गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती विश्वविद्यालय या शान्ति निकेतन अनिश्चितकाल तक के लिए बन्द कर दिया गया है। यह स्वयं में आश्चर्य का विषय है कि विश्वविद्यालय ऐसे कारण की वजह से बन्द किया गया है जिसका सम्बन्ध पं. बंगाल की महान बांग्ला संस्कृति से है। इस खुले विश्वविद्यालय के परिसर में आने वाले एक मैदान में ही प्रतिवर्ष दिसम्बर महीने में ‘पौष उत्सव’ का आयोजन होता है जिसमें आसपास के गांवों व जिलों तक के लोग शामिल होते हैं और पौष मेले में इन इलाकों में रहने वाले दस्तकार, शिल्पकार व कारीगर अपनी कलात्मक कृतियों का प्रदर्शन एक अस्थायी बाजार लगा कर करते हैं। इस महोत्सव का बांग्ला संस्कृति में बहुत महत्व है। सर्दियों के मौसम में पड़ने वाले इस पर्व पर बंगाली लोग प्रकृति की रंग-बिरंगी छटा का उत्सव उसी प्रकार मनाते हैं जिस प्रकार ‘पोहला बैशाख’ पर्व पर, जो कि बांग्ला संस्कृति में ‘नव वर्ष’ होता है। पौहला बैशाख का महत्व इतना है कि बांग्लादेश में भी यह पर्व राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बंगाल के तीज-त्यौहार धर्म की सीमा से ऊपर होकर मनाये जाते हैं। मजहब का इनसे कोई खास लेना-देना नहीं होता। पौष और बैशाख उत्सव भी इसी श्रेणी में आते हैं, परन्तु शान्ति निकेतन के अधिकारियों ने एेसा फैसला किया जिससे इस विश्व विद्यालय के करीब रहने वाले लोगों में रोष फैल गया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने मैदान में दीवार खड़ी करने का फैसला किया और उसका काम भी शुरू कर दिया गया। इस पर लोगों में रोष व्याप्त हो गया और तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक श्री नरेश बावरी के नेतृत्व में इस दीवार और नये बने दरवाजे को तोड़ डाला गया। वास्तव में विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ संघर्ष करने के लिए स्थानीय लोगों ने ‘पौष मेला मठ बचाओ समिति’ का गठन किया था। इसी समिति ने दीवार स्थल पर जाकर आन्दोलन करना शुरू किया और अन्ततः श्री बावरी के नेतृत्व में उसे तोड़ डाला और बुलडोजर तक का इस्तेमाल किया। इस समिति के साथ स्थानीय व आसपास के दुकानदारों का संगठन भी है और जब से उसे पता चला कि प्रशासन मैदान की चारदीवारी या उसे बन्द करने की योजना बना रहा है, तो उसने आंदोलन करना शुरू कर दिया। ‘बोलपुर व्यवसायी समिति’ का कहना है कि प्रशासन का यह कार्य बांग्ला संस्कृति के विरुद्ध है।
वर्षों से विश्वविद्यालय के खुले परिसर के दायरे में ही पौष उत्सव मनता आ रहा है और इस पर कभी आपत्ति नहीं की गई। शान्ति निकेतन तो सांस्कृतिक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए ही गुरुदेव ने स्थापित किया था और इसी दृष्टि से इस महोत्सव में विश्वविद्यालय के छात्र व स्थानीय लोग मिल-जुल कर हिस्सा लेते हैं। ठीक एेसा ही मत राज्य की मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी का भी है। उन्होंने दीवार बनाने को बंगाल की मान्यताओं व संस्कृति के खिलाफ बताया और कहा कि यह गुरुदेव की परिकल्पना कभी नहीं रही थी, परन्तु वर्ष 2017 में एनजीटी ने विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी थी कि वह पर्यावरण के सन्तुलन का ध्यान रखे। उसके बाद प्रशासन ने विगत जुलाई महीने में फैसला किया कि उस स्थान की सीमा बांध दी जाये जहां हर वर्ष पौष उत्सव होता है। विश्वविद्यालय की अधिशासी परिषद द्वारा यह फैसला किया गया। परिषद विश्वविद्यालय की सर्वोच्च प्रशासनिक इकाई होती है।
कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती का यह कहना है कि विश्वविद्यालय पौष महोत्सव जैसे पर्व का इन्तजाम नहीं देख सकता और इसके बाद की चीजों को नहीं संभाल सकता। अतः यह अपने भूभाग का अहाता सुनिश्चित कर देगा। जब यह अहाता बनने लगा तो स्थानीय व आसपास के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया। बोलपुर व वीरभूमि जिले शान्ति निकेतन के आसपास ही पड़ते हैं और पौष उत्सव में इन जिलों के लोग व व्यवसायी व दस्तकार भाग लेने आते हैं मगर हर बात पर बीच में टांग अड़ाने में माहिर इस राज्य के राज्यपाल महामहिम जगदीप धनखड़ इस विवाद पर भी बोल पड़े और उन्होंने मुख्यमन्त्री ममता दी को सलाह दी कि वह उन लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जिनका इस मामले में दोष है। वह राजनीतिक आग्रहों से ऊपर उठ कर कार्रवाई करें। राज्यपाल का इस प्रकार दैनन्दिन के कामों में हस्तक्षेप किसी भी प्रकार उचित नहीं कहा जा सकता मगर धनखड़ साहब खड़-खड़ करने के आदी हो चुके हैं। इस पर ममता दी ने भी कह दिया कि जो कुछ भी विश्वविद्यालय में हुआ है वह बांग्ला संस्कृति के विरुद्ध है।
गुरुदेव तो शान्ति निकेतन को खुला (ओपन एयर) विश्वविद्यालय देखना चाहते थे। दीवार बनाना ही उनके विश्वविद्यालय के चरित्र के विरुद्ध है। हालांकि दीवार गिराये जाने वाले दिन पुलिस भी हरकत में नजर आयी और उसने आठ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है मगर इसके बाद विश्वविद्यालय को अगले आदेश तक बन्द कर दिया गया। पूरे पश्चिम बंगाल में शान्ति निकेतन ही एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। अतः विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले में केन्द्र सरकार के सम्बन्धित विभागों को भी सूचित कर रहा है, परन्तु मूल प्रश्न तो बांग्ला संस्कृति व परंपराओं का है। जरूरी यह है कि शान्ति निकेतन की परंपराओं का ध्यान रखते हुए इस समस्या का हल निकाला जाये और जल्दी से जल्दी विश्वविद्यालय खोला जाए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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