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जात न पूछो जोड़ों की

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हमारे यहां प्रेम करना आसान नहीं है क्योंकि भारत में आज भी समाज, रीति-रिवाज, जाति-बंधन की दीवारें खड़ी हो जाती हैं। उसी तरह हमारे यहां अंतरजातीय विवाह करना भी आसान नहीं था लेकिन अंतरजातीय शादियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। शहरीकरण के चलते अब अंतरजातीय शादियां हो रही हैं क्योंकि ज्यादा से ज्यादा युवा पुरुष और महिलाएं बंधनों से परे व्यक्तिगत पसन्द से शादी करना चाहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे राष्ट्रहित में मानते हुए मान्यता दे दी है। आज के युग में जब लोग अपनी जाति के आधार पर व्यवसाय नहीं चुनते, तो फिर जाति के आधार पर शादी भी क्यों? अंतरजातीय विवाह योजना के तहत हिन्दू समाज में व्याप्त जाति प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से अंतरजातीय विवाह करने वाली महिलाओं को प्रोत्साहन स्वरूप आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। केन्द्र और राज्य सरकारों की योजनाएं तो बरसों से लागू हैं लेकिन प्रोत्साहन योजना का लाभ बहुत कम जोड़ों को मिला। कई राज्य सरकारों ने इसके लिए रखी गई राशि का इस्तेमाल ही नहीं किया। मार्च 2014 के बाद शादी करने वाले प्रति जोड़ों को 50 हजार की राशि देने का प्रावधान था।

2015 में इसमें संशोधन करते हुए योजना का लाभ 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख कर दिया गया था। साथ ही पूर्व में रखी शर्तों में बदलाव करते हुए किसी भी दो अलग-अलग जातियों में विवाह करने वाले जोड़ों को लाभ दिया जाता है। अब मोदी सरकार ने 5 लाख रुपए की वार्षिक आय की सीमा को खत्म करते हुए दलित के साथ अंतरजातीय विवाह पर ढाई लाख रुपए की मदद करने की योजना शुरू की है। डा. अम्बेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटीग्रेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज को 2013 में शुरू किया गया था लेकिन दम्पति की आय सीमा 5 लाख रुपए तक रखी गई थी। इस योजना के तहत एक वर्ष में 500 जोड़ों को मदद देने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर योजनाएं चला रही हैं लेकिन ऐसी शादियां करने वाले जोड़े सामने नहीं आते। उनमें जागरूकता की कमी है। अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़े को पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ आवेदन प्रस्तुत करना होता है लेकिन दस्तावेज पूरे नहीं होने के कारण भी जोड़े नहीं पहुंचते। इस योजना का प्रदर्शन इसकी शुरूआत से ही खराब रहा है। 2014-15 में मुश्किल से 5 दम्पतियों को मदद दी गई। 2015-16 में 522 दम्पतियों ने आवेदन किए लेकिन केवल 72 को रकम मिली।

2016-17 में 736 आवेदनों में से केवल 45 ही स्वीकृत हुए। इस वर्ष अभी तक 409 आवेदन आ चुके हैं और केवल 74 को ही मंजूर किया गया है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने 5 लाख की आय सीमा की शर्तें हटाई हैं। वैज्ञानिकों ने भी अलग-अलग जाति के लोगों के बीच विवाह को फायदे वाला माना है। उन्होंने इसमें कई जैविक लाभ भी गिनाए हैं। अगर लड़के और लड़की दोनों एक-दूसरे को पसन्द करते हैं तो वे समझते हैं कि वे दोनों अच्छे जीवनसाथी बनेंगे तो ऐसे विवाह में कोई बुराई नहीं। अलग-अलग जाति, राज्य, भाषाओं के बीच जब विवाह सम्बन्ध बनेंगे तब ज्ञान, प्यार और लोगों में एकता बढ़ेगी। अब तो दक्षिण भारतीय युवतियों ने भी पंजाबी लड़कों से शादियां की हैं। समाज के दबाव में कई माता-पिता अपने बच्चों को अंतरजातीय विवाह नहीं करने देते। भारतीय समाज अपनी ही जाति में विवाह की विचारधारा में अभी भी जकड़ा हुआ है। ऐसा क्यों है? इसके लिए सियासतदां और सियासती दल भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। आज भी ऐसी शादी पर तनाव फैल जाता है। अप्रिय घटनाएं भी हो जाती हैं। दरअसल जाति, मजहब, समुदाय एवं भाषा के आधार पर वोट मांगकर राजनीतिक दलों ने समाज को बांटने का काम ही किया है। जातिवाद की राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञों ने समाज में जाति की बड़ी दीवारें खड़ी कर दीं। जब देश में मंडल-कमंडल की राजनीति शुरू हुई तब से लोकतंत्र में की जाने वाली राजनीति कतई सराही जाने वाली नहीं रही। हर गुजरते दिन के साथ यह तुच्छ, घिनौनी और पाश्विक होती गई, जिसमें कोई आदर्श या सिद्धांत नहीं बचा। भारत जैसे संस्कृति बहुल देश में यह सोच पाना कठिन है कि राजनीतिक दल जाति, धर्म और समुदाय से परे होकर लोगों के बीच कैसे जाएंगे।

देश में कई दल तो किसी खास धर्म के नाम पर बने हैं। जाति की दीवारें खड़ी होने का परिणाम यह निकला कि अंतरजातीय विवाह हो जाए तो मानवता पथरा जाती है। सारा समाज बीच में कूद पड़ता है। अनेक बाध्यताएं, जिनमें धर्म परिवर्तन तक भी है, अपने मुखौटे दिखा-दिखाकर चिढ़ाती है। कट्टरता, संकीर्णता और निर्दयता से सारा वातावरण कांपने लगता है। लड़की के मां-बाप की स्थिति बयान करना मुश्किल है। आरक्षण ने जातियों के नाम पर विरोध के स्वर खड़े कर दिए। जब हमारी सन्तानें ही किसी जाति के विरोध में लड़ती हैं, हिंसक हो उठती हैं तब क्या वह लड़का विरोधी जाति की लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार करेगा? जब जातियों के बीच वैमनस्य के बीज बोए जाएंगे तो क्या होगा? लोगों को सोचना होगा कि विरोधी जाति के लड़के और लड़की का विरोध कर हम अपने दामाद या बहू के प्रति उत्तरदायित्व के बोध का सही परिचय नहीं दे रहे हैं। समाज में अभी भी विसंगतियां हैं, उन्हें दूर करके ही हम राष्ट्र को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। अंतरजातीय विवाह करने वालों को सरकारी नौकरियों में भी प्राथमिकता देनी चाहिए। समाज में फैली जाति प्रथा को खत्म करने के लिए कुछ और फैसले लेने की जरूरत है। जोड़े अगर एक-दूसरे को पसन्द करते हैं तो फिर जाति पूछी ही नहीं जानी चाहिए।

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