अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का महाभियोग से बरी हो जाना पहले से ही तय था। विपक्ष ने खूब हो-हल्ला मचाया लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत वाली सीनेट ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया। डेमोक्रेट सांसदों ने ट्रंप पर आरोप लगाया था कि उन्होंने यूक्रेन पर आगामी राष्ट्रपति पद के चुनाव में सम्भावित प्रतिद्वंद्वी की छवि धूमिल करने के लिए दबाव बनाया। इसी वर्ष नवम्बर में अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं। महाभियोग का सामना करने के बाद चुनाव लड़ने वाले ट्रंप देश के पहले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन गए हैं। आरोपों से बरी होने के बाद ट्रंप की पहली प्रतिक्रिया भी आ गई है।
राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए ट्रंप ने कहा कि जब से उन्होंने राष्ट्रपति पद सम्भाला है तभी से डेमोक्रेट्स उनके पीछे पड़े हैं। पहले वे रूस-रूस चिल्लाते थे, फिर मूलर की रिपोर्ट पर शोर मचाया और उन्हें हर बार हारना पड़ा। ट्रंप ने स्पष्ट कहा कि यह कोई सत्य की लड़ाई नहीं बल्कि राष्ट्रपति पद के चुनाव से पहले सिर्फ एक राजनीति थी। इससे पहले रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड के नाम का मजबूती से समर्थन किया और ट्रंप ने आयोवा कॉकस में जीत हासिल की थी। डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के लिए 12 से अधिक उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था। वहीं ट्रंप को पार्टी के 95 फीसदी मत हासिल हुए।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में राजनीतिक दलों को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवाराें के चयन के लिए प्रत्येक 50 राज्यों में कॉकस अथवा प्राइमरी के जरिये लोकतांत्रिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। प्राइमरी के विजेताओं को दोनों दल अपना उम्मीदवार घोषित करते हैं, वह उम्मीदवार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ते हैं। भारत की ही तरह अमेरिका में भी राजनीतिक दलों में वैचारिक मतभिन्नता, राजनीतिक टकराव और असहमति के स्वर सुनाई देते हैं। डोनाल्ड ट्रंप पर पद के दुरुपयोग, असंसदीय व्यवहार और महिलाओं से अवैध रिश्तों के आरोप लगे हैं, इसके बावजूद ट्रंप अमेरिका के नायक बने हुए हैं।
अमेरिका के सांसदों ने ट्रंप का भाषण तो शांति से सुना लेकिन उनका भाषण खत्म होने के बाद संसद की स्पीकर नैंसी ने उनके अभिभाषण की प्रति फाड़ कर अपनी असहमति जताई। ट्रंप ने अपनी सरकार की प्राथमिकताएं गिनाते हुए कहा कि ‘‘वे जिस मकसद से आए थे, वह पूरा नहीं हुआ है। आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं हुई है। लोगों का इमिग्रेशन रुका नहीं है। मैक्सिको से सटे राज्यों में विदेशी भरे हुए हैं। मैं उन्हें निकालने, अमेरिकियों को रोजगार दिलाने, चीन से विदेश व्यापार जैसे मुद्दों पर खरा नहीं उतरना, जो चाहता था वह नहीं हुआ, अभी मेरा काम बाकी है।’’
यदि डोनाल्ड का भाषण देखा जाए तो कई मुद्दों पर भारत से समानता दिखाई देती है। भारत की तरह ट्रंप संरक्षणवादी नीतियां अपनाए हुए हैं। भारत में भी इस समय अवैध घुसपैठियों का मुद्दा छाया हुआ है। ट्रंप के अभिभाषण के बाद यह तो तय है कि पार्टी की तरफ से उनकी उम्मीदवारी तय है। ऐसा लगता है कि अमेरिका के समाज में मतभिन्नता के बावजूद अधिकांश लोग यह मानने लगे हैं कि ट्रंप से बेहतर उम्मीदवार और कोई नहीं। इसके बावजूद राष्ट्रपति पद के सभी उम्मीदवार ट्रंप से टक्कर ले रहे हैं। बर्नी सैंडर्स और जो बिडेन लगातार ट्रंप पर निशाना साध रहे हैं। जो बिडेन कह रहे हैं कि यदि जनता ने साथ दिया तो वह ट्रंप के नफरत और विभाजनकारी शासन का अंत कर देंगे।
जहां तक ट्रंप शासन के भारत से संबंधों का सवाल है, दोनों देशों में रक्षा कारोबार दस अरब डालर तक पहुंचा है। 2001 तक तो भारत और अमेरिका में कोई रक्षा बिक्री होती ही नहीं थी। ट्रंप शासन में भारत और अमेरिका के संबंध मजबूत हुए हैं। ट्रंप फरवरी के अंतिम सप्ताह भारत आने वाले हैं। दोनों देश एक व्यापार समझौते का आधार तैयार कर रहे हैं। कुल मिलाकर ट्रंप कई मुद्दों पर भारत के मित्र साबित हुए हैं। हालांकि कई मुद्दों पर अमेरिका ने अपनी दबंगई भी दिखाई है, फिर भी दोनों देशों की भागीदारी बढ़ी है। अमेरिका राष्ट्रपति पद के चुनावों का सामना कर रहा है। उनकी बेहतरी के लिए कौन अच्छा रहेगा इसका फैसला भी वहां के लोग ही करेंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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