दूसरे कई देशों की तरह भारत में भी लम्बे समय से चल रहे लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा का वायरस भी लगातार बढ़ता जा रहा है। घरेलू हिंसा का शिकार महिलाओं के लिए भारी साबित हो रहा है लॉकडाउन। जिसकी वजह से लोग निराश और हताश महसूस कर रहे हैं और वह हताशा को अपने साथी या फिर बच्चों पर हिंसा के रूप में निकाल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि घरेलू हिंसा भारत में ही बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने अप्रैल की शुरूआत में ही कहा था कि लॉकडाउन के दौरान दुनिया भर में घरेलू हिंसा के मामलों में भयावह वृद्धि हुई है। करोड़ों लोगों का रोजगार छिन चुका है। काम-धंधे चल नहीं रहे। बाजार खुले लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे। फैक्ट्रियों में काम शुरू हुआ लेकिन न मजदूर मिल रहे हैं और न कारीगर। यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नए अध्ययन से यह निष्कर्ष भी सामने आया है कि रैड जोन में लॉकडाउन के दौरान यौन प्रताड़ना और बलात्कार की घटनाओं में बढ़ौतरी हो रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग को मई माह में घरेलू हिंसा की 392 शिकायतें मिली जबकि 2019 के मई माह में शिकायतों की संख्या 266 थी। इस वर्ष 2020 में साइबर क्राइम की 73 शिकायत दर्ज की गई जबकि मई 2019 में इनकी संख्या केवल 49 थी। बलात्कार और यौन प्रताड़ना के मामलों में 66 फीसदी वृद्धि हुई है। मई में 163 मामले दर्ज किए गए जबकि पिछले वर्ष मई में इनकी संख्या केवल 54 थी। अध्ययन रिपोर्ट में रैड जोन और ग्रीन जोन में अपराधों की तुलना की गई है। लॉकडाउन में समय बीतने के साथ-साथ लोगों में कमाई को लेकर तनाव बढ़ रहा है। इससे वे तनावग्रस्त हो रहे हैं। थोड़ी-बहुत कहासुनी में भी लोग आक्रामक होकर महिलाओं के साथ हिंसा कर रहे हैं। झगड़े बढ़ रहे हैं, ऐसे वक्त में जब पति-पत्नी को एक साथ रहने का मौका मिल रहा है तो उन्हें समझदारी से रहना चाहिए लेकिन घरेलू स्थितियां इसके बिल्कुल विपरीत हो रही हैं। कामकाजी महिलाएं जिनका दिन का समय कार्यालयों में गुजर जाता था, उन्हें भी अब घरों में बंद रहना पड़ रहा है। हर बात में परिवार के सभी सदस्यों की मानसिकता एक जैसी नहीं होती।
ऐसे में अक्सर असहमति भी सामने आती है तो इसका मतलब यह नहीं कि उससे मारपीट की जाए। लॉकडाउन के दौरान आक्रामक रवैया दिखाने वाले पुरुषों को यह भी लगता है कि उनकी पत्नी इन दिनों शिकायत करने नहीं जाएगी। जाएगी भी तो पुलिस पर उसका कोई असर नहीं होगा। महिलाओं के हित में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थायें कई मामलों में काउंसलिंग का काम कर रही हैं लेकिन उनकी समस्या यह भी है कि पति-पत्नी की तो काउंसलिंग हो जाती है लेकिन महिलाओं की परेशानी तब और बढ़ जाती है जब पति के रिश्तेदारों द्वारा उन्हें हिंसा का शिकार बनाया जाता है। पीडि़त महिलायें बाहर नहीं निकल पाने की मजबूरी के कारण अपनी शिकायत तक दर्ज नहीं करा पाई होंगी, उन्हें त्वरित न्याय की जरूरत है। महिलाओं का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना जिसके साथ महिला के पारिवारिक संबंध हैं, घरेलू हिंसा में शामिल हैं। लॉकडाउन के पहले 25 दिनों में महिलाओं ने भेदभाव का आरोप लगाया है वहीं लॉकडाउन के दौरान 166 महिलाओं, युवतियों ने समाज और परिवार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिलाने की बात कही है। लॉकडाउन के दौरान दहेज उत्पीड़न के मामले घटे हैं।
लॉकडाउन के दौरान पीड़ितों के लिए शिकायत दर्ज कराने के सिर्फ तीन तरीके हैं- पहला सोशल मीडिया, दूसरा ई-मेल और तीसरा ऑनलाईन पंजीकरण। हालात ऐसे हैं कि पीिड़तायें हिंसा करने वाले के साथ रहने को मजबूर हैं। अगर वह कहीं और जाना भी चाहें तो कोरोना से संक्रमित होने का भय उन्हें सता रहा है। घरेलू हिंसा का प्रभाव काफी बुरा होता है। ऐसी स्थिति में महिलाओं के मानसिक रूप से विक्षिप्त होने या फिर अवसाद में कोई गलत कदम उठाने का खतरा मंडरा रहा है। एक तरफ पूरा भारत कोरोना से लड़ रहा है दूसरी तरफ घरों में झगड़े बढ़ रहे हैं, इसे शैडो पेंडमिक भी कहा जा रहा है। देश में पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामायण से लक्ष्मण रेखा का उदाहरण देते हुए इसके और घर की सीमा के बीच की समानताओं का उल्लेख किया था। इसमें से बहुत से लोग तुरन्त प्रतिबंधों के कारण हमारे सामान्य जीवन और कार्य में आने वाले व्यवधानों के बारे में विचार करने लगे थे। हमारे बीच महामारी के बारे में नए सिरे से सोचने तथा खुद को बचाने के संबंध में भी चिन्ता प्रकट हुई। जो महिलायें दुराचारियों के साथ रह रही थी उनके लिए लक्ष्मण रेखा के दोनों और खतरा मंडरा रहा है। घरों में रहने के आदेशों के परिणाम स्वरूप, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित और विकासशील देशों में अचानक घरेलू हिंसा की खबरों में बड़ा उछाल आया है। लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। पूरे दिन घरों में रहने की अप्राकृतिक स्थिति, हर दिन बिना आगंतुकों के और सामान्य से अधिक खाली समय अपने आप में मनोवैज्ञानिक मुद्दों के कारण बने हैं। वास्तव में आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी को देखते हुए और व्यवसाय विफल हो जाने के कारण लॉकडाउन के पूरी तरह खत्म होने के बाद भी मानसिक तनाव से प्रेरित दुर्व्यवहार एवं हिंसा जारी रहने की आशंकाएं प्रबल हैं। नौकरियां महिलाओं की भी गई हैं।
वित्तीय स्वतंत्रता के इस नुक्सान की कीमत इनमें से कुछ महिलाओं को घर पर अपने को सशक्त महसूस करने और सौदेबाजी की शक्ति खोकर चुकानी पड़ रही है। अब नागरिक समाज की जिम्मेदारी है कि वह घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए कमर कसे। पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए समाजसेवी संस्थायें आगे आएं और जमीनी स्तर पर प्रयास करें। घरों में सद्भावना पैदा करने का अभियान मीडिया, सोशल मीडिया पर चलाना होगा। स्थितियां सामान्य कब होंगी, यह तो पता नहीं लेकिन परिवारों को टूटने से बचाया जाना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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