कोरोना काल के पहले टेस्ट सीरिज की प्रेक्टिस के दौरान इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स ने एक भारतीय डाक्टर विकास के नाम की टी-शर्ट पहनी थी। स्टोक्स इसके जरिये इंग्लैंड के डाक्टरों के जज्बे को सलाम कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कोरोना वारियर्स के सम्मान की भावनाओं को जगाया। सेना ने भी कोराना योद्धाओं के सम्मान में अस्पतालों के ऊपर पुष्प वर्षा की थी। डाक्टरों, हैल्थ स्टाफ और उससे जुड़े सभी लोगों के कर्मठ प्रयासों से भारत भी अछूता नहीं है। कोरोना के मरीजों के इलाज में जुटे डाक्टरों की कोरोना संक्रमित होने से मृत्यु भी हुई और कोरोना से संक्रमित भी हुए। देश के कई इलाकों से डाक्टरों की मौतों की खबरें भी आईं। पीपीई किट पहन कर डाक्टरों ने कई-कई घंटे काम किया जो काफी असहज था। बिहार जैसे राज्य में एक तो पहले से ही डाक्टरों की भारी कमी है, ऊपर से बिहार में डाक्टरों में संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा रहे। अब तक लगभग 250 डाक्टर कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। बिहार में कोरोना वायरस की चपेट में आकर डाक्टरों की मौत का प्रतिशत 4.42 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 0.5 प्रतिशत है। सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में डाक्टरों की मौत का प्रतिशत 0.15 है।
अब नीति आयोग के डाक्टर वी.के. पॉल के नेतृत्व वाली विशेषज्ञों की समिति ने दिल्ली की रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट को दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट को सौंप दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अब तक 23-24 हैल्थकेयर वर्कर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। 23 फीसदी डाक्टर संक्रमित हुए, 34 फीसदी नर्सें संक्रमित हुईं। 18 फीसदी ग्रुप डी स्टाफ और 19 फीसदी अन्य स्टाफ संक्रमित है। इनमें से अब तक 75 की मौत हो चुकी है।
दुख तो इस बात का है कि कई राज्यों से डाक्टरों और हेल्थकेयर वर्करों को कुछ महीनों से वेतन न मिलने की खबरें रही हैं। डाक्टर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। यह सही है कि कोरोना के चलते स्थानीय निकायों से लेकर राज्य सरकारों का राजस्व घटा है। व्यापार, उद्योग जगत को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है। संकट की घड़ी है, लेकिन हमें मिलजुलकर चुनौतियों का सामना करना होगा।
महाराष्ट्र में भी सरकार ने डाक्टरों को बीमा सुरक्षा न देने का फैसला किया है। डाक्टरों का कहना है कि कोरोना काल के दौरान सरकार ने डाक्टरों को प्राइवेट क्लीनिक खोलने के लिए मजबूर किया, लेकिन जब कोरोना से कई डाक्टरों की मौत हो गई। तब डाक्टरों को बीमा कवच देने से इंकार कर उनसे बड़ा अन्याय है। कर्नाटक और कुछ अन्य राज्यों से भी डाक्टरों और हैल्थ स्टाफ को वेतन नहीं दिए जाने की खबरें आ रही हैं। नर्सिंग स्टाफ को इस बात का डर रहता है कि अगर वो बीमार पड़ गईं तो उनका ख्याल कौन करेगा? आमतौर पर नर्स दस घंटे की शिफ्ट में काम करती हैं। लेकिन हर छह घंटे में पीपीई सूट बदलता पड़ता है। उन्हें भी बड़ी असहज स्थितियों के बीच लम्बी ड्यूटी देनी पड़ रही है।
कोरोना काल में जब सब लोगों को घर बैठने की हिदायत दी गई थी लेकिन कोरोना वारियर्स ने 40-42 डिग्री तापमान में कोरोना किट पहन कर काम किया। अगर हम इन योद्धाओं को वेतन भत्ते और अन्य सुविधाएं नहीं दे सकते तो यह गलत होगा। स्थानीय निकायों से लेकर राज्य सरकारों को कोरोना योद्धाओं की दुख तकलीफ दूर करनी चाहिए। इन लोगों का इतना एहसान है कि हमारे लिए उनका कर्ज अदा करना भी मुश्किल है। कोरोना वायरस से हम जीत जाएंगे लेकिन समाज के इन मसीहाओं को कभी भूला नहीं जाना चाहिए। डाक्टरों की तरह घर-घर जाकर राहत सामग्री बांटने वालों, सुरक्षा उपकरण बनाने वालों, सफाई कर्मियों और पुलिस प्रशासन ने सराहनीय काम किया है। भारत का हर नागरिक इन योद्धाओं को सलाम करता है। यह स्थानीय निकायों, स्थानीय प्रशासन आैर राज्य सरकारों का दायित्व है कि डाक्टरों और हैल्थ कर्मियों की समस्याओं का समाधान करें। अगर हैल्थ वर्कर ही संक्रमित हो जाएं तो देश की देखभाल कौन करेगा।
जून महीने में सुप्रीम कोर्ट ने डाक्टरों के वेतन का भुगतान नहीं किए जाने के मामलों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र से कहा था कि देश महामारी के खिलाफ युद्ध में असंतुष्ट सैनिकों को बर्दाश्त नहीं कर सकता। डाक्टरों को वेतन देना उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत के सामने कई चुनौतियां हैं। कोरोना काल में अन्य बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की उपेक्षा हुई। क्योंकि अस्पताल तो केवल कोरोना मरीजों को समर्पित हो चुके थे। स्थिति सामान्य होने में अभी समय लगेगा। अतः उन मरीजों की देखभाल भी जरूरी है जो कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित हैं ऐसी स्थिति में अस्पतालाें के प्रबंधन को सुधारना जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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