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तीसरी लहर को मत आने दो

कोरोना की दूसरी लहर अब धीरे-धीरे शान्त होने की तरफ बढ़ रही है मगर इससे हमें गफलत में पड़ने की जरूरत नहीं है और वैज्ञानिकों की राय पर गंभीरतापूर्वक मनन करने की आवश्यकता है।

कोरोना की दूसरी लहर अब धीरे-धीरे शान्त होने की तरफ बढ़ रही है मगर इससे हमें गफलत में पड़ने की जरूरत नहीं है और वैज्ञानिकों की राय पर गंभीरतापूर्वक मनन करने की आवश्यकता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अभी प्रत्येक वयस्क नागरिक को कोरोना टीका लगाने का कार्यक्रम चल रहा है और दुर्भाग्य से इस कार्यक्रम को लेकर राज्यों और केन्द्र में भारी विवाद का वातावरण भी बना हुआ है।
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि किसी भी राज्य को कोरोना से मृत व्यक्तियों के आंकड़ों को छिपाना नहीं चाहिए और जनता के सामने हकीकत बयान करनी चाहिए जिससे सभी नागरिक किसी भी संभावित खतरे से पूरी तरह सचेत हो सकें। यह समय अपनी पीठ थपथपाने का नहीं है बल्कि लोगों की जान बचाने का है और यह सिद्ध करने का है कि इस मुसीबत के समय उनकी चुनी हुई सरकार उनके साथ खड़ी है।
ऐसा करके ही राज्य सरकारें कोरोना की संभावित तीसरी लहर का मुकाबला करने के काबिल हो सकती हैं। हम देख रहे हैं कि अभी तक राज्य सरकारें यह राग अलाप रही हैं कि उन्हें कोरोना वैक्सीनें नहीं मिल रही हैं जिसकी वजह से वे 18 से 45 वर्ष तक की आयु के लोगों को टीका नहीं लगा पा रही हैं।
एक मायने में उनकी शिकायत वाजिब इस वजह से हो सकती है कि 45 साल से ऊपर के लोगों को मुफ्त वैक्सीन लगाने की व्यवस्था राज्य सरकारों की मार्फत केन्द्र सरकार ने की है मगर 45 साल से कम के लोगों के मामले में इसने नई वैक्सीन नीति बना दी है जिसके तहत वैक्सीन की व्यवस्था स्वयं राज्य सरकारों को ही करनी है। इस मामले में आज सर्वोच्च न्यायालय में भी जमकर बहस हुई है जिसकी तफ्सील आने में थोड़ा वक्त लगेगा मगर इतना निश्चित है कि केन्द्र सरकार बार-बार इसी साल के भीतर-भीतर प्रत्येक व्यक्ति को वैक्सीन लगाने का दावा कर रही है।
जाहिर है कि केन्द्र के दावे का कोई न कोई आधार जरूर होगा अतः राज्य सरकारों का यह कर्त्तव्य बनता है कि वे तीसरी लहर की संभावना को काटने के नुस्खे पहले से ही तैयार करके रखें जिससे उन्हें बाद में केन्द्र को दोष न देना पड़े। कोरोना ने हर राज्य की पोल जिस तरह खोल कर रखी है उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। जब भी किसी राज्य में चुनाव होते हैं उनमें जनता से जुड़े मूलभूत सवाल प्रायः गायब रहते हैं और ऊल-जुलूल मुद्दे छाये रहते हैं।
कम से कम उत्तर भारत के राज्यों की स्थिति तो यही है। किसी भी राज्य में किसी भी प्रमुख राजनैतिक दल के चुनावी एजेंडे पर न तो स्वास्थ्य का विषय रहता है और न ही शिक्षा का। जबकि ये दोनों विषय ऐसे हैं जिनका सम्बन्ध नागरिकों के विकास से सीधा जुड़ा रहता है।
किसी भी राज्य में ग्रामीण स्तर से लेकर जिला स्तर तक ऐसा सन्तोषप्रद स्वास्थ्य व चिकित्सा तन्त्र नहीं बन पाया है जहां स्थानीय लोगों को आधुनिकतम सुविधाएं मुहैया होती हों। इस मामले में दक्षिण के राज्यों जैसे केरल व तमिलनाडु और पूर्व में प. बंगाल को यदि छोड़ दिया जाये तो जिला चिकित्सालयों तक की हालत बदहाल मिलेगी।
सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की हालत तो यह है कि यहां कोरोना मृतकों की लाशें नदियों के किनारे गड़ी हुई मिलती हैं अथवा पानी में तैरती मिलती है। बिहार की हालत तो इससे भी बदतर है जहां के ग्रामीण चिकित्सा केन्द्रों में मवेशियों के रहने का इन्तजाम बांध दिया गया है अथवा इन पर ताला जड़ दिया गया है। क्या इसमें भी केन्द्र सरकार का ही दोष है ?
असल बात यह है कि हम बेवकूफ किसकाे बना रहे हैं?  क्या उन गरीब व निरीह नागरिकों का जो इस देश के लोकतन्त्र के मालिक हैं । लोकतन्त्र में कोई भी मन्त्री हो, सभी जनता के नौकर होते हैं। इन्हें पांच साल के लिए जनता मजदूरी पर रखती है। अगर ये मेहनत से काम नहीं करते या काम चोरी अथवा जनता के धन में अमानत में खयानत का काम करते हैं तो जनता इन्हें बदल देती है। इसलिए राज्य सरकारों को यह सोचना होगा कि जनता के प्रति उनकी क्या जिम्मेदारी बनती है। पहली जिम्मेदारी यह है कि मौजूदा दूसरी लहर पर पार पाते हुए तीसरी लहर के खतरे को टालने के इन्तजाम किये जायें और इसके लिए गांवों से लेकर शहरों तक के चिकित्सा तन्त्र को मजबूत किया जाये। गरीब आदमी किसी कार्पोरेट अस्पताल में अपना इलाज कराने नहीं जा सकता। उसके लिए अन्तिम सहारा सरकार ही होती है और लोकतन्त्र में सरकार गरीबों के लिए ही होती है क्योंकि अमीरों के पास तो बहुत साधन होते हैं। पैसे के बल पर वे हर सुविधा खरीद सकते हैं परन्तु भारत की 139 करोड़ की आबादी के बीच ऐसे लोग कितने होंगे जब सकल राष्ट्रीय सम्पत्ति का 73 प्रतिशत हिस्सा केवल एक प्रतिशत लोगों के पास है? इसलिए राज्य सरकारों की इस महामारी के दौरान भूमिका कम नहीं है उन्हें अपने सीमित आय स्रोतों से ही चिकित्सा तन्त्र को मजबूत करना होगा जिससे तीसरी लहर का हिम्मत के साथ सामना किया जा सके। इस मामले में केन्द्र सरकार की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह 2 से 18 वर्ष तक की नौजवान पीढ़ी के टीका लगाने के पुख्ता इन्तजाम करें। शिक्षा की बात फिर कभी करूंगा जो इसी आयु की नौजवान व नौनिहाल पीढ़ी के लिए कोरोना काल में संकट का कारण बनी हुई है।

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