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संसद को मैली मत होने दो

भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने जिस तरह राष्ट्रविरोधी कार्य भरी संसद में किया है उसकी सजा सिवाय संसद से ही उनकी मुअत्तली के अलावा दूसरी नहीं हो सकती।

भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने जिस तरह राष्ट्रविरोधी कार्य भरी संसद में किया है उसकी सजा सिवाय संसद से ही उनकी मुअत्तली के अलावा दूसरी नहीं हो सकती। अतः इस मामले में भाजपा को पर्दे की ओट से कार्रवाई करने के बजाये सीधे सामने आकर सख्त रुख अपनाना चाहिए। 21वीं सदी का युवा भारत कभी भी अपने पूर्व के उन पापों के साये में नहीं जी सकता है जिनमें भारतीयता के वृहद विचार की भ्रूण हत्या किये जाने जैसे अपराध को गरिमा मंडित करने का कुत्सित प्रयास समाहित हो। 
अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुए भारत में नाथूराम गोडसे ने जिस अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को हिंसा का शिकार बना कर सकल मानवीयता का विध्वंस किया था उसे केवल राष्ट्रवाद के विहंगम भारतीय परिवेश में राष्ट्रद्रोह का नाम दिया जा सकता था। अतः प्रज्ञा सिंह ठाकुर का उसे राष्ट्र भक्त कहना पूरी भारतीयता को गाली देने से कम कुछ नहीं कहा जा सकता, इसीलिए भाजपा को ऐसी सांसद के बिना किसी मोह के कड़ी कार्रवाई करते हुए भारत की नई पीढ़ी के सामने राजनैतिक स्पष्टता का उदाहरण पेश करना चाहिए। 
आज की भाजपा 1951 की जनसंघ नहीं है जिसके 1952 के पहले लोकसभा चुनावों में केवल तीन सांसद जीत कर आये थे जिनमें एक स्वयं इस पार्टी के संस्थापक डा. श्यामा प्रशाद मुखर्जी थे। आज इसके लोकसभा में अपने बूते पर 303 सांसद हैं। अतः बहुत स्पष्ट है कि ये सांसद भारत की उस जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं जो महात्मा गांधी को न केवल राष्ट्रपिता मानती है बल्कि प्रख्यात वैज्ञानिक आइनस्टाइन के उन विचारों पर विश्वास रखती है जिसने बापू से भेंट के बाद कहा था कि आने वाली पीढि़यां आश्चर्य करेंगी कि कभी इस धरती पर हांड़-मांस से बना ऐसा आदमी भी पैदा हुआ था जिसे महात्मा गांधी कहा जाता था। 
पूरी दुनिया को अपने अहिंसक विचारों की शक्ति से पूरी मानव जाति को समर्थ व ऊर्जावान बनाने वाले महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रभक्त कहने की जरूरत करता है तो निश्चित रूप से वह राष्ट्रविरोधी ही कहलायेगा। एक बात हमें बड़े कायदे से समझ लेनी चाहिए कि स्वतन्त्र भारत में हिन्दू महासभा और जनसंघ (भाजपा) के मूल विचारों व सिद्धान्तों में स्पष्ट अन्तर रहा है। 
महात्मा गांधी की हत्या के आरोप में वीर सावरकर पर मुकदमा चला था और वह अदालत से बरी भी हो गये थे मगर उनका हिन्दुत्व जनसंघ के हिन्दुत्व से पूरी तरह अलग था और गोडसे उन्हीं का चेला बताया जाता था। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जनसंघ की स्थापना ही क्यों करते अगर उनके सावरकर से सैद्धान्तिक मतभेद न होते? अतः इस मामले में जरा भी गफलत में रहने की जरूरत नहीं है क्योंकि 30 जनवरी 1948 को जब गोडसे ने बापू की हत्या की तो डा. मुखर्जी स्वयं पं नेहरू की राष्ट्रीय सरकार में उद्योग मन्त्री थे और उनका पूरा समर्थन तत्कालीन सरकार द्वारा गांधी के हत्यारे के साथ किये गये व्यवहार के प्रति था। 
बदकिस्मती से उनका निधन 1953 में ही हो गया। यह अवधारणा पूरी तरह बेबुनियाद है कि डा. मुखर्जी की मृत्यु के बाद जनसंघ के सिद्धान्तों में कोई संशोधन या परिवर्तन आया। उनके बाद बने जनसंघ के अध्यक्ष प. मौली चन्द्र शर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में महात्मा गांधी की हत्या को क्रूर पाशविक व अमानवीय कृत्य बताया। 1980 में जनसंघ के पुनर्नामकरण के बाद डा. मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण अडवानी व अटल बिहारी वाजपेयी ने गांधी की हत्या को राष्ट्रीय अवसाद का दिवस माना और वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को गांधी का देश कहा। 
अतः किस दृष्टि से इन्हीं नेताओं की पार्टी का सांसद गांधी के हत्यारे को राष्ट्रभक्त कह सकता है? मगर क्या कयामत है कि प्रज्ञा ठाकुर को मालेगांव आतंकवादी घटना में अभियुक्त होने के बावजूद भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और जब वह सांसद बन गईं तो रक्षा मन्त्रालय की सलाहकार समिति में स्थान तक दे दिया गया। जबकि चुनावों के दौरान भी वह गोडसे की प्रशंसा कर चुकी थी। जिस आतंकवाद के खिलाफ भारत पूरी दुनिया में मुहीम चला रहा है उसी के आरोप में फंसी हुई एक सांसद को तरजीह देकर क्या हम अपनी मुहीम को हल्का नहीं कर रहे। 
आतंकवाद का मामला कोई राजनैतिक मामला नहीं है कि मुम्बई आतंकवादी हमले के पाकिस्तानी पिशाचों का मुकाबला करते हुए अपनी जान कुर्बान करने वाले पुलिस के जांबाज अफसर हेमन्त करकरे को प्रज्ञा सिंह ठाकुर सरेआम कोसे और उसकी मृत्यु के लिये अपनी बददुओं  को नाजिल करे। आखिर हम क्या उसी भारत में रह रहे हैं जो चन्द्र अभियान के जरिये पूरी दुनिया को अपनी वैज्ञानिक ताकत का भान कराना चाहता है? भारत की विकास यात्रा में एक राजनैतिक पार्टी के रूप में भाजपा की भी भूमिका रही है। 
सत्ता और विपक्ष दोनों में रहते हुए उसने अपने इस दायित्व को निभाने का प्रयास किया है। अतः अपने मूल राजनैतिक दायित्व का निर्वाह भी उसे बेखौफ होकर करना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि वीर सावरकर की हिन्दू महासभा आज कहां समा गई है? हम सबसे पहले भारतीय हैं और हर भारतीय के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। अतः राष्ट्रपिता के हत्यारे को हम केवल  अपराधी, हत्यारा कुलघातक आतंकवादी कहने के सिवाय क्या कह सकते हैं? इस पर सभी गौर करें। भाजपा तो राष्ट्रभक्तों का समूह मानी जाती है।  
इसमें कोई ‘राष्ट्रविरोधी’ किस प्रकार राहू-केतु की तरह बैठ कर ‘अमृतपान’ कर सकता है? अतः हमारी संसद मैली नहीं होनी चाहिए। केवल वर्तमान सत्र के दौरान प्रज्ञा ठाकुर को भाजपा संसदीय दल की बैठकों में भाग न लेने देना का प्रतिबन्ध और रक्षा मन्त्रालय की सलाहकार समिति से हटाया जाना क्या पर्याप्त कहा जा सकता है।

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