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सफलता के लिए ‘शॉर्टकट’ मत अपनाइए

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जीवन के बारे में कहा गया है कि इसे बड़े आनंद से जीना चाहिए। इसे सुखमय बनाने के लिए लोग कई चरणों से गुजरते हैं। जीवन में सबसे ज्यादा महत्व परीक्षा को दिया गया है और सबसे बड़ी बात यह है कि छात्र जीवन से लेकर कैरियर बनाने की राह तक परीक्षाओं के बड़े कठिनाइयों भरे दौर से गुजरना पड़ता है। पिछले दिनों एक परिचर्चा में जाना पड़ा, जो कि कैरियर परीक्षाओं में बढ़ती नकल को लेकर आयोजित की गई थी। स्कूल-कॉलेज के अलावा अनेक कम्पटीशन एक्जाम को लेकर नकल के जो आधुनिक टैक्नोलॉजी पर आधारित तरीके ईजाद किए जा रहे हैं, वो सचमुच हमें सोचने को मजबूर कर रहे हैं।

पिछले दिनों एक आईपीएस अधिकारी को लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करवाने के लिए उसकी पत्नी ब्ल्यू टुथ के माध्यम से उसको नकल करवा रही थी। अब यह कपल पकड़े गए हैं। नकल करने वाला दूसरे छोर से ब्ल्यू टुथ खोलकर आवाज के माध्यम से अपने कानों में ईयरफोन लगा कर बैठा था और सारे आनसर लिख रहा था। जब उसे ठीक सुनाई नहीं देता था तो वह अपने मोबाइल से स्कैन करके वापिस ब्ल्यू टुथ के माध्यम से ही पत्नी को भेज देता था। हमें यह नकल की प्रणाली सुनकर अजीब लग रहा है, लेकिन मैंने उस डिबेट में यही कहा कि आज कैरियर को लेकर अगर शॉर्टकट का यह मार्ग अपनाया जा रहा है तो इसका विरोध किया जाना चाहिए। हमारे यूथ समझ लें कि यह तरीका सही नहीं है। क्षणिक सफलता से कभी कैरियर नहीं बन सकता।

अगर हम मूल रूप से किसी चीज को जड़ अर्थात आधार से सीखें तो बहुत कुछ हासिल हो जाता है। 10वीं-12वीं की परीक्षा में बिहार जैसे राज्य में पैसे लेकर बच्चों को टॉप कराने का भंडाफोड़ भी साल भर पहले हो चुका है। शिक्षा बोर्ड के अधिकारी सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं। ये बात अलग है कि इससे पहले इसी बिहार में जमीन से सीढिय़ां लगाकर पांचवीं मंजिल तक पहुंच कर परीक्षा केंद्रों में पर्चियां पहुंचाने की कला भी हम देख चुके हैं। हमारा मानना है कि नकल पर रोक लगनी चाहिए।

शिक्षा विभाग हो या अन्य शिक्षा जगत के कर्ताधर्ता या विशेषज्ञ भी ये बात जान लें कि प्रतिस्पर्धा के चक्कर में जब छात्र-छात्राओं पर ज्यादा बोझ डाला जाता है तो फिर नकल को बढ़ावा मिलता ही है। कम्पटीशन के लिए परीक्षा का स्वरूप कैसा हो, यह शिक्षा विभाग के कर्ताधर्ताओं को तय करना है। हम तो इतना कहना चाहते हैं कि कम्पटीशन के एक्जाम जटिल नहीं सरल होने चाहिएं। नकल के साथ-साथ अक्ल की जा जरूरत होती है, उसे तो हमारे मुन्नाभाई लोग (नकल करने वाले) निभा ही रहे हैं, परंतु इस गलत परंपरा को यहीं रोकना होगा, वरना गलत और सही के अलावा वैध और अवैध के बीच का अंतर खत्म हो जाएगा। सफलता और असफलता के बीच एक फासला जिस तपस्या से होकर गुजरता है वह छात्रों का मनोविज्ञान है और इसमें जटिलताएं भरने की बजाय सरलताएं भरी जानी चाहिएं।

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