि. (376 करोड़ रु.), छठे नम्बर पर एस्सल माइनिंग ( 225 करोड़ रु.), सातवें वेस्टर्न यूपी पावर ( 220 करोड़ रु.), आठवें नम्बर पर भारती एयर टेल (198 करोड़ रु.), नौवें मन्बर पर केवेन्डर फूड पार्क (195 करोड़ रु.) व दसवें नम्बर पर एम.के.जे.एंटर प्राइजेस (192) करोड़ रु.) रही। इन प्रथम दस कम्पनियों में से अधिसंख्य के खिलाफ आरोप लग रहा है कि इन्होंने प्रवर्तन निदेशालय व आयकर विभाग व सीबीआई के छापों के डर की वजह से चुनावी बांड खरीद कर भाजपा व अन्य दलों को चन्दा दिया। इनमें से कुछ के बारे में जो तथ्य प्रकाश में आ रहे हैं वे बता रहे हैं कि कुछ ने तो छापा पड़ जाने के बाद चुनावी बांड खरीदे। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि एेसा इन कम्पनियों ने अपने खिलाफ दर्ज मामलों को रफा-दफा करने के लिए किया।
अब सवाल यह है कि यदि यह सच है तो इन कम्पनियों ने विपक्षी पार्टियों को चन्दा क्यों दिया क्योंकि कुल 12सौ करोड़ रु. के बांडों में से 600 करोड़ रु. के बांड विपक्षी दलों के खातों में ही गये हैं? दूसरा सवाल यह भी पैदा हो रहा है कि यदि प्रवर्तन निदेशालय या आयकर विभाग ने एेसी कम्पनियों की कुछ सम्पत्ति को अनियमतताओं के चलते जब्त किया तो उनके द्वारा दान दिया गया चुनावी चन्दा भी दागी रकम में तब्दील नहीं हो गया जिसमें सभी दलों की हिस्सेदारी है? इस प्रकार पूरे कुएं में ही भांग डाल कर एेसी कम्पनियों ने उसका पानी सभी राजनैतिक दलों को पिला दिया। अतः एक-दूसरे पर आरोप लगाने का क्या औचित्य बन सकता है। तीसरा सवाल यह भी है कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बांड स्कीम को असंवैधानिक घोषित कर दिया था तो विपक्षी दलों ने अपनी तरफ से ही चन्दा देने वाली कम्पनियों के नामों का खुलासा क्यों नहीं किया जिससे वे जनता की नजर में पाक-साफ बने रहने का उपक्रम कर सकती थीं ?
सवाल और भी बहुत बड़े-बड़े हैं। इनमें मुख्य सवाल यह है कि जब अपने बजट भाषण के दौरान चुनावी बांड स्कीम को समाहित करते हुए स्व. वित्तमन्त्री अरुण जेतली लाये थे तो तभी यह स्पष्ट था कि इसके पीछे चुनावी चन्दे को अंधेरे में रखने की रणनीति छिपी हुई है क्योंकि इसमें दानदाता के नाम का खुलासा करने का कोई प्रावधान नहीं था। उस समय संसद में विपक्षी दलों ने इसका विरोध भी किया था मगर बाद में वे खुद भी इस स्कीम में शरीक हो गये। इसी बजट भाषण में स्व. जेतली ने विदेशी कम्पनियों की परिभाषा भी बदल दी थी जिससे उनकी भारत में स्थित शाखाएं चुनावी चन्दा दे सके और इसे पिछले समय से लागू किया था। इसकी वजह एक ही थी कि कांग्रेस व भाजपा पूर्व में एेसी ही कम्पनियों से चुनावी चन्दा लेने के मामले में फंसी हुई थीं।