यह मेरा निजी अनुभव है कि डाक्टर तो मरीजों के लिए भगवान की तरह होते हैं। जब कोई भी मरीज डाक्टर के पास पूरी आस्था से जाता है तो यही सोचता है कि वह अब सुरक्षित है। वैसे तो हर व्यवस्था से ईमानदारी, नैतिकता जुड़ी होती है, लोग निभाते भी हैं परन्तु डाक्टर के साथ नैतिकता एक जिन्दगी को बचाने, आगे बढ़ाने और स्वस्थ करने तक जुड़ी होती है। अक्सर हम वास्तविक जिन्दगी में गम्भीर मरीजों के रिश्तेदारों या मां-बाप, भाई-बहन को अस्पतालों में उनके लिए प्रार्थना करते देखते हैं या डाक्टर के आगे विनती करते देखते हैं कि हमारे मरीज को किसी भी तरह से बचा लो। तब उनके सामने दो ही रास्ते होते हैं-ईश्वर या भगवान की तरह डाक्टर। जिन्दगी में हमारा डाक्टरों से बहुत वास्ता पड़ता है।
मेरे मायके में अधिकतर होम्योपैथिक या आयुर्वैदिक डाक्टर हैं और दिल्ली में हमारी प्रसिद्ध डाक्टरों से पिछले 25-30 सालों से दोस्ती है। डा. त्रेहन, डा. हर्ष महाजन, डा. उमरे, डा. राणा, डा. ङ्क्षझगन, डा. के.के. अग्रवाल, डा. विनय उनकी पत्नी माला, डा. यश गुलाटी, डा. सुदीप्तो, डा. करीन, डा. पवन गोयल, डा. रणधीर सूद, डा. रीना भाटिया, डा. बगई, डा. कोहली, डा. अशोक राज प्रमुख हैं। कइयों की तो पत्नियां भी डाक्टर हैं, कई नहीं भी हैं तो वह प्यार और उदारता में डाक्टर से कम नहीं। जैसे हमारे फैमिली डाक्टर भागड़ा दोनों पति-पत्नी के पिछले 35 सालों से हमारे साथ पारिवारिक रिश्ते हैं। जब हम नए-नए दिल्ली में आये और अभी 2-3 महीने हुए थे, हमें कोई नहीं जानता था तब मैं और आदरणीय रोमेश चन्द्र जी (मेरे ससुर) ही घर में थे। आदित्य तीन महीने का था। मेरे पिता रूपी ससुर जी को बहुत ही सीरियस अस्थमेटिक अटैक हुआ। उन्हें सांस नहीं आ रही थी। मैं किसी को जानती नहीं थी। मैं घर से भागी। आसपास बहुत से डाक्टर थे। सबकी घंटी बजाई, कोई नहीं था, न ही कोई आने को तैयार था। तब सामने डा. भागड़ा का बोर्ड देखा। भागकर उनके घर की घंटी बजाई तो वह घर पर नहीं थे परन्तु उनकी डाक्टर पत्नी घर पर थीं।
वह बिना कुछ कहे-सुने मेरे साथ मेरे से भी ज्यादा स्पीड में अपना बैग लेकर भागी और जब हम घर पहुंचे तो रोमेश जी की सांसें उखड़ रही थीं तब फौरन डा. भागड़ा ने उन्हें इंजैक्शन दिया। साथ में जो प्यार, आदर और सहानुभूति दी उससे पापा बिल्कुल ठीक हो गए। तब तक उनके पति भी आ गए। मैं बहुत रोई कि अगर ये न मिलते तो क्या होता। तब से मैंने डा. भागड़ा को राखी बांधनी शुरू कर दी और आज भी वह रिश्ता कायम है। दोनों पति-पत्नी खून के रिश्ते से भी ज्यादा निभाते हैं। यही नहीं इसके अलावा हमारे लिए एक और उदाहरण है। नए-नए आए थे। आदित्य 3 महीने का था। उसे बुरी तरह ‘लूज मोशनÓ और उल्टियां हो गईं। यह दिल्ली में पहला दिन था। मैं और अश्विनी जी उसे कार में लेकर भागे। किसी ने बताया कि चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. धर्म प्रकाश (अगर नाम सही है क्योंकि मैं ऐसे डाक्टर का नाम भूल से भी नहीं लेना चाहती)। वो घर से तैयार होकर निकल रहा था। उसने कहा, मैं रोटरी क्लब की मीङ्क्षटग में जा रहा हूं, सुबह आना। हमारा बच्चा बेहाल हो रहा था परन्तु वो टस से मस नहीं हुआ। उसे तो पार्टी में जाना था। मैं मानती हूं कि वह भी इन्सान होते हैं, उनकी भी निजी जिन्दगी होती है परन्तु किसी की जान जा रही हो तो इंसानियत के नाते उसका इलाज करना एक डाक्टर का धर्म होता है।
तब हमें लग रहा था कि आदित्य हमारे हाथ से निकल रहा है। तब शालीमार के डा. जी.सी. जैन और उनकी पत्नी डा. सुरेखा जैन ने अपना खाना छोड़कर उसका इलाज किया। वे मेरे लिए भगवान से कम नहीं इसलिए अधिकतर डाक्टर भगवान का रूप ही होते हैं, बहुत कम राक्षस होते हैं जो सिर्फ पैसों के लिए काम करते हैं। जैसे 1990 में मेरा बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ। मेरी बुलेट प्रूफ कार लालबत्ती पर थी तो पीछे से मारुति कैरियर ट्राले की ब्रेक फेल हो गई। मैं बाल-बाल बच गई परन्तु मेरे सिर में चक्कर नहीं समाप्त हो रहे थे। बड़े-बड़े डाक्टर देखकर कहते कुछ नहीं है। तब डा. हर्ष महाजन, जो अभी नए-नए आर्मी अस्पताल में सर्विस कर रहे थे, उन्होंने मेरा इलाज किया। सिर में सूजन होने के कारण उन्होंने मुझे ग्लिसरीन पिलाई। उनकी और मेरी सासु मां की सेवा से आज मैं बिल्कुल ठीक-ठाक आपके सामने हूं। मुझे उन्होंने जीवनदान दिया। ऐसे ही एम्स के डायरेक्टर डा. सर्वेश टण्डन हैं जो मरीजों की मदद कर उन्हें जीवनदान देते हैं।
परन्तु पिछले दिनों जो घटनाएं सारी दुनिया ने देखीं उससे हम सब बहुत शर्मसार हैं। बहुत ठगा सा महसूस कर रहे हैं कि क्या डाक्टर जान भी ले सकते हैं? विश्वास नहीं होता। कुछ दिन पहले गोरखपुर और अब जोधपुर के सबसे बड़े उम्मेद अस्पताल में जो घटना घटी कि डाक्टर ऑपरेशन थियेटर में बहस और गाली-गलौच करते रहे और बच्चे की मौत हो गई। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में भी 3 दिन में 63 शिशुओं की मौत की खबर। इस अस्पताल में पहले भी ऑक्सीजन सप्लाई में बाधा से 40 बच्चों की मौत हो चुकी है जो शर्म से मरने वाली बात है। इन कसूरवारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। अब यही महसूस हो रहा है कि ज्यादातर डाक्टर देवता नहीं राक्षस होते जा रहे हैं। ये आरोप भी आम हो गए हैं कि किसी गम्भीर किस्म के मरीज के किसी प्राइवेट अस्पताल में पहुंचने पर टैस्ट के नाम पर ढेरों पैसे वसूल किए जाते हैं। जहां-जहां उनकी पैसों या कमीशन की सैङ्क्षटग होती है, इन सब की भी जांच होनी चाहिए।
पिछले दिनों करनाल के कल्पना चावला का मामला भी मेरे सामने आया। लगता है मशहूर बिङ्क्षल्डग का उद्घाटन तो कर दिया गया है परन्तु उसमें मानवता कम नजर आती है। मेरे सामने एक मां राखी अरोड़ा का चेहरा हमेशा घूमता है, जो हरियाणा के प्रसिद्ध संघ परिवार से है, जिन्होंने अपना 16 साल का बेटा डाक्टरों की केयरलैस, समय पर चिकित्सा न मिलने, एम्बुलेंस की सुविधा न होने के चलते खोया। वह दु:खी हैं, अन्दर से रोती हैं परन्तु उनका हौसला बुलन्द है। वह कुछ न कुछ करना चाहती हैं। अपनी आवाज उठाना चाहती हैं ताकि जैसे उनका इकलौता लाल चल बसा और किसी मां को यह दु:ख न सहना पड़े। वह दर-दर जाती हैं, बात करती हैं, उनकी पीड़ा देखे नहीं बनती। उस मां की पीड़ा देखकर स्वयं भगवान भी रो पड़ेंगे। हे भगवान, तुम तो सब जगह विराजमान हो, कण-कण में हो, हर जगह हो, हर इन्सान में हो, कृपया डाक्टरों के अन्दर भी रहो, कभी भी डाक्टरों के जीवन में सेवा की भावना को समाप्त न होने दो।